Thursday, 18 June 2015

नज़राना MNC का भाग 4



चौथा भाग 


सारा की माँ किसी भी प्रकार से रवि को नाराज नहीं करना चाहती थी। उन्होंने सोचा कि यदि वो इससे खुश हो जाता है तो कोई बात नहीं।  वो रवि और सारा का विवाह कर स्वयं को समाज में होने वाली बदनामी से बचाना चाहती थी। उन्हें अपनी बच्ची के दुःख का जरा भी अंदाजा नहीं था। 

रवि, सारा की माँ की आँखे खोलने की प्रतिज्ञा कर चुका था। उसका मानना था कि जिस प्रकार कुम्हार गीली मिटटी को कोई भी अकार देने में सक्षम है, उसी प्रकार  माता-पिता यदि चाहें तो बच्चे को उचित संस्कार देकर उसका जीवन संवार सकते हैं। सारा के दुःख के  उत्तरदायी निःसंदेह उसके माता पिता ही है। 

रवि भी सारा की माँ को अच्छे से पहचान गया था। वो मंद मंद मुस्कराहट के साथ सब बच्चो के साथ जमीन पर बैठा रहता है ।
सारा की माँ न चाहते हुए भी सब बच्चों को खाना परोसती हैं।
रवि बड़े आराम से खाना खाता है।
सारा की माँ उसे गहन आश्चर्य से घूरती हैं। उन्हें लगता है कि रवि अपना बड़प्पन उसे दिखाना चाहता है , इसीलिए ये सब नाटक कर रहा है।

रवि कनखियों से देखता है कि सारा की माँ ,रुमाल से अपना पसीना पोंछ  रही हैं।

रवि उनसे पूछता है ," औंटीजी , आपको कैसा लगा इन अनाथ बच्चों को अपने हाथों से खाना खिलाकर ? अधिक थकान तो नहीं हुई?"

सारा की माँ अपने मन के सुकून को छिपा न सकीं। वो बोलीं ," रवि, सच में इन मासूमो को खाना परोसकर एक अलग से सुख का अनुभव होता है। मै यहाँ कई बार आ चुकी हूँ पर आज तक इस ख़ुशी की अनुभूति  कभी नहीं हुई थी।  इसके लिए युम्हारा बहुत  बहुत धन्यवाद रवि। "

रवि मुस्कुराते हुए बोला , "सही कहा आपने आंटी जी, इन मासूम बच्चो का साथ, मानो ईश्वर का साथ हो। ऐसा ही सुख हर माँ को मिलता है। पर कुछ माँ  झूठे दिखावे और खोखली आधुनिकता की दौड़ में इस असीम सुख से वंचित  रह जाती  हैं। मुझे तरस आता है उन माँ पर। "

रवि का तीर बिलकुल निशाने पर लगा।  सारा की माँ ये सोचने पर विवश हो गई कि उनको ये सुख क्यों नहीं प्राप्त हुआ ?"

उन्होंने मन ही मन कुछ निर्णय लिया और रवि से तुरंत आज्ञा लेकर अपने घर पहुचती हैं।

सारा की माँ घर के बाहर से ही तेजी से उसे पुकारती हुई आती हैं।
सारा आश्चर्य से पुछ्ती है ," हाँ माँ , क्या हो गया ?"

सारा की माँ आते ही उसे अपने सीने से लगा लेती हैं। आज वो अपनी वर्षों की भूल को सुधारना चाहती है।
सारा की माँ उससे कहती है ," तू बिलकुल चिंता मत कर मेर्री बच्ची।  हम तेरे साथ हैं। हमारे  प्यार और ईश्वर की कृपा से सब ठीक हो जाएगा।  आज से मै  तेरा पूरा ख्याल रखूंगी। "

सारा की आँखों में सुख के आंसू आ गए।  वो अपनी माँ से यूँ लिपट गई मानो एक छोटी बच्ची को कई वर्षों पश्चात अपनी बिछड़ी हुई माँ मिली हो।

