तू है तो महफूज़ हैं हम
Saturday, 29 October 2016
तू है तो महफूज़ हैं हम ,
वतन की खातिर तुमने जो ,
दुश्मन को मार गिराना तू ,
हर ओर "दिया" तेरी जीत का है ,
Friday, 28 October 2016
ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
ज़िन्दगी खूबसूरत होती नहीं ,
बनानी पड़ती है।
मोती आशाओं के पिरो ये ,
माला प्यार की सजानी पड़ती है।
रूठने मनाने में ही,
गुज़र न जाए उम्र कहीं ,
हर खता अपनों की भी कभी ,
हंस के भुलानी पड़ती है।
जब वक्त रेत की तरह,
हाथ से फिसल जाता है।
तो एक बार ज़िंदगी जीने को ,
फिर से जी ललचाता है।
फ़र्ज़ इंसानियत का,
कुछ यूँ निभाओ।
किसी को बनाओ अपना ,
या किसी के तुम हो जाओ।
हर ओर अक्स जब अपना ही ,
नज़र आएगा।
फिर कोई न किसी का ,
दिल कभी दुःखा पाएगा।
हर पल एक त्यौहार है ,
हर दिन दिवाली।
गर प्यार की दिल में ,
इक शम्मा जला ली।
खिलखिलाओ तो देखो ,
कितना सुंदर ये जहाँ है।
पंख बाजुओं में लगे हैं और ,
ये ज़मीन आसमान है।
भुला के शिकवे वो सारे ,
करो दिल से दुआ कि।
हों दामन में सभी के ,
भरे सलमा सितारे।
बनो दिलदार और ,
मुस्कुराओ बेवजह कि ,
इसकी तो कीमत भी नहीं,
चुकानी पड़ती है।
ज़िन्दगी खूबसूरत होती नहीं ,
बनानी पड़ती है।
मोती आशाओं के पिरो ये ,
माला प्यार की सजानी पड़ती है।
------ऋतु अस्थाना
Tuesday, 24 May 2016
उस दोज़ख मे जलना होगा।
जब तन पे न होगा रेशम,
और न ही कोई गहना होगा।
दुनिया को फिर बुझे दिल से,
हमे अलविदा कहना होगा।
चार कंधों पे होके सवार,
तय रास्ता आखिरी करना
होगा।
अब तक जो न कभी झुका,
तन वो तब भी अकडा होगा।
जब अदालत उसकी होगी,
और हिसाब हमारा होगा।
क्या लाए अपने संग,
यह प्रश्न डरावना होगा।
बस घृणा, द्वेष से,
आजीवन हमने है भरा,
ये माटी का घड़ा।
करें कोशिश छिपाने की लाख,
मगर राज़ ये बतलाना होगा।
जिसे गढा था उसने,
प्यार का सागर जल भरने
को।
हम भरते रहे उसमे नफरत,
निज झूठा अहम बचाने को।
फिर वो ही जाने उसका,
क्या अन्तिम फैसला होगा।
देगा मौका दूसरा या फिर,
उस दोज़ख मे जलना होगा।
उस दोज़ख मे जलना होगा।
--------ऋतु अस्थाना
Saturday, 7 May 2016
माँ तुझ जैसा दुनिया में कोई नहीं
माँ! तुझ जैसा दुनिया में कोई नहीं।
माँ! तुझ जैसा दुनिया
में कोई नहीं,
रब भी पूछे अगर तो भी मैं बोलूं यही।
तुझ जैसा दुनिया में कोई नहीं।
दर्द मेरे जो सारे तूने लिए,
आंसू, आँखों में कभी न आने दिए,
मेरे रोने पे रोइ है तू सदा,
वारि वारि गई मेरी मुस्कान पे,
तू ही भगवान है, तू ही मेरा खुदा,
रब भी तू है मेरा और कोई नहीं,
तुझ जैसा दुनिया में कोई नहीं।
गिर जो जाऊँ तू थाम लेना मुझे,
निर्मल आँचल की छाया तू देना मुझे,
तेरे हाथों में तकदीर मेरी लिखी,
मेरी गलती भी बिसरा तू देना सदा,
माँग लूँगा तुझे हर जनम में मेरी माँ,
फिर दूसरी आरज़ू मेरी कोई नहीं,
तुझ जैसा इस दुनिया में कोई नहीं।
तेरे चरणों में संसार सारा मेरा,
तू ही मन के मेरे इस मंदिर में है,
हो तुझी से तीरथ भी पूरा मेरा,
तेरा आशीष से बिगड़ी भी बन जाएगी,
हो जाएगा जन्म मेरा ये सफल,
तेरे दामन में जब दुःख होगा कोई नहीं ,
माँ !तुझ जैसा इस दुनिया में कोई नहीं।
तुझ जैसा इस दुनिया में कोई नहीं।
रब भी पूछे अगर तो भी मैं बोलूं यही।
तुझ जैसा दुनिया में कोई नहीं।
दर्द मेरे जो सारे तूने लिए,
आंसू, आँखों में कभी न आने दिए,
मेरे रोने पे रोइ है तू सदा,
वारि वारि गई मेरी मुस्कान पे,
तू ही भगवान है, तू ही मेरा खुदा,
रब भी तू है मेरा और कोई नहीं,
तुझ जैसा दुनिया में कोई नहीं।
गिर जो जाऊँ तू थाम लेना मुझे,
निर्मल आँचल की छाया तू देना मुझे,
तेरे हाथों में तकदीर मेरी लिखी,
मेरी गलती भी बिसरा तू देना सदा,
माँग लूँगा तुझे हर जनम में मेरी माँ,
फिर दूसरी आरज़ू मेरी कोई नहीं,
तुझ जैसा इस दुनिया में कोई नहीं।
तेरे चरणों में संसार सारा मेरा,
तू ही मन के मेरे इस मंदिर में है,
हो तुझी से तीरथ भी पूरा मेरा,
तेरा आशीष से बिगड़ी भी बन जाएगी,
हो जाएगा जन्म मेरा ये सफल,
तेरे दामन में जब दुःख होगा कोई नहीं ,
माँ !तुझ जैसा इस दुनिया में कोई नहीं।
तुझ जैसा इस दुनिया में कोई नहीं।
--------ऋतु अस्थाना
Friday, 6 May 2016
शब्दों का ये कैसा खेल?
