बहाओ इस कदर गर प्यार का तुम झरना।
सच तो ये है कि कोई किसी से नहीं ,
बस खुद से ही करता है प्यार।
मतलब के हैं रिश्ते सारे ,
मतलब के सब यार।
गर सच में दिल है मोहब्बत ,
तो क्यों न बांटे जहाँ में।
बना ले चल इसे ही ईबादत ,
बिखेरे खुशबू हम गुलिस्तां में।
झोली अगर भर सके तो ,
प्यार की जहाँ पे है जरुरत।
किसी मासूम को मुस्काना सिखाकर ,
पराए को कभी अपना बनाकर।
अंधेरों में नन्हा सा इक दीपक जलाकर,
बुझे मन में किरण आशा की जगाकर।
किसी रोते के कभी आंसू तो पोंछो ,
सुकून से दामन न भर जाए तो कहना।
कहोगे ये कौन सी दुनिया में आये ,
अब तो उमर भर यहीं पे है रहना।
ना फिर इश्क की तमन्ना औ न आरज़ू होगी ,
बहाओ इस कदर गर प्यार का तुम झरना।
-------ऋतु अस्थाना
No comments:
Post a Comment