मन का रावण नहीं जलाते हैं।
हर साल जलाते रावण पर ,
मन का रावण नहीं जलाते हैं।
हर बरस जो होता है पैदा ,
बुराइयों को नहीं दफनाते हैं।
घंटा मंदिर का बजा-बजा ,
नित राम को तो जगाते हैं।
भीतर का रावण पाल सदा ,
हम गीत ख़ुशी के गाते हैं।
बुराई का जब रावण दहन होगा ,
तब राम हृदय में आएँगे।
सबकी आँखों में प्यार बन ,
वो मंद-मंद मुस्काएँगे।
जग में होगी शांति फैली ,
न उदासी का कोई जमघट होगा।
जो मन में राम करेंगे वास ,
तो फिर बंद ये रावण दहन होगा।
---------ऋतु अस्थाना
No comments:
Post a Comment