शब्दों की सब मेहरबानी ,शब्दों का ये कैसा खेल।
कभी ये तोड़े नाज़ुक दिल को ,तो कभी मनाए रूठे मीत को।
कभी तो बाँधे जन्मों के बंधन ,तो कभी बिगाडे उसी रीत को।
कभी जगाए आस ये मन में ,तो कभी निराशा से भर जाए।
कभी तो रिश्ते आप बनाए ,तो कभी उम्र भर तरसे प्रीत को।
शब्दों का ये मायाजाल है ,है साथी सब इसका खेल।
सलीके से गर शब्द चुनो तो , फिर हो जाएँ दिलों में मेल।
------- ऋतु अस्थाना
Tuesday, 26 April 2016
मैं तुझमें हूँ, तू मुझमें है ,
फिर क्यों खोजूँ, दर दर भटकूँ
जब तू शामिल, कण कण में है
भूखा बन तू रोया,कभी सड़कों पे सोया
घायल पंछी के स्वर में कभी
अबला की करूँण पुकार में है
टूटा जो कोई,तू टूट गया
उसके दुःख में,तू डूब गया
तू गलियों और चौबारों में
तू ही राम में और रहीम में है
क्यों बहे खून,फिर लोगों का
क्यों छिड़ते नाहक युद्ध यहाँ
क्यों धर्म का पाठ पढाते हैं
जब तू ही बसा हर मजहब में है
तू पाठ पढ़ा,मानवता का
छोड़ें झूठा आडम्बर हम
ये धर्म जाति के ढोल बजा
मारा हमने उस रब को है
जग के स्वामी सुन ले ये पुकार
कुछ तू ही अपना जलवा दिखा
भाई न लडे फिर भाई से
न छुआछूत का बैर पले
गर ये न रुका अब और यहाँ
फिर दुनिया ये तेरी मुश्किल में है।
फिर दुनिया ये तेरी मुश्किल में है।
--------ऋतु अस्थाना
Monday, 18 April 2016
उसी बचपन में जाना है।
उसी बचपन में जाना है।
ना जाने क्यों हर दर्द में ,
जुबां पर नाम उन का ही आता है।
उन्हीं के हाथ का खाना ,
आज भी मुझको भाता है।
कमाई बहुत हुई यारों ,
अब तो घर याद आता है।
वो माँ की बाहों का झूला ,
मुझे हर पल बुलाता है।
दे अगर इक और मौका, ऐ जिंदगी ,
बन के मासूम एक बार फिर।
उस गोदी में सोना चाहता हूँ,
यूँ सिमट जाऊँ माँ के पल्लू में।
कि फिर जहाँ में कोई ढूंढ न सके।
भूल कर हर परेशानी और गम को ,
कि कोई तकलीफ भी मुझे छू न सके।
आज इक बार फिर बचपन ,
इस तरह क्यों रिझाता है।
दूर से देख कर आज बचपन ,
भी मुझ पर मुस्कुराता है।
एक बार फिर भरी बारिश में ,
कागज़ की कश्ती को चलाना है।
मुझे फिर लौट के वापिस ,
उसी बचपन में जाना है।
मुझे फिर लौट के वापिस ,
उसी बचपन में जाना है।
## ऋतु अस्थाना ##
Sunday, 17 April 2016
Saturday, 16 April 2016
गुल ए गुलज़ार फिर अपना चमन हो।
काश ऐसा हमारा वतन हो ,
न भूखा हो कोई ,
न कोई दुखी हो ,
सभी के उजले से और ,
भोले से मन हों।
एक ही धर्म हो ,
बस इंसानियत का,
न हो मंदिर, न मस्जिद ,
का कोई भेद ही हो।
हर बन्दे के दिल में ,
दरिया बस प्यार का हो।
बैर न हो ऊंच-नीच का ,
बैर न हो ऊंच-नीच का ,
ऐसा ही बेजोड़ हमारा भी घर हो।
एक ही धर्म की खुशबू,
चलो चल कर बिखेरें,
होंगे कुछ नए से ,
फकत अपने सवेरे।
ख्वाब ये चल फिर से हम देखें ,
कि अलबेला सा इक अपना चमन हो।
जब मिसाल दे दुनिया ,
कि देखो तो ये भारत ,
कितना बदल गया है ,
लहू देखो लहू में ये ,
किस तरह घुल सा गया है।
दर्द जब किसी गैर का ,
भी अपना सा लगेगा ,
उस रोज़ वतन अपना ,
यक़ीनन बदलने लगेगा।
हर धर्म से उपर
भी एक धर्म होता है।
क़र्ज़ माटी का चुकाना
भी अपना फ़र्ज़ होता है।
कीजिये इश्क यूँ कि कबीले तारीफ़ हो ,
वतन परस्तों की फेहरिस्त में ,
