Saturday, 7 October 2017

सुर्ख हिना कहलाऊँगी



सुर्ख मैं हिना कहलाऊँगी 

तो क्या हुआ 
जो 
शाखों से
 तोड़ी मैं जाउंगी। 
तो क्या हुआ 
जो बारीक 
मैं पीसी 
जाऊँगी। 
तो क्या हुआ 
जो गोरी 
के हाथों 
में रच 
रंग सुहाग 
का बन 
मैं जाऊँगी। 
तो क्या हुआ 
किसी के 
हाथों में 
प्यार बन 
मैं शर्म से 
इठलाऊँगी।
तो क्या हुआ 
दर्द इतना सह 
भी लिया 
आखिर तो 
दो दिलों 
को मैं मिलाऊँगी।
सौ बार 
पिसूँगी 
टूटूँगी 
रचूँगी 
तभी तो 
सुर्ख हिना मैं  
कहलाऊँगी 
       ----ऋतु अस्थाना 


         

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