Friday, 28 October 2016

ज़िन्दगी


ज़िन्दगी  


ज़िन्दगी खूबसूरत होती नहीं ,
बनानी पड़ती है। 
मोती आशाओं के पिरो ये , 
 माला प्यार की  सजानी पड़ती है। 

रूठने मनाने में ही, 
गुज़र न जाए  उम्र कहीं ,
हर खता अपनों की भी कभी ,
हंस के भुलानी पड़ती है।   

जब वक्त रेत की तरह, 
हाथ से फिसल जाता है। 
तो एक बार ज़िंदगी जीने को ,
फिर से जी ललचाता है।  

फ़र्ज़ इंसानियत का,  
कुछ यूँ निभाओ।  
किसी को बनाओ अपना ,
या किसी के तुम हो जाओ।  

 हर ओर अक्स जब अपना ही ,
नज़र आएगा। 
फिर  कोई न किसी का ,
दिल कभी दुःखा  पाएगा।

हर पल  एक त्यौहार है ,
हर दिन दिवाली। 
गर प्यार की दिल में  ,
इक शम्मा जला  ली। 

खिलखिलाओ  तो देखो ,
कितना सुंदर  ये जहाँ है। 
पंख बाजुओं में लगे हैं और ,
ये ज़मीन  आसमान है।  

भुला के शिकवे वो सारे ,
करो दिल से दुआ कि। 
 हों दामन में  सभी के ,
भरे सलमा सितारे।  

बनो दिलदार और ,
मुस्कुराओ बेवजह कि , 
इसकी तो कीमत भी नहीं, 
चुकानी  पड़ती है।  

ज़िन्दगी खूबसूरत होती नहीं ,
बनानी पड़ती है। 
मोती आशाओं के पिरो ये , 
 माला प्यार की  सजानी पड़ती है। 

------ऋतु अस्थाना 

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