नाम अपना भी दर्ज हो।
ऐ खुदा ख्वाब अपना ये पूरा हो ,
गुल ए गुलज़ार फिर अपना चमन हो।
गुल ए गुलज़ार फिर अपना चमन हो।
------ऋतु अस्थाना
Tuesday, 12 April 2016
वो मजदूर का बेटा।
कल जिंदगी को कुछ,
यूँ देखा करीब से।
रिश्ता न कोई था,
मेरा उस गरीब से।
वो मजदूर का बेटा,
गली में खेल रहा था।
कड़ी धूप से बेखबर,
जिंदगी को झेल रहा था।
वो नन्हा जो मुस्कुराया,
तो मुस्कुरा मैं भी उठी।
बिना किसी सौगात के,
नन्ही सी आँखें चमक उठीं।
उस पल को जिंदगी ज्यों,
फिर गुनगुना उठी।
न कोई रिश्ता और,
न कोई सम्बन्ध ही था।
फिर भी वो पल न जाने क्यों,
मुझे गुदगुदा रहा था।
कुछ नाज़ सा हुआ खुद पर,
कि काम कुछ अच्छा कर गए।
जो रिश्ता इंसानियत का,
हम अता कर गए।
जो रिश्ता इंसानियत का,
हम अता कर गए।
## ऋतु अस्थाना ##
Sunday, 10 April 2016
तो फिर बदनाम हम सरेआम होते हैं !!!!!
क्यों जिंदगी को हम,
गलत इलज़ाम देते हैं।
कई बार जिंदगी से गम,
हम खुद उधार लेते हैं।
लगा कर दिल किसी पत्थर से ,
तड़प दिन रात रोते हैं।
ख्वाबों में फिर यादें सजा के,
मुफ्त में क्यों अधिकार लेते हैं।
न है वो तेरा, ये जानकर भी ,
दिल पे तीर ए नश्तर चुभोते हैं ,
फिर दर्द को अपना बनाकर।
हम आशिकी में यूँ बर्बाद होते हैं।
कलम जब हाथ में आती है,
तो फिर बदनाम हम सरेआम होते हैं।
### ऋतु अस्थाना ##
Thursday, 31 March 2016
बहाओ इस कदर गर प्यार का तुम झरना।
बहाओ इस कदर गर प्यार का तुम झरना।
सच तो ये है कि कोई किसी से नहीं ,
बस खुद से ही करता है प्यार।
मतलब के हैं रिश्ते सारे ,
मतलब के सब यार।
गर सच में दिल है मोहब्बत ,
तो क्यों न बांटे जहाँ में।
बना ले चल इसे ही ईबादत ,
बिखेरे खुशबू हम गुलिस्तां में।
झोली अगर भर सके तो ,
प्यार की जहाँ पे है जरुरत।
किसी मासूम को मुस्काना सिखाकर ,
पराए को कभी अपना बनाकर।
अंधेरों में नन्हा सा इक दीपक जलाकर,
बुझे मन में किरण आशा की जगाकर।
किसी रोते के कभी आंसू तो पोंछो ,
सुकून से दामन न भर जाए तो कहना।
कहोगे ये कौन सी दुनिया में आये ,
अब तो उमर भर यहीं पे है रहना।
ना फिर इश्क की तमन्ना औ न आरज़ू होगी ,
बहाओ इस कदर गर प्यार का तुम झरना।
-------ऋतु अस्थाना
Tuesday, 22 March 2016
Holi
श्याम ने ऐसा रंग डाला
होली के शुभ दिन पर,
जब राधा का मन हर्षाया।
कान्हा को रंगने का तब,
प्यारा सा एक रंग बनाया।
निकली सब सखियो संग ,
भर के पिचकारी में रंग।
मुस्काते आए मोहन टोली संग ,
राधा पहले से तैयार।
आज कान्हा को रंगना है ,
प्रेम से उन्हें भिगोना है।
तभी राधा घबराई ,
ये कैसी बेला आई।
पिचकारी छूटी हाथों से ,
गिर गया सारा गुलाल।
कुछ भी समझ न आया ,
हो गई शर्म से वो लाल।
सुध- बुध सब कहाँ गंवाई ,
ज्यों श्याम ने पकड़ी कलाई।
भीग कर खुद सराबोर हुई ,
कृष्ण के रंग में भीगी ,
और भाव विभोर हुई।
भूली सब उसने जो ठानी थी ,
ये तो प्यारी राधा दीवानी थी।
श्याम ने ऐसा रंग डाला,
अपने ही रंग में रंग डाला।
अपने ही रंग में रंग डाला।
## ऋतु अस्थाना ##
Monday, 14 March 2016
चलो साथी मिलकर कुछ करते हैं।
जब हम सब को अपना समझें,
उनके दर्द को अपना दर्द समझें।
तो मन में कुछ करने की ललक होगी ,
