Tuesday, 24 May 2016

उस दोज़ख मे जलना होगा।

जब तन पे न होगा रेशम,
और न ही कोई गहना होगा।  
दुनिया को फिर बुझे दिल से,
हमे अलविदा कहना होगा।  
चार कंधों पे होके सवार,
तय रास्ता आखिरी करना होगा।
अब तक जो न कभी झुका,
तन वो तब भी अकडा होगा।  
जब अदालत उसकी होगी,
और हिसाब हमारा होगा।
क्या लाए अपने संग,
यह प्रश्न डरावना होगा।  
बस घृणा, द्वेष से,
आजीवन हमने है भरा,
ये माटी का घड़ा।
करें कोशिश छिपाने की लाख,
मगर राज़ ये बतलाना होगा।
जिसे गढा था उसने,
प्यार का सागर जल भरने को।
हम भरते रहे उसमे नफरत,
निज झूठा अहम बचाने को।  
फिर वो ही जाने उसका,
क्या अन्तिम फैसला होगा।
देगा मौका दूसरा या फिर,
उस दोज़ख मे जलना होगा।

उस दोज़ख मे जलना होगा। 

 --------ऋतु अस्थाना    

No comments:

Post a Comment