Thursday, 31 March 2016

बहाओ इस कदर गर प्यार का तुम झरना।


बहाओ इस  कदर गर प्यार का तुम झरना। 

सच तो ये है कि कोई किसी से नहीं ,
बस खुद से ही करता है प्यार। 
मतलब के हैं रिश्ते सारे , 
मतलब के सब यार। 
गर सच में दिल है मोहब्बत ,
तो क्यों न बांटे जहाँ में। 
बना ले चल इसे ही ईबादत ,
बिखेरे खुशबू हम गुलिस्तां में। 
झोली अगर भर सके तो ,
प्यार की जहाँ पे है जरुरत।
किसी मासूम को मुस्काना सिखाकर ,
पराए को कभी अपना बनाकर।  
अंधेरों में नन्हा सा इक दीपक जलाकर, 
बुझे  मन में किरण आशा की जगाकर। 
किसी रोते के कभी आंसू तो पोंछो ,
सुकून से दामन न भर जाए तो कहना। 
कहोगे ये कौन सी दुनिया में आये ,
अब तो उमर भर यहीं पे है रहना। 
 ना फिर इश्क की तमन्ना औ न आरज़ू होगी ,
बहाओ इस  कदर गर प्यार का तुम झरना। 
  


-------ऋतु अस्थाना 

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