दस्तक
मन की निर्मल गलियों में,
इक कोमल सी दस्तक हुई।
नन्ही सी जान की आहट पा,
वो वीणा सी झँकृत हुई।
पल-पल साँसों के तार जुड़े,
हर दर पर दोनों हाथ जुड़े।
रहे स्वस्थ, खुशहाल रहे,
पलकों पे नखरे नाज़ रहें।
और शुभ दिन वो भी आया,
जब महकाया उसने आँचल।
किलकारियों से जब उसने,
सजाया सूना घर आँगन।
छिपकर माँ के आँचल में,
वो बहना को चिढ़ाता था।
पापा के कंधे चढ़कर वो,
शान बहुत दिखलाता था।
कितनी आशा कितनी उम्मीद,
उस बालक से होने लगीं।
मिश्री सी बोली सुन-सुन कर,
माँ सपनों में खोने लगी।
टूटे सपने भीगा आँचल,
जब निष्ठुर सी दस्तक हुई।
माँ अंतिम अब बेला है आई,
रास न निर्मम दुनिया आई।
तू रोना और घबराना मत,
विष दर्द का ये पी जाना तू।
गर मिल जाए कातिल कभी,
कसूर मेरा पुछवाना तू।
माँ हिम्मत रख खुशहाल हूँ मैं,
सब सुख है यहाँ सब बातें हैं। .
पर तेरे आँचल में छिपने को,
मन तरसे बोझिल रातें हैं।
पर तेरे आँचल में छिपने को,
मन तरसे बोझिल रातें हैं।
-------------ऋतु अस्थाना
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