Sunday, 10 April 2016


तो फिर बदनाम हम सरेआम होते हैं !!!!!



क्यों जिंदगी को हम,

  गलत इलज़ाम देते हैं। 

कई बार जिंदगी से गम,

 हम खुद उधार लेते हैं। 

 लगा कर दिल किसी पत्थर से ,

तड़प दिन रात रोते हैं। 

 ख्वाबों में फिर यादें  सजा के,

 मुफ्त में क्यों अधिकार लेते हैं। 

 न है वो तेरा, ये जानकर भी ,

   दिल पे तीर ए नश्तर चुभोते हैं ,

 फिर दर्द को अपना बनाकर। 

 हम आशिकी में यूँ बर्बाद होते हैं। 

कलम जब हाथ में आती है,

 तो फिर बदनाम हम सरेआम होते हैं। 



### ऋतु अस्थाना ##


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