Tuesday, 2 June 2015

नज़राना MNC का भाग ३






तीसरा भाग 




रवि की माँ उसके मन की बात बिना कुछ कहे ही समझ जाती हैं। पर वो उस पर किसी भी तरह का कोई दबाव नहीं डालना चाहती हैं। उन्हें अपने बेटे पर पूरा विश्वास होता है।

एक दिन रवि अपने माता पिता साथ सारा के घर जाता है। वे सब सारा के लिए चिंतित होते हैं।

सारा की माँ, रवि से अत्यधिक प्रभावित होती है। उनके मन में विचार आता है कि यदि रवि सारा को अपना ले   तो फिर समाज में उनकी बदनामी होने से बच जाएगी। वे रवि को अकेले में बुलाती हैं। 

रवि पूछता है, " जी कहिये आंटीजी बताइये , कुछ काम था मुझसे ?"

सारा की माँ कहती हैं, " बेटा, कहते अच्छा तो नहीं लगता पर क्या करें कोई और रास्ता भी नहीं है। "

रवि कहता है," अरे आंटीजी आप बेझिझक हो कर कह सकती है। बताइये। "

सारा की माँ मगरमच्छी आंसू पोंछते हुए कहती हैं, " मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हे सारा पसंद है।  इसीलिए तुम सदा उसके लिए चिंतित रहते हो। "

रवि शरमाते हुए कहता है, " हाँ, आंटीजी, मुझे भी कुछ ऐसा ही लगता है।  पर सारा मुझे पसंद नहीं करती। मेरा मध्यमवर्गीय परिवार से होना ही उसे पसंद नहीं तो मै  क्या पसंद आऊंगा। मुझे अपने लगाव का भान तब हुआ जब मैंने उसे गलत राह पर बढ़ते देखा। मैंने उसे समझाने का बहुत प्रयास भी किया किन्तु संभवतः ये दुर्घटना उसकी किस्मत में थी। "

रवि की आँखों में असीम दुःख के बादल घिर आए। 

सारा की माँ की अनुभवी आँखे रवि की बातो की सच्चाई समझ गई। 

वो कहती है, " बेटा, वो बेवकूफ लड़की है जिसे हीरे और पत्थर में फर्क करना नहीं आया। मध्यमवर्गीय परिवार के हो तो क्या हुआ ? मेहनत से तो कोई भी गरीब से अमीर बन सकता है। तुम बिलकुल चिंता मत करो मै सारा के पिता के काम में तुम्हे अच्छे पद पर काम दिला दूंगी। और शादी के बाद तुम दोनों हमारे साथ ही रह सकते हो। तब तो उसे कोई परेशानी नहीं होगी ?"

रवि ये सब सुनकर सकते में आ गया। 

वो हड़बड़ा कर बोलता है," क्या ? आप मेरी और सारा की शादी की बात कर रही है ? मै आपको बता चुका हूँ कि वो मुझे तनिक भी पसंद नहीं करती है। और यदि कर भी ले तो बिना मेरे माता पिता की मर्जी के मै कुछ नहीं कर सकता। "

रवि को समझते हुए सारा की माँ कहती है ," देखो तुम्हे,हमारे पास जीवन के हर सुख मिलेंगे। एक गरीब माँ बाप अपने बेटे को दे भी क्या सकते है ?"

रवि अपने क्रोध पर जैसे तैसे नियंत्रण रखे हुए था। बड़ों का अपमान करना उसे नहीं आता पर वो अपने माता पिता का अपमान भी  नहीं सहन कर सकता था। 

रवि कहता है , " मेरे माता पिता मेरे लिए भगवान समान हैं। यदि मुझे नमक रोटी खा कर भी उनके साथ रहना पड़े तो भी मैं उफ़ तक न करूँगा। भले ही उन्होंने मुझे कीमती कपडे, महंगे खिलौने न दिलाए हो पर प्यार का वो बहुमुल्य खजाना दिया है जिसका ऋण मैं दस जन्मों तक भी नहीं चुका सकता हूँ। इसलिए कृपा कर मेरे माता पिता को कुछ न कहे मैं सहन नहीं कर  सकता हूँ। "

अगले दिन रवि सारा की माँ को एक अनाथालय ,"बेसहारा" में बुलाता है। वो  मन ही मन सारा की माँ को सबक सिखाने  का प्रण करता है। 

अगले दिन सारा की माँ उचित समय पर "बेसहारा" अनाथालय पहुँचती हैं। चूँकि वो वहां पर दान का काम करती हैं इसलिए उनका वहां पर भव्य स्वागत होता है। वो रवि को दिखाती हैं कि देखो मेरे पैसों की शक्ति। रूपए पैसों की ताकत का अंदाजा लगाकर शायद रवि, सारा से शादी के लिए हाँ कर दे। उनका मुखमंडल घमंड से भरा हुआ था। 

किसी अनाथ के लिए दया भाव है इस नाते वो वो यहाँ दान करने नहीं आती हैं बल्कि समाज में उनके दानी होने का, पैसे वाले होने का डंका बजाने के लिए आती हैं। 

रवि मन ही मन मुस्कुराता है। वो कतार में बैठे बच्चों के साथ ही बैठ जाता है। सारा की माँ सूट बूट में उसे जमीन पर बैठा देखकर दंग रह जाती हैं। 

उनसे रहा नहीं जाता और पूछती हैं, " रवि , अरे यहाँ नीचे क्यों बैठ गए ? ऊपर बैठो। क्या भूख लगी है?"

रवि कहता है, " हाँ,हाँ आंटीजी, बड़ी जोर से भूख लगी है। जल्दी से परोस दीजिये। क्यों बच्चों ? जल्दी खाना चाहिए , है ना ?"

सारे बच्चे जोर से हामी भरते हैं।  पूरा हाल बच्चों की  खिलखिलाहट से गूंज जाता है। 

सारा की माँ हकलाते हुए , " क्या???  मै?? ? मै खाना परोसूंगी? ये क्या कह रहे  हो रवि ?"

रवि अपनी चाल चल चुका था। उसे पता था कि इस समय वो उसकी किसी बात को मना नहीं करेंगी। वो चुपचाप अपनी रहस्य्मय मुस्कान के साथ बैठा उनके खाना परोसने की प्रतीक्षा करता रहा। 


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क्रमशः......
to be continued.......








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