Friday, 26 June 2015

जब उसने बनाया था इंसान


जब उसने बनाया था इंसान





जब उसने बनाया था इंसान ,
दिया  एक प्यारा सा उसे दिल। 
न था तब  धर्म-जाति  का भेद ,
प्रेम से रहते सब  हिल-मिल। 

इंसान ने बनाए जब धर्म अनेक ,
बची न मानवता अब शेष। 
खाक में मिला कर अपना विवेक,
बाँट दिए अपने सच्चे पिता विशेष।

क्या होगा इस धरती का अब ,
 दिन  ऐसा भी एक  आएगा । 
न मंदिर में मिलेंगे  भगवान ,
और न होंगे मस्जिद में रहमान। 






Wednesday, 24 June 2015

छोटी सी इक ख्वाहिश




छोटी सी इक ख्वाहिश

छोटी सी इक ख्वाहिश ,
 खुदा आज करता हूँ ,
दिल  किसी का न टूटे,
ऐसी दुआ करता हूँ।

मिले किस्मत में कांटे ,
पर गम नहीं ।
उनकी  राहों में कुछ फूल,
तो खिला सकता हूँ।

तेरी दहलीज पर मै सर , 
इबादत में  झुकाता हूँ। 
उसकी इबादत में  दिल क्या , 
जान भी लुटा सकता हूँ। 







Tuesday, 23 June 2015

नज़राना MNC का भाग 5




 पाँचवाँ भाग



यद्यपि सारा के माता पिता की आँखें अब तक खुल चुकी थीं ,किन्तु फिर भी रवि का हृदय उनकी ओर से टूट चुका था। वो सारा को इस दर्द , इस अपमान और सामाजिक प्रताड़ना से उबारना चाहता था पर उसे अपना आत्म सम्मान और अपने माता पिता का स्वाभिमान भी प्रिय था। रवि , सारा और उसके माता पिता के रूखे व्यवहार से आहत हो चुका था अतः वो अब सब कुछ ईश्वर के हाथों में सौंपकर , अपना मन काम में लगाने का प्रयास करता है।
सारा के माता पिता उसे भी रवि और उसके माता पिता के विषय में सारी  बातें बताते हैं। सारा भीतर से रवि से बहुत प्रभावित थी ही पर अब उसे रवि अधिक अच्छा लगने लगता है। वो अपना मन मसोस कर रह जाती है। वो सोचती है कि वो कितनी नासमझ थी कि उसने हीरे के स्थान पर एक पत्थर को चुना।

सारा की माँ , उसके रवि के प्रति लगाव को समझ जाती हैं। वो निश्चय  करती हैं कि एक बार इस सम्बन्ध के लिए पुनः प्रयास करती हूँ। पर इस बार केवल रवि से नहीं उसके माता पिता से भी ससम्मान बात करनी होगी।


सारा के माता पिता  उसे लेकर शाम को रवि के घर पहुँचते है।
रवि के माता पिता उनका खुले मन से स्वागत करते हैं।

रवि की माँ पूछती हैं , "सारा कैसी हो बेटा ? तबियत ठीक है ?"
सारा हाँ में अपना झुका हुआ सर हिलाती है। अब तक उसका पांचवा महीना लग गया था और उसका थोड़ा बहुत  पेट दिखने भी लगा था।

रवि की माँ सारा को अपने बैडरूम में ले जाती हैं। वो कहती हैं कि उसे थोड़ा आराम करना चाहिये।

बेड  पर एक ओर  रवि के माता पिता और दूसरी और रवि  की फोटो रखी हुई थी। सारा, रवि की फोटो उठा कर देखने लगती है। न जाने क्यों उसकी आँखों से स्नेह रुपी जल छलक छलक  कर बहने लगता है। वो स्वयं पर अति शर्मिंदा होती है। आज उसका हृदय सच में रवि के नाम से धड़कता है। सच्चे प्यार में कोई उंच नीच , कोई दीवार नहीं होती , उसे ये आभास होता है।


बाहर बैठक में सारा की माँ , रवि के माता पिता से कहती हैं ," मै अपने समाज में होने वाली उपेक्षा और बदनामी  के कारण नहीं अपितु इन बच्चों के प्यार के कारण , इनका रिश्ता करना चाहती हूँ।  यदि आप लोगों की  आज्ञा हो तो। "

रवि की माँ कहती हैं , " देखिये बहनजी , हमें कोई आपत्ति नहीं है पर रवि की इच्छा सर्वोपरि है।  यदि वो सहमत है और सारा सहमत है तो हमें क्या आपत्ति हो सकती है ?"