और यही से हमारी शुरू यात्रा होगी।
क्या उम्मीद किसी और से करें हम ,
रोते के आँसू भी ना पोंछ पाए गर।
अपने लोगों का दर्द बाँटते हुए ,
चलो साथी मिलकर कुछ करते हैं।
तमाशबीन बने रहने से हासिल कुछ नहीं होगा,
झल्लाने और बड़बड़ाने से भी भला कुछ नहीं होगा।
जब आगे आकर हम अपना हाथ बढ़ाएंगे ,
तो शक नहीं कि सौ हाथ भी इनसे जुड़ जाएंगे।
कंधे उचका कर अब तक जो आगे बढ़ जाते थे ,
अब रुक कर समस्या की तह तक जाना है।
न मेरा है न तेरा है , ये देश तो हम सबका है।
ऐ दोस्तों !वतन के खातिर कुछ फ़र्ज़ भी निभाना है।
सबका दर्द आओ मिल बांटते हैं ,
चलो साथी मिलकर कुछ करते हैं।
न मेरा है न तेरा है , ये देश तो हम सबका है।
ऐ दोस्तों !वतन के खातिर कुछ फ़र्ज़ भी निभाना है।
सबका दर्द आओ मिल बांटते हैं ,
चलो साथी मिलकर कुछ करते हैं।
Sunday, 21 February 2016
दर्द को जिसने बड़े करीब से देखा हो
दर्द को जिसने बड़े करीब से देखा हो
दर्द को जिसने बड़े करीब से देखा हो ,
ढंग जीने का असली वो खुद ही सीख जाता है।
बसर की हो जब अंधेरों में अपनी जिंदगानी,
शमा उम्मीदों की जला के वो फिर गुनगुनाता है।
कि हीरा भी है सिर्फ इक पत्थर सरीखा,
दमकता है तभी जब तराशा उसको जाता है।
चला-चल राही, दामन उम्मीदों का पकड़ कर ,
कि कई बार सूरज भी बरसों बाद आता है।
रख भरोसा कि मंजिल मिल ही जाएगी ,
हिम्मत पे तेरी खुदा भी ऊपर मुस्कुराता है।
आँधियाँ, मुश्किलों की कितनी ही कठिन हों,
दूर फिर भी कहीं नन्हा सा तारा टिमटिमाता है।
दर्द को जिसने बड़े करीब से देखा हो ,
ढंग जीने का असली वो खुद ही सीख जाता है।
------ऋतु अस्थाना
Saturday, 6 February 2016
मुट्ठी में आसमान
मुट्ठी में आसमान
पहला दिन
आज फिर इंटरव्यू में वो फेल हो गई। न जाने क्यों हर बार वो आई ए एस का लिखित exam पास कर लेती थी पर इंटरव्यू में पास नहीं हो पाती थी । शायद उसके अंदर कहीं एक घबराहट सी थी कि वो इतनी बड़ी जिम्मेदारी संभाल भी पाएगी या नहीं। हर बार उसे घर वालों के उलाहने सुनने पड़ते थे । उसकी नौकरी को लेकर घरवालों ने बड़े ही सपने संजो रखे थे। पता नहीं वो उनके सपने पूरे भी कर पाएगी या नहीं, उसे यही डर खाए जा रहा था। शायद यही एक कारण था उसके इंटरव्यू में फेल होने का। जो भी हो उसे ये सोचना था कि घर वालों को आज क्या जवाब देगी। जब से उसके पड़ोस की लीला मौसी की लड़की आई एस बनी है तभी से उसके घर वाले भी हाथ-धो कर उसके आईएएस बनने के सपने देखने लगे थे। उन्हें लीला मौसी से किसी भी मामले में पीछे जो नहीं रहना था।
ख्यालों में खोई सोनी शुक्ला, कानपुर की गलियों में खो गई। तभी जोर से किसी ने हॉर्न बजाया पर जब फिर भी वो सचेत नहीं हुई तो एक लड़की ने गाड़ी से उतरकर उसे झकझोरा।
लड़की --क्या बात है भई ? तुम्हें गाड़ी का हॉर्न सुनाई नहीं देता ? बच ही गई , कसम से। अभी एक्सीडेंट हो जाता तो कहती कि सारी गलती गाड़ी वाले की है। चलो हटो , किनारे हटो भई।
सोनी(हड़बड़ाते हुए) ---ओह, आई एम सॉरी।
सोनी ने जैसे ही अपना चेहरा उठाया, वो लड़की ख़ुशी से चीख पड़ी।
शालू --अरे सोनी? ये तू है? अरे ,क्या हाल बना रखा है ? क्या कर रही है आजकल ?
