उसी बचपन में जाना है।
ना जाने क्यों हर दर्द में ,
जुबां पर नाम उन का ही आता है।
उन्हीं के हाथ का खाना ,
आज भी मुझको भाता है।
कमाई बहुत हुई यारों ,
अब तो घर याद आता है।
वो माँ की बाहों का झूला ,
मुझे हर पल बुलाता है।
दे अगर इक और मौका, ऐ जिंदगी ,
बन के मासूम एक बार फिर।
उस गोदी में सोना चाहता हूँ,
यूँ सिमट जाऊँ माँ के पल्लू में।
कि फिर जहाँ में कोई ढूंढ न सके।
भूल कर हर परेशानी और गम को ,
कि कोई तकलीफ भी मुझे छू न सके।
आज इक बार फिर बचपन ,
इस तरह क्यों रिझाता है।
दूर से देख कर आज बचपन ,
भी मुझ पर मुस्कुराता है।
एक बार फिर भरी बारिश में ,
कागज़ की कश्ती को चलाना है।
मुझे फिर लौट के वापिस ,
उसी बचपन में जाना है।
मुझे फिर लौट के वापिस ,
उसी बचपन में जाना है।
## ऋतु अस्थाना ##
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