जादू ये कैसा छा रहा है।
जादू ये कैसा छा रहा है,
कोई चुपके से मन में,
समा रहा है।
जिसकी सूरत निगाहों से,
हटती नहीं।
जिसकी मूरत सलोनी ,
बिसरती नहीं।
किसी रौशनी की ,
अब है मुझको क्या जरुरत।
जब अंधेरों में दिया बन ,
तू जगमगा रहा है।
जादू ये कैसा छा रहा है,
कोई चुपके से दिल में,
समा रहा है।
तड़पती आत्मा ये मेरी ,
दर्शन को है प्यासी।
भर के प्रेम की मटकी ,
खोज में वन वन भटकी।
सांवरे तू मुझमे में ही,
सदा से बसता रहा है।
समझ ये बावला मन,
क्यों नहीं पा रहा है।
जादू ये कैसा छा रहा है ,
कोई चुपके से मन में ,
समा रहा है।
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