सोनी और शालू बचपन की सहेलियाँ थीं। शालू के पिता के ट्रांसफर होने के कारण वे लोग पिछले दो तीन साल से कानपुर से चले गए थे।
शालू ---चल, चल , पास के रेस्टोरेंट में बैठते हैं फिर बातें करेंगे। चल ना।
सोनी ---पर, घर पर सब wait कर रहे होंगे।
शालू ---अरे, तो एक फोन कर दे मोबाइल से।
सोनी(उदास होकर) ---नहीं है , मोबाइल नहीं है मेरे पास।
शालू ---क्या?? क्या बात कर रही है तू ? कौन से जमाने में जी रही है यार? आजकल तो जरा जरा से बच्चे तक मोबाइल फोन रखते हैं। चल छोड़, जाने दे । और बता।
इतनी देर में वे दोनों कानपुर, गुमटी के तिवारी रेस्टोरेंट में पहुँच चुके थे।
सोनी --तू बता शालू , तू क्या कर रही है आजकल ?
शालू ---देख सोनी, पढ़ने लिखने में तो मैं ज्यादा तेज थी नहीं तो मैंने अपनी हॉबी को ही अपना प्रोफेशन बनाया है।
सोनी --हॉबी को प्रोफेशन? मतलब ?
शालू --मतलब , तुझे याद है कि मैं शॉकिया तौर पर कभी-कभी तेरे कुर्ते भी सिल दिया करती थी।
सोनी ---ही ही , अच्छा, तो तू टेलर बन गई।
शालू ---देख, काम कोई भी बड़ा छोटा नहीं होता, बस काम अपनी पसंद का होना चाहिए। मैं तो कुछ समझ ही नहीं पा रही थी कि मैं क्या कर पाऊँगी जिंदगी में।
सोनी ---अच्छा ? तो फिर किसने तुझे राह दिखाई ?
शालू ----किसने राह दिखाई ? रही ना तू भी बच्ची की बच्ची।
सोनी ---मतलब ?
शालू ---मतलब ये कि जब तुझे भूख लगती है तो खाना कौन खाता है ?
सोनी --मैं
शालू --तुझे चोट लगती है तो दर्द किसे होता है ?
सोनी ---obviously मुझे यार, और किसे दर्द होगा, जब चोट मुझे लगी है ।
शालू ---बस तुझे यही बता रही हूँ कि तुझे क्या पसंद है , या जिंदगी में तू क्या करना चाहती है इसका फैसला भी तुझे ही करना होगा।
सोनी ---मुझे करना होगा? पर घरवाले तो बड़े होते हैं, हमसे ज्यादा समझदार होते हैं, वो तो सही ही बताएंगे न। चल मेरी छोड़, तू अपनी बता, तूने अपना क्या फैसला किया ?
शालू ---मेरे घर वाले चाहते थे कि मैं बी एड कर के कोई टीचर की जॉब कर लूँ फिर वे मेरी शादी करा दें बस उनका काम ख़त्म। पर मैंने तो कह दिया कि मैं फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करुँगी और फैशन डिज़ाइनर ही बनूँगी। और फिर , मैंने वही किया। अब, मेरी हॉबी ही मेरा प्रोफेशन है जिसे आज मैं अपने पूरे मन से करती हूँ और खुश भी रहती हूँ।
सोनी --पर, मैंने तो वही किया जो मेरे घरवालों में कहा, कभी अपनी ख़ुशी, अपनी इच्छा तो सोची ही नहीं।
शालू ---कोई बात नहीं। जब जागो तभी सवेरा है। तब नहीं सोची तो अब सोच ले।
सोनी ---नहीं यार , मेरा कुछ नहीं हो सकता। मुझमे तो कोई टैलेंट है ही नहीं।
शालू ---अच्छा, पर मुझे तो ऐसा नहीं लगता। खैर ,ऐसा कर, कल मिलते हैं आज घर जाकर तू इस बारे में जरा सोचना। ठीक है ?
सोनी ---हम्म ठीक है।
-----------
दूसरा दिन
दूसरे दिन जब सोनी, शालू से मिली तो उसकी आँखें सूजी हुईं थीं। ऐसा लगता था मानो वो पिछली रात को वो बहुत रोई हो। शालू ने जैसे ही उसके कंधे पर हाथ रखा सोनी फफक-फफक कर रोने लगी। जब वो थोड़ा ठीक हुई तो शालू उसे मोती झील के पार्क में ले गई। जहाँ उसने सोनी का हाथ कस कर पकड़ रखा था।
सोनी --शालू , तुझे पता है कल घर पर क्या हुआ ?
