Tuesday, 26 April 2016

फिर दुनिया ये तेरी मुश्किल में है। 

मैं तुझमें हूँ, तू मुझमें है ,
फिर क्यों खोजूँ, दर दर भटकूँ
जब तू शामिल, कण कण में है
भूखा बन तू रोया,कभी सड़कों पे सोया
घायल पंछी के स्वर में कभी
अबला की करूँण पुकार में है
टूटा जो कोई,तू टूट गया
उसके दुःख में,तू डूब गया
तू गलियों और चौबारों में
तू ही  राम में और रहीम में है
क्यों बहे खून,फिर लोगों का
क्यों छिड़ते नाहक युद्ध यहाँ
क्यों धर्म का पाठ पढाते हैं
जब तू ही बसा हर मजहब में है
तू पाठ पढ़ा,मानवता का
छोड़ें झूठा आडम्बर हम
ये धर्म जाति के ढोल बजा
मारा हमने उस रब को है
जग के स्वामी सुन ले ये पुकार
कुछ तू ही अपना जलवा दिखा
भाई न लडे फिर भाई से
न छुआछूत का बैर पले
गर ये न रुका अब और यहाँ
फिर दुनिया ये तेरी मुश्किल में है।
फिर दुनिया ये तेरी मुश्किल में है।



--------ऋतु  अस्थाना




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