Sunday, 1 October 2017

उस मालिक तक पहुंचाए कौन?

उस मालिक तक पहुंचाए कौन?


अर्ज़ियाँ  लिखनी हैं कई ,
उस मालिक तक पहुंचाए कौन?
ये दर्द भरी मेरी पाती,
तुझ बिन और सुनेगा कौन?

हे जग के रचनाकार सुनो,
है तुझसे  इक फ़रियाद सुनो।
या दिल न देता नारी को,
या करता उसको  एक रोबोट,

दर्द न होता सीने में,
उसमें जब गैजेट फिट होता ।
टूटने और चिटकने का,
फिर कोई  नहीं खतरा होता।  

अबला न फिर वो कहलाती,
न आँसू पलकों में भर लाती । 
न  दान कभी उसका होता,
छोटा उसे फिर समझता कौन? 

जग ने जिसको है ठुकराया,
मतलब से अपने है बहलाया। 
हाथों पर गुदवाया नाम, 
दिल के तारों को छू पाए कौन?

वो कौन सा जनम उसका होगा ,
  साँसों का न जब सौदा होगा। 
दम तेरी रचना तोड़ रही,
तोड़ेगा कब तू अपना मौन ?

माँ बन जो प्यार लुटाती है ,
दिल प्रेमी का बहलाती है। 
होती नहीं किसी से कम, 
जीरो फिर भी क्यों कहलाती है?   

मुश्किल जनम है नारी का,
एक अबला का दुखियारी का। 
घुट-घुट के क्यूँकर रोज़ जिए,
न्याय उसे दिलवाए कौन?

या रोबोट बना गैजेट लगा,
या उसको भी सम्मान दिला।  
असली कीमत उसकी जग को,
 तुझ बिन बतलाएगा कौन ?

ये दर्द भरी मेरी पाती ,
उस मालिक तक पहुँचाए कौन ? 

ये दर्द भरी मेरी पाती ,
उस मालिक तक पहुँचाए कौन ? 

---------ऋतु अस्थाना 




No comments:

Post a Comment