शालू --हाँ सोनी, ये तो तेरी आँखों से ही पता चल गया था। कभी कभी हमारे अपने ही हमारी खुशियों के बारे में क्यों नहीं सोचते? हमेँ मजबूरी में उनके खिलाफ जाना पड़ता है।
सोनी --अब तो मै आई ए एस बन ही नहीं सकती। जिंदगी बर्बाद हो गई मेरी।
शालू --हट पागल, इस बात से जिंदगी ख़त्म नहीं हो जाती बल्कि ये सोच कि उपरवाले ने तुझे ये दूसरा मौका दिया है कि तू अपनी पसंद का काम चुने। और अपनी जिंदगी को ख़ुशी से जिए। समझीं?
सोनी --पर मैं करूंगी क्या ? पापा कह रहे थे कि जब इसे कुछ करना ही नहीं है तो इसकी शादी करा देते हैं।
शालू ---सोनी, भगवान पर विश्वास रख कोई न कोई रास्ता निकल ही आएगा।
तभी उनको कोई जोरदार आवाज सुनाई पड़ी। वहाँ कोई announcement हो रहा था कि जो लोग गाने के कम्पटीशन में भाग लेना चाहते हैं , अपना नाम लिखा सकते है। कम्पटीशन आज, पार्क के सामने ही होना था।
सोनी --ये क्या कह रहे हैं ?
शालू --लगता है, कोई गाने का कम्पटीशन है। आजकल वैसे हर चीज का बड़ा ही स्कोप है। है न ?
सोनी ---हम्म
शालू ---हम्म क्या ? चल अपना भी नाम लिखाते हैं। तू भी तो गाती थी स्कूल time में। और चाहे कुछ न भी मिले कोशिश करने में क्या जाता है। क्या पता हम टीवी पर आ जाएँ।
सोनी ---हाँ, गाना मुझे बचपन से ही बहुत पसंद है। बल्कि music ही ऐसी चीज है जिससे मैं अपनी सारी परेशानियों को भूल जाती हूँ। पर बिना घर में पूछे ? कैसे ?
शालू --shut up यार , अरे कौन सा किसी का खून करने जा रहे हैं। cool यार।
और शालू ने दोनों का नाम लिखवा दिया। अब सोनी को ये चिंता थी कि शाम तक बाहर कैसे रुके। खैर शालू ने उसके घर फोन करके उसकी ये चिंता भी खत्म कर दी।
शालू --सोनी, चल मेरा घर पास में है, वहीँ से खा-पी कर और तैयार होकर शाम को आएँगे। और तू बिलकुल चिंता मत कर रात को मैं तुझे घर भी छोड़ दूँगी।
सोनी --thank you Shalu पर डर लग रहा है।
शालू ---चल चल , ज्यादा अंग्रेज बनने की जरूरत नहीं है , और डरने की तो बिलकुल भी नहीं , समझीं?
और फिर शाम को दोनों सहेलियाँ तैयार हो कर , कम्पटीशन में पहुंचीं।
शालू ने अपना गाना गाकर ख़त्म किया। और तब आया सोनी का नंबर। सोनी को समझ ही नहीं आ रहा था कि कौन सा गाना गाए। अपने गानों की लिस्ट में से उसने अपना एक favorite गाना चुना और एक बार उसकी practice की जिससे कि वो स्टेज पर कहीं भूल न जाए।
और उसकी मीठी आवाज़ ने सभी को मन्त्रमुग्ध कर दिया।
" ऊंचे-नीचे रास्ते और मंजिल तेरी दूर ,
राह में राही रुक न जाना होकर के मजबूर।
ऊंचे नीचे रास्ते और मंजिल तेरी दूर। "
सोनी को पता ही नहीं था कि उसका गला कितना सुरीला है। कभी घर में किसी ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया।
कभी उसने स्वयं भी महसूस नहीं किया कि संगीत में तो उसके प्राण बसते हैं।
पूरा हॉल तालियों की गडगडाहट से गूँज उठा।
सोनी स्टेज से आकर शालू से लिपट गई। शालू ने उसके आँसू पोंछे और उसे सामने लगी भगवान की फोटो दिखाई।
तभी judges ने रिजल्ट announce किया जिसमे सोनी का नाम भी था। अब सोनी को गाने के लिए मुंबई जाना था। आज, अपनी सफलता पर सोनी की आँखों में ख़ुशी के आँसू थे। उसका मन बार-बार अपनी बचपन की सहेली को धन्यवाद करने का हो रहा था।
---------
एक हफ्ते बाद
सोनी की ट्रेन चलने वाली थी। उसे मुंबई, अपने पहले गाने की recording के लिए जाना था। सभी घर वाले उसकी सफलता और ख़ुशी पर खुश थे कि चलो आई ए एस न बन सकी तो क्या हुआ, singer भी तो बडा नाम और पैसा कमाते है। सोनी बार बार अपनी घडी देख रही थी।
सोनी --अफ़्फ़ो, ये शालू कहाँ रह गई ? ट्रेन चलने वाली है। पता नहीं फिर कब मुलाकात हो। अजीब है ये लड़की भी न , कसम से।
शालू दौड़ती हुई सोनी की ओर आई और सोनी ट्रेन से उतरकर शालू से जोर से लिपट गई।
सोनी --शालू , तू मेरे लिए एक फ़रिश्ते की तरह आई है। सच में आज मैं बहुत खुश हूँ। भगवान हर लड़की को तेरे जैसी सहेली जरूर दे।
शालू --ही ही ही, very funny, क्या कोई सत्य नारायण की कथा चल रही है कि जैसे मेरे दिन बहुरें, वैसे ही आप सब के भी बहुरें।
सोनी --- चल हट , पागल।
शालू ---सोनी सच में आज मैं बहुत खुश हूँ। तेरी सफलता और तेरी ख़ुशी पर मेरी तरफ से ये एक छोटा सा gift है।
सोनी --अरे इसकी क्या जरुरत थी? अरे कहीं मेरी ट्रेन न छूट जाए। वैसे ,क्या है ये ?
