दर्द को जिसने बड़े करीब से देखा हो
दर्द को जिसने बड़े करीब से देखा हो ,
ढंग जीने का असली वो खुद ही सीख जाता है।
बसर की हो जब अंधेरों में अपनी जिंदगानी,
शमा उम्मीदों की जला के वो फिर गुनगुनाता है।
कि हीरा भी है सिर्फ इक पत्थर सरीखा,
दमकता है तभी जब तराशा उसको जाता है।
चला-चल राही, दामन उम्मीदों का पकड़ कर ,
कि कई बार सूरज भी बरसों बाद आता है।
रख भरोसा कि मंजिल मिल ही जाएगी ,
हिम्मत पे तेरी खुदा भी ऊपर मुस्कुराता है।
आँधियाँ, मुश्किलों की कितनी ही कठिन हों,
दूर फिर भी कहीं नन्हा सा तारा टिमटिमाता है।
दर्द को जिसने बड़े करीब से देखा हो ,
ढंग जीने का असली वो खुद ही सीख जाता है।
------ऋतु अस्थाना
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