-------------

कुछ दीनों पश्चात, रवि, सारा की माँ को फ़ोन कर एक नर्सिंग  होम में बुलाता है।  सारा की माँ आश्चर्य में पङ  जाती हैं।  पर रवि अब उन्हें सच में बहुत ही अच्छा लड़का लगने लगा था अतः वो बिना नानुकुर के अपने पति के साथ वहां  चली जाती हैं।

रवि , सारा की माँ और पिता को एक लेडी डॉक्टर से मिलवाता है।

रवि डॉक्टर से कहता है ," डॉक्टर, ये एक लोग एक बहुत ही बड़े घनवान परिवार से हैं। और औंटीजी एक  जानी मानी समाज सेविका है। आप इन्हे मेरे माता पिता के बारे में सब कुछ बता दीजिये। मै चाहता हूँ कि मेरे सम्मानीय माता पिता के बारे में ये भी सब कुछ जान ले। "

लेडी डॉक्टर पहले तो हिचकिचाती हैं।  पर रवि की जिद के आगे उनकी एक नहीं चलती है। 

डकटर कहती हैं, " रवि की माँ एक बार अपनी शादी के बाद  "बेसहारा", अनाथालय गई थी। दोनों पति पत्नी सभी बच्चों को मिठाई बाँट कर लौट ही रहे थे कि तभी एक नन्हे से बच्चे ने उनका पल्ला पकड़ लिया। उस ममतामई नारी से उस मासूम के हाथों से अपना पल्ला छुड़ाया न जा सका और वो उसे घर ले आई। और उन्होंने उस बच्चे को विधिवत गोद ले लिया। गोदी में दो वर्ष के बालक को लेकर वे मेरे पास आए थे। मेरे लाख समझने पर भी उन्होंने अपना ऑपरेशन करा लिया जिससे कि वे इस बच्चे के साथ पूरा न्याय कर सकें। कहीं वे उसेअपनी संतान होने पर  भूल न जाएं।  और वो बच्चा आज एक सुदर्शन युवक में बदल चुका है, रवि।  हाँ जी, रवि ही वो लड़का है। "

सारा की माँ की आँखें फटी की फटी रह गईं। उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई इतना भी महान हो सकता है। उन्हें स्वयं पर ग्लानि हो रही थीं कि वो तो अपनी बेटी को ही अपना प्यार, दुलार और अच्छे संस्कार न दे पाई, और रवि के माता पिता ने एक अनाथ को अपना बनाकर उसे एक सुसंस्कृत इंसान बना दिया। 

डॉक्टर रवि से कहती है , " किन्तु रवि तुम्हे ये सब कैसे पता चला ?"
रवि अपनी भीगी आँखें पोछकर कहता है , "एक बार मैंने आपकी और माँ की बातें सुन ली थीं। पर मुझे तनिक भी दुःख नहीं है।  मुझे पूरा विश्वास है कि  मेरे  माता पिता, मेरे जन्मदाता से लाख गुना अच्छे हैं।  और मै इस जन्म में तो क्या अगले दस जन्मों में भी  उनका ऋण नहीं चुका  पाउँगा। "

सारा के  माता पिता  के मन में रवि के माता पिता के प्रति अपार सम्मान बढ़ जाता है।

सारा की माँ कहती हैं, " रवि हो सके तो मुझे क्षमा कर देना। तुम एक  महान माता पिता की संतान हो इसीलिए तुम्हारा व्यक्तित्व तुम्हारे सदगुणो से दमकता है। इसीलिए तुम सभी का भला चाहते हो। "

रवि कहता है, " जिस दिन आप ने मेरे माता पिता लो मध्यमवर्गीय कहकर अपमानित किया था उसी दिन से मैंने ठान लिया था कि आपकी आँखों पर बँधी धन और अभिमान की ये पट्टी तो मै खोलकर ही रहूँगा। आप पैसों का लालच देकर मुझे खरीद नहीं सकतीं। मेरे माता पिता मेरे लिए भगवान सामान हैं। और मै उनका अपमान किसी भी हालत में सहन नहीं कर सकता हूँ। "

कहकर रवि तेजी से वहां से निकल जाता है।

सारा की माँ को अपने किए पर बहुत पछतावा होता है।

-------

क्रमशः .........

to be continued  .........


No comments:

Post a Comment