Monday, 30 October 2017

छोटी पर ज़िद्दी जरूर हूँ मैं।

छोटी पर ज़िद्दी जरूर हूँ मैं।

इक नन्ही सी बूँद सही
छोटी पर ज़िद्दी जरूर हूँ मैं।
हिम्मत की हूँ मैं परछाईं
मेहनत का गहरा सुरूर हूँ मैं। 
कमज़ोर नहीं मैं सागर से
उसका ही प्यारा वजूद हूँ मैं।
उछलूँ  के अम्बर को छू लूँ 
खाबों का ऐसा फितूर हूँ मैं।
सागर की गोद में लहराऊँ
 हस्ती भी खोकर मगरूर हूँ मैं।
सीमाएँ कुछ हैं लांघीं पर  
मुजरिम नहीं बेकसूर हूँ मैं।

---ऋतु अस्थाना  
   

Thursday, 19 October 2017

प्रिय सदस्यों ,
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाों के साथ ये कामना है,
शुभ हो, मंगलमय हो
खुशियों का हो वास
लक्ष्मी धन वर्षा करें
गणपति विघ्नों का नाश

--ऋतु अस्थाना 

Thursday, 12 October 2017

ज़िद है हमें। 


ज़िद है हमें 
हट के अलग 
कुछ करने की। 

सहमों में हिम्मत 
भरने की।
पिछड़ों को 
राह दिखने की।  
रूठे हुओं को 
मनाने की। 
ज़िद है हमें। 

भूला है मानव 
 मानवता। 
क्योँ डर के
साए में घुट-घुट
भारत का है   
बचपन जीता।

भटकों को राह 
दिखाने की।  
गिरते हुओं 
को उठाने की।  
ज़िद है हमें। 

कहाँ गया  
वो अपनापन? 
आई कहाँ से 
हवा नई ?
एहसासों की कब 
कब्र बनी? 
 क्यों उस पे   
छलकाते हैं जाम?

आशा की 
ज्योत जलाने की।   
फिर अपना चमन 
सजाने की।   
ज़िद है हमें। 

अपने घर के 
आँगन को 
 खुशबू से फिर  
महकाने की। 
पत्थर सरीखा 
दिल हुआ 
उस पत्थर को  
 पिघलाने की।
ज़िद है हमें।  

रात बड़ी ही 
गहन सही। 
होता है  
दूर सबेरा नहीं। 
भटका है वो 
पर संभलेगा। 
एक बार को  
फिर से जागेगा।

फिर से बचपन
खेलेगा। 
फिर से कलियाँ 
मुस्काएंगी।
बादल काले 
छँट जाएँगे।  
उजला होगा फिर 
सबका मन।
 होगा ऐसा फिर 
अपना वतन।  

बंजर में फूल 
उगाने की। 
माली बन 
बाग़ सजाने की। 
हर पंछी 
 निर्भय जहाँ उड़े। 
एक ऐसा 
भारत बनाने की। 
ज़िद है हमें। 
एक ऐसा 
भारत बनाने की।  
ज़िद  है हमें। 

 ----ऋतु अस्थाना 


Monday, 9 October 2017

शाक्ति का अवतार है

शाक्ति का अवतार है 

शाक्ति का अवतार है 
नारी 
इस जीवन की 
पहचान है 
नारी। 
आँचल की छाँव 
बने कभी 
कभी निर्मल 
गंगा की धार 
है नारी। 

राधा बन 
प्यार लुटाती है 
सीता बन 
साथ निभाती है।  
विष भी अमृत 
हो जाता है 
विश्वास का अमर 
पुराण है  
नारी। 

हर पग पे चुनौती 
से जूझे  
हर मुश्किल में 
मुस्काती है 
अपनी आन 
बचाने को 
करने को रण  
तैयार है 
नारी। 

समंदर सी है 
गहराई
 पर्वत सी
रहती अडिग  
खड़ी। 
एक ओर वो     
 रानी झाँसी है 
दूजे पल 
करुणा की 
बहे नदी। 
ममता की 
मूरत है वो  
दुलार भरी  
सम्मान भरी।
 कितनी पावन 
कितनी कोमल 
 ईश्वर का 
एक वरदान है  
नारी।
 तपती रेत में 
शबनम की 
मीठी सी 
एक फुहार है
 नारी।

अबला नहीं   
वो सबला है
मन धवल 
सरीखा    
उजला है। 
डगमग करती 
इस नैया की   
कुशल सी एक  
पतवार है
नारी।  
सपने हज़ार 
हैं आँखों में 
मन में 
हैं उमंग नई।  
साहस की वो 
एक पुतली है 
सिंहों की  
एक दहाड़ है  
नारी। 
चल पड़ी है 
मस्त पवन
जैसी 
निर्भय होकर  
मतवाली सी।  
मुट्ठी में है 
किस्मत लिए 
सारी जंजीरें 
तोड़ चली।  
जीवन में रंग
 भरने को 
इस दुनिया को   
बतलाने को  
न दया करो 
न करो प्रेम 
न सहारे का 
ही दम भरो।
अब खुद लिखे 
खुद की किस्मत  
अपनी ही 
पहरेदार है 
नारी। 
----ऋतु अस्थाना 

