होगा असली तब रावण दहन।
हर वर्ष दहन रावण होता,
हर्ष से मन पुलकित होता।
होती सत्य की विजय सदा ,
पाठ यही प्रचलित होता।
भीतर का सच सबको है पता ,
वो भीतर ही दुबका होता।
यदि बाहर आ जाए कहीं ,
मुख रावण सा सबका होता।
राम का धवल मुखौटा पहन ,
जीते सब ही हैं रावण बन ।
हर पल सिसकती सीता यहाँ ,
हर पल हरण उसका होता।
जब तक न पतन हो पापों का,
झूठों का और मक्कारों का।
हर वर्ष जलाओ रावण पर ,
जीवित वो अगले ही पल होता।
चल अपनेपन की ज्योत जला,
फूँके सब अपना कलुषित मन।
दिखेंगे चहुँओर राम ही राम ,
होगा असली तब रावण दहन।
होगा असली तब रावण दहन।
-------ऋतु अस्थाना
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