तभी रवि ऑफिस से वापस आ जाता है।  वो उनकी बातें सुन लेता है। अब तक वो सारा के माता पिता को क्षमा नहीं कर पाया था। उसे नहीं पता था कि उनके आँखों पर बंधी धन रूपी पट्टी अब तक खुल चुकी थी।

रवि अनमने स्वर से कहता है , " आप लोग क्यों इस शादी के पीछे पड़े हैं ? अच्छा, अब समझा , आपको समाज में होने वाली बदनामी की चिंन्ता है। मेरा एक सुझाव माने तो कहूँ। आप सारा के बच्चे को किसी अनाथालय में डालकर, सारा को अमेरिका भेज दीजियेगा। आप के पास तो बहुत पैसा है ना  ?  पैसों की शक्ति से आप कुछ भी खरीद सकते हैं। सारा को वहां कोई परेशानी नहीं होगी, क्योंकि वो एक मॉडर्न लड़की है। "

सारा के माता पिता दंग  रह जाते हैं। रवि उनसे ऐसा व्यव्हार करेगा उन्होंने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था।
कमरे से सारा भी सब बातें सुन रही थी।

रवि आगे कहता है , "अच्छे अनाथालय में बच्चे की अच्छी तरह से देखभाल हो जाएगी।  आप चिंता ना करें।  हो सके तो थोड़ा चंदा अधिक दे दीजियेगा वहां पर।  एक पंथ दो काज हो जाएंगे , आप लोग  उदार हृदय भी कहलाएंगे और बच्चे से होने वाले सामाजिक अपमान से भी बचेंगे। "

रवि की माँ उसे चुप कराती हैं , " ये क्या कह रहा है तू रवि ? दूसरों के जले पर नमक छिड़कना हमने कब तुझे सिखाया बेटा ? ये कैसा व्यवहार है अतिथियों के साथ ?"

रवि आगे कहता है , " नहीं माँ ये तूने नहीं समय ने मुझे सिखाया है। और औंटीजी एक बात और , हर बच्चे की किस्मत में मेरे जैसे माता पिता नहीं होते पर फिर भी मैं प्रार्थना करूँगा की सारा के बच्चे को कोई अच्छे दंपत्ति ही गोद  लें और उसका भविष्य उज्जवल बनाएँ। "

सारा रोते हुए बाहर चली जाती है।  रवि , सारा की आँखों में छिपे दर्द और पछतावे को समझ जाता है किन्तु उसे रोकता नहीं है।  सारा के पीछे पीछे उसके माता पिता भी चले जाते हैं।  रवि के माता पिता हाथ जोड़े ही खड़े रह जाते हैं।
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रवि के माता पिता उसके इतने रूखे व्यवहार से दंग  रह जाते हैं। तब रवि उन्हें पिछली सारी  बातें बताता है।  वो बताता है कि कैसे सारा की माँ उसे धन का लालच देकर अपनी बेटी का विवाह उससे करना चाहती थीं।  और तो और उसे मध्यमवर्गीय माता पिता की संतान होने का आभास भी कराया।

रवि की माँ उसे समझती हैं कि प्रत्येक को अपनी  गलती सुधारने का एक अवसर अवश्य ही मिलना चाहिए। रवि के पिता भी उनसे पूरी तरह सहमत थे।


रवि के पिता कहते हैं , " बेटा, किसी  का भी अपमान करना अपने संस्कार नहीं हैं। तुमने उनको सही मार्ग दिखाने का जो प्रयत्न किया था , क्या पता वो सफल हो गया हो ? जब तक हम उनसे मिलकर बातचीत नहीं करेंगे हम कैसे जान पाएंगे ? मुझे तो उनका बर्ताव, अपनी बेटी के साथ बदला हुआ प्रतीत हो रहा था। बेटा किसी  भी बात को हम उम्र भर हृदय से नहीं लगा सकते। वो कहावत तो तुम्हे पता ही है ना कि " क्षमा बड़ेन  को चाहिए। "
क्षमा करने वाला सदा ही बड़ा होता है।  इसलिए पुरानी बातों को मन से निकाल कर उन्हें क्षमा कर दो। सारा से विवाह करने को मैं तुम्हे बाध्य नहीं करूँगा  ये तुंहारा अपना निर्णय है। और हम सदा तुम्हारे साथ हैं हमारे बच्चे। "