Saturday, 7 October 2017

सुर्ख हिना कहलाऊँगी



सुर्ख मैं हिना कहलाऊँगी 

तो क्या हुआ 
जो 
शाखों से
 तोड़ी मैं जाउंगी। 
तो क्या हुआ 
जो बारीक 
मैं पीसी 
जाऊँगी। 
तो क्या हुआ 
जो गोरी 
के हाथों 
में रच 
रंग सुहाग 
का बन 
मैं जाऊँगी। 
तो क्या हुआ 
किसी के 
हाथों में 
प्यार बन 
मैं शर्म से 
इठलाऊँगी।
तो क्या हुआ 
दर्द इतना सह 
भी लिया 
आखिर तो 
दो दिलों 
को मैं मिलाऊँगी।
सौ बार 
पिसूँगी 
टूटूँगी 
रचूँगी 
तभी तो 
सुर्ख हिना मैं  
कहलाऊँगी 
       ----ऋतु अस्थाना 


         

Thursday, 5 October 2017

चाँद को क्या मालूम

चाँद है बेखबर 


चाँद है बेखबर ,
कि कोई है  
जो चाहे उसे।  
कोई पूजे  
कोई निहारे उसे।  
कोई दिल के 
हर कतरे से 
टूट कर 
माँगे तुझे। 
ये इकतरफा 
इश्क 
हर पल यूँ सताएगा। 
न मिल सकेंगे 
दो दिल 
ये  मिलन
 अधूरा ही 
रह जाएगा।   
ख़्वाबों का  
सिलसिला ये   
न थमा है 
न थमने पाएगा।   
तू मेरा हो 
न हो पर 
चाहत तो 
रहेगी सदा।   
साँसों में सांस है 
जब तलक 
हर आस ये 
कहेगी सदा।  
नाता रूहानी  
मेरा तुझसे है 
तुझसे ही रहेगा सदा ।  
तू मेरा हो न हो 
दिल ये तेरा था 
तेरा  है 
तेरा ही रहेगा सदा।  
तेरा ही रहेगा सदा। 


------ ऋतु अस्थाना 

 ज़िंदगी 


ज़िन्दगी आसान,
 होती नहीं,
बनानी ही पड़ती है। 
गम की ये टोकरी ,
सिर पे हंसकर,
उठानी ही पड़ती है। 
चुनौती कैसी भी ,
कोई भी आ जाए ।  
करो तुम सामना ,
निर्भीक होकर। 
हंसो खिलखिलाओ ,
कि अपना ही जहाँ है। 
 हर पल यूँ जियो , 
कि जैसे जीवन नया है।  
चाल हो, अंदाज़ हो। 
जीने में कुछ अलग ही ,
  कुछ बात हो। 
दिवाली हर रोज़ ,
कुछ यूँ  मनाओ। 
कि दरिया प्यार का, 
इस कदर बहाओ। 
हर तरफ प्यार की ,
बरसात हो।  
बनो दीपक कि, 
रोशन जहाँ हो ।  
तेल हो ललकार का , 
हो हिम्मत की बाती। 
होगी दूर हर मुश्किल ,
ये आस तो ,
 लगानी ही पड़ती है।  
सुबह के इंतज़ार ,
में ऐ यारा ,
रात सब्र से ,
बितानी ही पड़ती है 
ज़िन्दगी आसान,
होती नहीं ,
बनानी ही पड़ती है। 
गम की ये टोकरी, 
 सिर पे हंसकर ,
उठानी ही पड़ती है। 
गम की ये टोकरी,
 सर पे हंसकर ,
उठानी ही पड़ती है।  
         
------------ ऋतु अस्थाना 


Sunday, 1 October 2017

उस मालिक तक पहुंचाए कौन?

उस मालिक तक पहुंचाए कौन?


अर्ज़ियाँ  लिखनी हैं कई ,
उस मालिक तक पहुंचाए कौन?
ये दर्द भरी मेरी पाती,
तुझ बिन और सुनेगा कौन?

हे जग के रचनाकार सुनो,
है तुझसे  इक फ़रियाद सुनो।
या दिल न देता नारी को,
या करता उसको  एक रोबोट,

दर्द न होता सीने में,
उसमें जब गैजेट फिट होता ।
टूटने और चिटकने का,
फिर कोई  नहीं खतरा होता।  

अबला न फिर वो कहलाती,
न आँसू पलकों में भर लाती । 
न  दान कभी उसका होता,
छोटा उसे फिर समझता कौन? 

जग ने जिसको है ठुकराया,
मतलब से अपने है बहलाया। 
हाथों पर गुदवाया नाम, 
दिल के तारों को छू पाए कौन?

वो कौन सा जनम उसका होगा ,
  साँसों का न जब सौदा होगा। 
दम तेरी रचना तोड़ रही,
तोड़ेगा कब तू अपना मौन ?

माँ बन जो प्यार लुटाती है ,
दिल प्रेमी का बहलाती है। 
होती नहीं किसी से कम, 
जीरो फिर भी क्यों कहलाती है?   

मुश्किल जनम है नारी का,
एक अबला का दुखियारी का। 
घुट-घुट के क्यूँकर रोज़ जिए,
न्याय उसे दिलवाए कौन?

या रोबोट बना गैजेट लगा,
या उसको भी सम्मान दिला।  
असली कीमत उसकी जग को,
 तुझ बिन बतलाएगा कौन ?

ये दर्द भरी मेरी पाती ,
उस मालिक तक पहुँचाए कौन ? 

ये दर्द भरी मेरी पाती ,
उस मालिक तक पहुँचाए कौन ? 

---------ऋतु अस्थाना