ज़िन्दगी
ज़िन्दगी खूबसूरत होती नहीं ,
बनानी पड़ती है।
मोती आशाओं के पिरो ये ,
माला प्यार की सजानी पड़ती है।
रूठने मनाने में ही,
गुज़र न जाए उम्र कहीं ,
हर खता अपनों की भी कभी ,
हंस के भुलानी पड़ती है।
जब वक्त रेत की तरह,
हाथ से फिसल जाता है।
तो एक बार ज़िंदगी जीने को ,
फिर से जी ललचाता है।
फ़र्ज़ इंसानियत का,
कुछ यूँ निभाओ।
किसी को बनाओ अपना ,
या किसी के तुम हो जाओ।
हर ओर अक्स जब अपना ही ,
नज़र आएगा।
फिर कोई न किसी का ,
दिल कभी दुःखा पाएगा।
हर पल एक त्यौहार है ,
हर दिन दिवाली।
गर प्यार की दिल में ,
इक शम्मा जला ली।
खिलखिलाओ तो देखो ,
कितना सुंदर ये जहाँ है।
पंख बाजुओं में लगे हैं और ,
ये ज़मीन आसमान है।
भुला के शिकवे वो सारे ,
करो दिल से दुआ कि।
हों दामन में सभी के ,
भरे सलमा सितारे।
बनो दिलदार और ,
मुस्कुराओ बेवजह कि ,
इसकी तो कीमत भी नहीं,
चुकानी पड़ती है।
ज़िन्दगी खूबसूरत होती नहीं ,
बनानी पड़ती है।
मोती आशाओं के पिरो ये ,
माला प्यार की सजानी पड़ती है।
------ऋतु अस्थाना
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