Tuesday, 23 June 2015

नज़राना MNC का भाग 5




 पाँचवाँ भाग



यद्यपि सारा के माता पिता की आँखें अब तक खुल चुकी थीं ,किन्तु फिर भी रवि का हृदय उनकी ओर से टूट चुका था। वो सारा को इस दर्द , इस अपमान और सामाजिक प्रताड़ना से उबारना चाहता था पर उसे अपना आत्म सम्मान और अपने माता पिता का स्वाभिमान भी प्रिय था। रवि , सारा और उसके माता पिता के रूखे व्यवहार से आहत हो चुका था अतः वो अब सब कुछ ईश्वर के हाथों में सौंपकर , अपना मन काम में लगाने का प्रयास करता है।
सारा के माता पिता उसे भी रवि और उसके माता पिता के विषय में सारी  बातें बताते हैं। सारा भीतर से रवि से बहुत प्रभावित थी ही पर अब उसे रवि अधिक अच्छा लगने लगता है। वो अपना मन मसोस कर रह जाती है। वो सोचती है कि वो कितनी नासमझ थी कि उसने हीरे के स्थान पर एक पत्थर को चुना।

सारा की माँ , उसके रवि के प्रति लगाव को समझ जाती हैं। वो निश्चय  करती हैं कि एक बार इस सम्बन्ध के लिए पुनः प्रयास करती हूँ। पर इस बार केवल रवि से नहीं उसके माता पिता से भी ससम्मान बात करनी होगी।


सारा के माता पिता  उसे लेकर शाम को रवि के घर पहुँचते है।
रवि के माता पिता उनका खुले मन से स्वागत करते हैं।

रवि की माँ पूछती हैं , "सारा कैसी हो बेटा ? तबियत ठीक है ?"
सारा हाँ में अपना झुका हुआ सर हिलाती है। अब तक उसका पांचवा महीना लग गया था और उसका थोड़ा बहुत  पेट दिखने भी लगा था।

रवि की माँ सारा को अपने बैडरूम में ले जाती हैं। वो कहती हैं कि उसे थोड़ा आराम करना चाहिये।

बेड  पर एक ओर  रवि के माता पिता और दूसरी और रवि  की फोटो रखी हुई थी। सारा, रवि की फोटो उठा कर देखने लगती है। न जाने क्यों उसकी आँखों से स्नेह रुपी जल छलक छलक  कर बहने लगता है। वो स्वयं पर अति शर्मिंदा होती है। आज उसका हृदय सच में रवि के नाम से धड़कता है। सच्चे प्यार में कोई उंच नीच , कोई दीवार नहीं होती , उसे ये आभास होता है।


बाहर बैठक में सारा की माँ , रवि के माता पिता से कहती हैं ," मै अपने समाज में होने वाली उपेक्षा और बदनामी  के कारण नहीं अपितु इन बच्चों के प्यार के कारण , इनका रिश्ता करना चाहती हूँ।  यदि आप लोगों की  आज्ञा हो तो। "

रवि की माँ कहती हैं , " देखिये बहनजी , हमें कोई आपत्ति नहीं है पर रवि की इच्छा सर्वोपरि है।  यदि वो सहमत है और सारा सहमत है तो हमें क्या आपत्ति हो सकती है ?"

तभी रवि ऑफिस से वापस आ जाता है।  वो उनकी बातें सुन लेता है। अब तक वो सारा के माता पिता को क्षमा नहीं कर पाया था। उसे नहीं पता था कि उनके आँखों पर बंधी धन रूपी पट्टी अब तक खुल चुकी थी।

रवि अनमने स्वर से कहता है , " आप लोग क्यों इस शादी के पीछे पड़े हैं ? अच्छा, अब समझा , आपको समाज में होने वाली बदनामी की चिंन्ता है। मेरा एक सुझाव माने तो कहूँ। आप सारा के बच्चे को किसी अनाथालय में डालकर, सारा को अमेरिका भेज दीजियेगा। आप के पास तो बहुत पैसा है ना  ?  पैसों की शक्ति से आप कुछ भी खरीद सकते हैं। सारा को वहां कोई परेशानी नहीं होगी, क्योंकि वो एक मॉडर्न लड़की है। "

