मत कर पापी तू गर्भपतन।
हर घर की शान,
और होंठों की मुस्कान है,
बेटी।
माँ के दिल का अरमान,
औ पिता की जान है,
बेटी।
ईश्वर का दिया एक सुन्दर,
गले का हार है ,
बेटी।
माँ का दर्द समझ स्नेह का,
मलहम लगाती है ,
बेटी।
पिता के हौसलों को और भी,
बुलंद बनाती है,
बेटी।
हर एक घर को स्वर्ग सा,
सुन्दर बनाती है,
बेटी।
ससुराल में परायों को भी,
अपना बनाती है,
बेटी।
हर दर्द को चुपके से कभी,
पी जाती है
बेटी।
बदकिस्मत हैं जो कहते,
कि एक बोझ है,
बेटी।
बेटी कोई बोझ नहीं,
बल्कि बोझ उठाती है,
बेटी।
माँ सा आँचल कभी तो,
कभी स्नेह का धागा है ,
बेटी।
निर्मल जल की धारा सी,
हर मायके का अभिमान है.
बेटी।
ससुराल की शान और,
एक बाबुल की पहचान है,
बेटी।
बेटी को ना बोझ समझ,
बेटी को ना बोझ समझ,
ये तो है अनमोल रतन। ये तेरा मान बढ़ाएंगी ,
मत कर पापी तू गर्भपतन।
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