शालू --हाँ हाँ , कर ले formality . ये तेरे लिए नहीं , मेरे लिए है। ये एक mobile phone और इसमें मेरा नंबर भी है। जिससे कि कहीं मेरी प्यारी सहेली फिर से मुझसे न बिछड़ जाए। Got it ?
सोनी --ओह,मेरी प्यारी सहेली। सच्ची में शालू, तूने जो रास्ता दिखाया है , अब देखना मैं बहुत मेहनत करूंगी और बंद कर लूंगी अपनी मुट्ठी में आसमान।
शालू --ये हुई न बात। जा सोनी जा, जी ले अपनी जिंदगी।
और दोनों सहेलियाँ दिल खोलकर हंसने लगीं और तभी ट्रेन की आखिरी सीटी बजी और सोनी निकल पड़ी अपनी मंजिल और अपने सपने की ओर।
-------------
Epilogue ; ये सच है कि सच्ची दोस्ती हमें सही मार्गदर्शन देती है। पर ऐसा नहीं है कि माता-पिता, दादा-दादी या नाना-नानी अपने बच्चों के दोस्त नहीं बन सकते। आवश्यकता है तो बस अपने बच्चों से दोस्ती करने की उन पर अपनी इच्छाए थोपने की नहीं।
दूसरा दिन
दूसरे दिन जब सोनी, शालू से मिली तो उसकी आँखें सूजी हुईं थीं। ऐसा लगता था मानो वो पिछली रात को वो बहुत रोई हो। शालू ने जैसे ही उसके कंधे पर हाथ रखा सोनी फफक-फफक कर रोने लगी। जब वो थोड़ा ठीक हुई तो शालू उसे मोती झील के पार्क में ले गई। जहाँ उसने सोनी का हाथ कस कर पकड़ रखा था।
सोनी --शालू , तुझे पता है कल घर पर क्या हुआ ?
शालू --हाँ सोनी, ये तो तेरी आँखों से ही पता चल गया था। कभी कभी हमारे अपने ही हमारी खुशियों के बारे में क्यों नहीं सोचते? हमेँ मजबूरी में उनके खिलाफ जाना पड़ता है।
सोनी --अब तो मै आई ए एस बन ही नहीं सकती। जिंदगी बर्बाद हो गई मेरी।
शालू --हट पागल, इस बात से जिंदगी ख़त्म नहीं हो जाती बल्कि ये सोच कि उपरवाले ने तुझे ये दूसरा मौका दिया है कि तू अपनी पसंद का काम चुने। और अपनी जिंदगी को ख़ुशी से जिए। समझीं?
सोनी --पर मैं करूंगी क्या ? पापा कह रहे थे कि जब इसे कुछ करना ही नहीं है तो इसकी शादी करा देते हैं।
शालू ---सोनी, भगवान पर विश्वास रख कोई न कोई रास्ता निकल ही आएगा।
तभी उनको कोई जोरदार आवाज सुनाई पड़ी। वहाँ कोई announcement हो रहा था कि जो लोग गाने के कम्पटीशन में भाग लेना चाहते हैं , अपना नाम लिखा सकते है। कम्पटीशन आज, पार्क के सामने ही होना था।
सोनी --ये क्या कह रहे हैं ?
शालू --लगता है, कोई गाने का कम्पटीशन है। आजकल वैसे हर चीज का बड़ा ही स्कोप है। है न ?
सोनी ---हम्म
शालू ---हम्म क्या ? चल अपना भी नाम लिखाते हैं। तू भी तो गाती थी स्कूल time में। और चाहे कुछ न भी मिले कोशिश करने में क्या जाता है। क्या पता हम टीवी पर आ जाएँ।
सोनी ---हाँ, गाना मुझे बचपन से ही बहुत पसंद है। बल्कि music ही ऐसी चीज है जिससे मैं अपनी सारी परेशानियों को भूल जाती हूँ। पर बिना घर में पूछे ? कैसे ?
