Monday, 9 October 2017

शाक्ति का अवतार है

शाक्ति का अवतार है 

शाक्ति का अवतार है 
नारी 
इस जीवन की 
पहचान है 
नारी। 
आँचल की छाँव 
बने कभी 
कभी निर्मल 
गंगा की धार 
है नारी। 

राधा बन 
प्यार लुटाती है 
सीता बन 
साथ निभाती है।  
विष भी अमृत 
हो जाता है 
विश्वास का अमर 
पुराण है  
नारी। 

हर पग पे चुनौती 
से जूझे  
हर मुश्किल में 
मुस्काती है 
अपनी आन 
बचाने को 
करने को रण  
तैयार है 
नारी। 

समंदर सी है 
गहराई
 पर्वत सी
रहती अडिग  
खड़ी। 
एक ओर वो     
 रानी झाँसी है 
दूजे पल 
करुणा की 
बहे नदी। 
ममता की 
मूरत है वो  
दुलार भरी  
सम्मान भरी।
 कितनी पावन 
कितनी कोमल 
 ईश्वर का 
एक वरदान है  
नारी।
 तपती रेत में 
शबनम की 
मीठी सी 
एक फुहार है
 नारी।

अबला नहीं   
वो सबला है
मन धवल 
सरीखा    
उजला है। 
डगमग करती 
इस नैया की   
कुशल सी एक  
पतवार है
नारी।  
सपने हज़ार 
हैं आँखों में 
मन में 
हैं उमंग नई।  
साहस की वो 
एक पुतली है 
सिंहों की  
एक दहाड़ है  
नारी। 
चल पड़ी है 
मस्त पवन
जैसी 
निर्भय होकर  
मतवाली सी।  
मुट्ठी में है 
किस्मत लिए 
सारी जंजीरें 
तोड़ चली।  
जीवन में रंग
 भरने को 
इस दुनिया को   
बतलाने को  
न दया करो 
न करो प्रेम 
न सहारे का 
ही दम भरो।
अब खुद लिखे 
खुद की किस्मत  
अपनी ही 
पहरेदार है 
नारी। 
----ऋतु अस्थाना 

No comments:

Post a Comment