कहकर रवि के पिता ने उसे एक नन्हे बचे की तरह गले लगा लिया। उसकी माँ भी कहाँ अवसर छोड़ने वाली हैं , वो भी आकर अपने प्यारे बच्चे से लिपट जाती हैं । इतने सुन्दर और खुशहाल परिवार का वो दृश्य सही मायनो में देखने योग्य था।  सभी की आँखों से स्नेह रूपी जल निकल रहा था।

रवि स्वयं को अत्यंत गौरवान्वित समझ रहा था।  उसे अपने का  माता पिता का हर मुश्किल घडी में  यूँ  उसे सम्भालना और उचित मार्गदर्शन देना बड़ा ही अच्छा लगता है । उनकी गोद में आज भी उसे असीम सुख की प्राप्ति होती है ।

अब उसका मन अत्यंत शांत हो गया जाता है ।

शाम को ऑफिस से आते ही रवि ने कहता है कि सब लोग सारा के घर चलते हैं। वो उन सब से क्षमा माँगना चाहता हूँ। रवि के माता पिता मुस्कुराते हुए तैयार होने चले जाते हैं।


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सारा के माता पिता अब उसका पूरा ध्यान रखते हैं। अब तक जिस बच्ची को उन्होंने तनिक भी समय नहीं दिया था , अब उसे तनिक भी अकेला नहीं छोड़ते। सारा , समझ गई थी कि इतने बड़े बदलाव का श्रेय केवल और केवल रवि को ही जाता है।  वो रवि का अत्यधिक सम्मान करने  लगती है।

सारा की माँ भी अपनी बेटी के हृदय को पढ़ने का प्रयास करती हैं।

सारा की माँ , "सारा अच्छा ही हुआ जो रवि से तेरा विवाह नहीं हुआ।  तू तो उसके साथ एक पल भी न रह पाती। एक तो लड़का दिखने में भी साधारण सा है और दुसरा धन दौलत भी नहीं है उसके पास। कहाँ तू इतने ऐशो आराम में पली कोमल सी लड़की। चल हम कोई और रास्ता निकालेंगे। तू तनिक भी चिंता मत कर। "

सारा कहती है , " नहीं माँ , रवि एक बहुत ही अच्छा लड़का है।  उसने मुझे गलत रास्ते पर जाने से रोकने के अनेकों प्रयास किए किन्तु मैं अपने दम्भ में आगे बढ़ती गई। जहाँ तक प्रश्न है धन दौलत का तो लड़के में कुछ कर दिखने की ललक होनी चाहिए, जो उसमे है। और माँ वो गरीब नहीं , गरीब तो हम हैं , हमारी छोटी मानसिकता है। यदि रवि मुझे आपके कहने पर अपना लेता तो संभवतः मैं जीवन भर उसे सम्मान नहीं दे पाती। किन्तु आज मै उसकी ह्रदय से पूजा करती हूँ। माँ,  मेरे लिए चिंता ना करना।  बच्चे के जन्म के बाद मैं उसे लेकर अमरीका चली जाउंगी और उसकी एक अच्छी माँ की तरह परवरिश करुँगी। मै ये भरसक प्रयास करुँगी कि मेरा बच्चा रवि की ही तरह एक संस्कारी लड़का बने। "


कहकर सारा फफक फफक कर रोने लगती है। उसका  दम्भ, उसका अभिमान उसके आंसुओं के साथ बहने लगता है।

तभी उसे अपने कंधे पर किसी का स्पर्श प्रतीत होता है। पर ये क्या , ये तो रवि है ? माँ कहाँ चली गई ?
आंसू पोंछते हुए सारा रवि से हाथ जोड़कर नमस्ते करती है। पर अब औपचारिकता, आत्मीयता में परिणित हो चुकी थी।
रोते रोते सारा कहती है , " रवि मुझे और मेरे माता पिता को क्षमा कर देना।  हमने तुम लोगों का बड़ा हृदय दुखाया है। "