सारा के माता पिता दंग  रह जाते हैं। रवि उनसे ऐसा व्यव्हार करेगा उन्होंने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था।
कमरे से सारा भी सब बातें सुन रही थी।

रवि आगे कहता है , "अच्छे अनाथालय में बच्चे की अच्छी तरह से देखभाल हो जाएगी।  आप चिंता ना करें।  हो सके तो थोड़ा चंदा अधिक दे दीजियेगा वहां पर।  एक पंथ दो काज हो जाएंगे , आप लोग  उदार हृदय भी कहलाएंगे और बच्चे से होने वाले सामाजिक अपमान से भी बचेंगे। "

रवि की माँ उसे चुप कराती हैं , " ये क्या कह रहा है तू रवि ? दूसरों के जले पर नमक छिड़कना हमने कब तुझे सिखाया बेटा ? ये कैसा व्यवहार है अतिथियों के साथ ?"

रवि आगे कहता है , " नहीं माँ ये तूने नहीं समय ने मुझे सिखाया है। और औंटीजी एक बात और , हर बच्चे की किस्मत में मेरे जैसे माता पिता नहीं होते पर फिर भी मैं प्रार्थना करूँगा की सारा के बच्चे को कोई अच्छे दंपत्ति ही गोद  लें और उसका भविष्य उज्जवल बनाएँ। "

सारा रोते हुए बाहर चली जाती है।  रवि , सारा की आँखों में छिपे दर्द और पछतावे को समझ जाता है किन्तु उसे रोकता नहीं है।  सारा के पीछे पीछे उसके माता पिता भी चले जाते हैं।  रवि के माता पिता हाथ जोड़े ही खड़े रह जाते हैं।
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रवि के माता पिता उसके इतने रूखे व्यवहार से दंग  रह जाते हैं। तब रवि उन्हें पिछली सारी  बातें बताता है।  वो बताता है कि कैसे सारा की माँ उसे धन का लालच देकर अपनी बेटी का विवाह उससे करना चाहती थीं।  और तो और उसे मध्यमवर्गीय माता पिता की संतान होने का आभास भी कराया।

रवि की माँ उसे समझती हैं कि प्रत्येक को अपनी  गलती सुधारने का एक अवसर अवश्य ही मिलना चाहिए। रवि के पिता भी उनसे पूरी तरह सहमत थे।


रवि के पिता कहते हैं , " बेटा, किसी  का भी अपमान करना अपने संस्कार नहीं हैं। तुमने उनको सही मार्ग दिखाने का जो प्रयत्न किया था , क्या पता वो सफल हो गया हो ? जब तक हम उनसे मिलकर बातचीत नहीं करेंगे हम कैसे जान पाएंगे ? मुझे तो उनका बर्ताव, अपनी बेटी के साथ बदला हुआ प्रतीत हो रहा था। बेटा किसी  भी बात को हम उम्र भर हृदय से नहीं लगा सकते। वो कहावत तो तुम्हे पता ही है ना कि " क्षमा बड़ेन  को चाहिए। "
क्षमा करने वाला सदा ही बड़ा होता है।  इसलिए पुरानी बातों को मन से निकाल कर उन्हें क्षमा कर दो। सारा से विवाह करने को मैं तुम्हे बाध्य नहीं करूँगा  ये तुंहारा अपना निर्णय है। और हम सदा तुम्हारे साथ हैं हमारे बच्चे। "


कहकर रवि के पिता ने उसे एक नन्हे बचे की तरह गले लगा लिया। उसकी माँ भी कहाँ अवसर छोड़ने वाली हैं , वो भी आकर अपने प्यारे बच्चे से लिपट जाती हैं । इतने सुन्दर और खुशहाल परिवार का वो दृश्य सही मायनो में देखने योग्य था।  सभी की आँखों से स्नेह रूपी जल निकल रहा था।

रवि स्वयं को अत्यंत गौरवान्वित समझ रहा था।  उसे अपने का  माता पिता का हर मुश्किल घडी में  यूँ  उसे सम्भालना और उचित मार्गदर्शन देना बड़ा ही अच्छा लगता है । उनकी गोद में आज भी उसे असीम सुख की प्राप्ति होती है ।

