Wednesday, 14 October 2015

दिलों में सब के रौशनी हो


दिलों में सब के रौशनी हो



जलाएँ दिए ऐसे, घरों में ही नहीं,
 दिलों में सब के रौशनी हो। 
 पराए दुःख को भी अपना समझना,
जो राहें दिल को दिल से जोड़नी हों। 

अँधेरा फासलों का ये बढ़ता जा रहा है ,
हर रिश्ता अब सिमटने सा लगा है। 
 मगन हैं  भरने में अपने सब सुख की झोली ,
प्यार का सागर भी अब घटने लगा है।

आपसी रंजिशों को क्यों न भुलाकर,
दिलों में प्रेम का दीपक जलाकर।
 किसी के रास्ते में गम न आए,
  करें कोशिश किसी के हम काम आऐं । 

अँधेरा और न फिर ठहर पाएगा ,
जब दिल सभी के एक होंगे। 
मिटेंगे फासले जब धर्म जाति के ,
 दिए फिर इस धरा पर कम न होंगे । 


------------------------


No comments:

Post a Comment