शालू --shut up यार , अरे कौन सा किसी का खून करने जा रहे हैं। cool यार।
और शालू ने दोनों का नाम लिखवा दिया। अब सोनी को ये चिंता थी कि शाम तक बाहर कैसे रुके। खैर शालू ने उसके घर फोन करके उसकी ये चिंता भी खत्म कर दी।
शालू --सोनी, चल मेरा घर पास में है, वहीँ से खा-पी कर और तैयार होकर शाम को आएँगे। और तू बिलकुल चिंता मत कर रात को मैं तुझे घर भी छोड़ दूँगी।
सोनी --thank you Shalu पर डर लग रहा है।
शालू ---चल चल , ज्यादा अंग्रेज बनने की जरूरत नहीं है , और डरने की तो बिलकुल भी नहीं , समझीं?
और फिर शाम को दोनों सहेलियाँ तैयार हो कर , कम्पटीशन में पहुंचीं।
शालू ने अपना गाना गाकर ख़त्म किया। और तब आया सोनी का नंबर। सोनी को समझ ही नहीं आ रहा था कि कौन सा गाना गाए। अपने गानों की लिस्ट में से उसने अपना एक favorite गाना चुना और एक बार उसकी practice की जिससे कि वो स्टेज पर कहीं भूल न जाए।
और उसकी मीठी आवाज़ ने सभी को मन्त्रमुग्ध कर दिया।
" ऊंचे-नीचे रास्ते और मंजिल तेरी दूर ,
राह में राही रुक न जाना होकर के मजबूर।
ऊंचे नीचे रास्ते और मंजिल तेरी दूर। "
सोनी को पता ही नहीं था कि उसका गला कितना सुरीला है। कभी घर में किसी ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया।
कभी उसने स्वयं भी महसूस नहीं किया कि संगीत में तो उसके प्राण बसते हैं।
पूरा हॉल तालियों की गडगडाहट से गूँज उठा।
सोनी स्टेज से आकर शालू से लिपट गई। शालू ने उसके आँसू पोंछे और उसे सामने लगी भगवान की फोटो दिखाई।
तभी judges ने रिजल्ट announce किया जिसमे सोनी का नाम भी था। अब सोनी को गाने के लिए मुंबई जाना था। आज, अपनी सफलता पर सोनी की आँखों में ख़ुशी के आँसू थे। उसका मन बार-बार अपनी बचपन की सहेली को धन्यवाद करने का हो रहा था।
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एक हफ्ते बाद
सोनी की ट्रेन चलने वाली थी। उसे मुंबई, अपने पहले गाने की recording के लिए जाना था। सभी घर वाले उसकी सफलता और ख़ुशी पर खुश थे कि चलो आई ए एस न बन सकी तो क्या हुआ, singer भी तो बडा नाम और पैसा कमाते है। सोनी बार बार अपनी घडी देख रही थी।
सोनी --अफ़्फ़ो, ये शालू कहाँ रह गई ? ट्रेन चलने वाली है। पता नहीं फिर कब मुलाकात हो। अजीब है ये लड़की भी न , कसम से।
शालू दौड़ती हुई सोनी की ओर आई और सोनी ट्रेन से उतरकर शालू से जोर से लिपट गई।
सोनी --शालू , तू मेरे लिए एक फ़रिश्ते की तरह आई है। सच में आज मैं बहुत खुश हूँ। भगवान हर लड़की को तेरे जैसी सहेली जरूर दे।
शालू --ही ही ही, very funny, क्या कोई सत्य नारायण की कथा चल रही है कि जैसे मेरे दिन बहुरें, वैसे ही आप सब के भी बहुरें।
सोनी --- चल हट , पागल।
शालू ---सोनी सच में आज मैं बहुत खुश हूँ। तेरी सफलता और तेरी ख़ुशी पर मेरी तरफ से ये एक छोटा सा gift है।
सोनी --अरे इसकी क्या जरुरत थी? अरे कहीं मेरी ट्रेन न छूट जाए। वैसे ,क्या है ये ?
शालू --हाँ हाँ , कर ले formality . ये तेरे लिए नहीं , मेरे लिए है। ये एक mobile phone और इसमें मेरा नंबर भी है। जिससे कि कहीं मेरी प्यारी सहेली फिर से मुझसे न बिछड़ जाए। Got it ?
सोनी --ओह,मेरी प्यारी सहेली। सच्ची में शालू, तूने जो रास्ता दिखाया है , अब देखना मैं बहुत मेहनत करूंगी और बंद कर लूंगी अपनी मुट्ठी में आसमान।
शालू --ये हुई न बात। जा सोनी जा, जी ले अपनी जिंदगी।
और दोनों सहेलियाँ दिल खोलकर हंसने लगीं और तभी ट्रेन की आखिरी सीटी बजी और सोनी निकल पड़ी अपनी मंजिल और अपने सपने की ओर।
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Epilogue ; ये सच है कि सच्ची दोस्ती हमें सही मार्गदर्शन देती है। पर ऐसा नहीं है कि माता-पिता, दादा-दादी या नाना-नानी अपने बच्चों के दोस्त नहीं बन सकते। आवश्यकता है तो बस अपने बच्चों से दोस्ती करने की उन पर अपनी इच्छाए थोपने की नहीं।
Friday, 1 January 2016
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