Monday, 18 April 2016

उसी बचपन में जाना है।


उसी बचपन में जाना है। 


ना जाने क्यों हर दर्द में ,
जुबां पर नाम उन का ही आता है। 
उन्हीं के हाथ का खाना ,
आज भी मुझको भाता है। 
कमाई बहुत हुई यारों ,
अब तो घर याद आता है। 
वो माँ की बाहों का झूला ,
मुझे हर पल बुलाता है। 
दे अगर इक और मौका, ऐ जिंदगी ,
बन के मासूम एक बार फिर। 
उस गोदी में सोना चाहता हूँ,
यूँ सिमट जाऊँ माँ के पल्लू में। 
कि फिर जहाँ में कोई ढूंढ न सके। 
भूल कर हर परेशानी और गम को ,
कि  कोई तकलीफ भी मुझे छू न सके। 
आज इक बार फिर बचपन ,
इस तरह क्यों रिझाता है। 
दूर से देख कर आज बचपन ,
भी मुझ पर मुस्कुराता है। 
एक बार फिर भरी बारिश में ,
कागज़ की कश्ती को चलाना  है। 
मुझे फिर लौट के वापिस ,
उसी बचपन में जाना है। 
मुझे फिर लौट के वापिस ,
उसी बचपन में जाना है। 

## ऋतु अस्थाना  ##

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