अब उसका मन अत्यंत शांत हो गया जाता है ।

शाम को ऑफिस से आते ही रवि ने कहता है कि सब लोग सारा के घर चलते हैं। वो उन सब से क्षमा माँगना चाहता हूँ। रवि के माता पिता मुस्कुराते हुए तैयार होने चले जाते हैं।


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सारा के माता पिता अब उसका पूरा ध्यान रखते हैं। अब तक जिस बच्ची को उन्होंने तनिक भी समय नहीं दिया था , अब उसे तनिक भी अकेला नहीं छोड़ते। सारा , समझ गई थी कि इतने बड़े बदलाव का श्रेय केवल और केवल रवि को ही जाता है।  वो रवि का अत्यधिक सम्मान करने  लगती है।

सारा की माँ भी अपनी बेटी के हृदय को पढ़ने का प्रयास करती हैं।

सारा की माँ , "सारा अच्छा ही हुआ जो रवि से तेरा विवाह नहीं हुआ।  तू तो उसके साथ एक पल भी न रह पाती। एक तो लड़का दिखने में भी साधारण सा है और दुसरा धन दौलत भी नहीं है उसके पास। कहाँ तू इतने ऐशो आराम में पली कोमल सी लड़की। चल हम कोई और रास्ता निकालेंगे। तू तनिक भी चिंता मत कर। "

सारा कहती है , " नहीं माँ , रवि एक बहुत ही अच्छा लड़का है।  उसने मुझे गलत रास्ते पर जाने से रोकने के अनेकों प्रयास किए किन्तु मैं अपने दम्भ में आगे बढ़ती गई। जहाँ तक प्रश्न है धन दौलत का तो लड़के में कुछ कर दिखने की ललक होनी चाहिए, जो उसमे है। और माँ वो गरीब नहीं , गरीब तो हम हैं , हमारी छोटी मानसिकता है। यदि रवि मुझे आपके कहने पर अपना लेता तो संभवतः मैं जीवन भर उसे सम्मान नहीं दे पाती। किन्तु आज मै उसकी ह्रदय से पूजा करती हूँ। माँ,  मेरे लिए चिंता ना करना।  बच्चे के जन्म के बाद मैं उसे लेकर अमरीका चली जाउंगी और उसकी एक अच्छी माँ की तरह परवरिश करुँगी। मै ये भरसक प्रयास करुँगी कि मेरा बच्चा रवि की ही तरह एक संस्कारी लड़का बने। "


कहकर सारा फफक फफक कर रोने लगती है। उसका  दम्भ, उसका अभिमान उसके आंसुओं के साथ बहने लगता है।

तभी उसे अपने कंधे पर किसी का स्पर्श प्रतीत होता है। पर ये क्या , ये तो रवि है ? माँ कहाँ चली गई ?
आंसू पोंछते हुए सारा रवि से हाथ जोड़कर नमस्ते करती है। पर अब औपचारिकता, आत्मीयता में परिणित हो चुकी थी।
रोते रोते सारा कहती है , " रवि मुझे और मेरे माता पिता को क्षमा कर देना।  हमने तुम लोगों का बड़ा हृदय दुखाया है। "

रवि मुस्कुराते हुए कहता है , "हाँ तो बच्चे को तुम मेरे जैसा बनाना चाहती हो? "
सारा सकपका जाती है। वो हकलाने लगती है।
रवि उसके पास आकर उसके मुख पर हाथ रख देता है , " बच्चे तो माता पिता की छाया  ही होते हैं पगली।  तुम अकेले नहीं हम दोनों मिलकर अपने बच्चे को एक अच्छा इंसान बनाएँगे। "

रवि उसके कान में पूछता है , " तो इस मध्यमवर्गीय लड़के की पत्नी बनोगी सारा ?"
सारा उसके मुख पर हाथ रख देती है और उससे लिपटकर जोर जोर से रोने लगती है। रवि दृढ़ता से उसे संभालता है और उसके मस्तक पर अपने निस्वार्थ प्रेम का एक चिह्न लगा देता है।

बाहर खड़े दोनों के माता पिता अपने अपने आँसू पोंछते हुए आनंदित होते हैं ।




======समाप्त===========










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