रवि मुस्कुराते हुए कहता है , "हाँ तो बच्चे को तुम मेरे जैसा बनाना चाहती हो? "
सारा सकपका जाती है। वो हकलाने लगती है।
रवि उसके पास आकर उसके मुख पर हाथ रख देता है , " बच्चे तो माता पिता की छाया  ही होते हैं पगली।  तुम अकेले नहीं हम दोनों मिलकर अपने बच्चे को एक अच्छा इंसान बनाएँगे। "

रवि उसके कान में पूछता है , " तो इस मध्यमवर्गीय लड़के की पत्नी बनोगी सारा ?"
सारा उसके मुख पर हाथ रख देती है और उससे लिपटकर जोर जोर से रोने लगती है। रवि दृढ़ता से उसे संभालता है और उसके मस्तक पर अपने निस्वार्थ प्रेम का एक चिह्न लगा देता है।

बाहर खड़े दोनों के माता पिता अपने अपने आँसू पोंछते हुए आनंदित होते हैं ।




======समाप्त===========










Thursday, 18 June 2015

नज़राना MNC का भाग 4



चौथा भाग 


सारा की माँ किसी भी प्रकार से रवि को नाराज नहीं करना चाहती थी। उन्होंने सोचा कि यदि वो इससे खुश हो जाता है तो कोई बात नहीं।  वो रवि और सारा का विवाह कर स्वयं को समाज में होने वाली बदनामी से बचाना चाहती थी। उन्हें अपनी बच्ची के दुःख का जरा भी अंदाजा नहीं था। 

रवि, सारा की माँ की आँखे खोलने की प्रतिज्ञा कर चुका था। उसका मानना था कि जिस प्रकार कुम्हार गीली मिटटी को कोई भी अकार देने में सक्षम है, उसी प्रकार  माता-पिता यदि चाहें तो बच्चे को उचित संस्कार देकर उसका जीवन संवार सकते हैं। सारा के दुःख के  उत्तरदायी निःसंदेह उसके माता पिता ही है। 

रवि भी सारा की माँ को अच्छे से पहचान गया था। वो मंद मंद मुस्कराहट के साथ सब बच्चो के साथ जमीन पर बैठा रहता है ।
सारा की माँ न चाहते हुए भी सब बच्चों को खाना परोसती हैं।
रवि बड़े आराम से खाना खाता है।
सारा की माँ उसे गहन आश्चर्य से घूरती हैं। उन्हें लगता है कि रवि अपना बड़प्पन उसे दिखाना चाहता है , इसीलिए ये सब नाटक कर रहा है।

रवि कनखियों से देखता है कि सारा की माँ ,रुमाल से अपना पसीना पोंछ  रही हैं।

रवि उनसे पूछता है ," औंटीजी , आपको कैसा लगा इन अनाथ बच्चों को अपने हाथों से खाना खिलाकर ? अधिक थकान तो नहीं हुई?"

सारा की माँ अपने मन के सुकून को छिपा न सकीं। वो बोलीं ," रवि, सच में इन मासूमो को खाना परोसकर एक अलग से सुख का अनुभव होता है। मै यहाँ कई बार आ चुकी हूँ पर आज तक इस ख़ुशी की अनुभूति  कभी नहीं हुई थी।  इसके लिए युम्हारा बहुत  बहुत धन्यवाद रवि। "

रवि मुस्कुराते हुए बोला , "सही कहा आपने आंटी जी, इन मासूम बच्चो का साथ, मानो ईश्वर का साथ हो। ऐसा ही सुख हर माँ को मिलता है। पर कुछ माँ  झूठे दिखावे और खोखली आधुनिकता की दौड़ में इस असीम सुख से वंचित  रह जाती  हैं। मुझे तरस आता है उन माँ पर। "

रवि का तीर बिलकुल निशाने पर लगा।  सारा की माँ ये सोचने पर विवश हो गई कि उनको ये सुख क्यों नहीं प्राप्त हुआ ?"

उन्होंने मन ही मन कुछ निर्णय लिया और रवि से तुरंत आज्ञा लेकर अपने घर पहुचती हैं।

सारा की माँ घर के बाहर से ही तेजी से उसे पुकारती हुई आती हैं।
सारा आश्चर्य से पुछ्ती है ," हाँ माँ , क्या हो गया ?"

सारा की माँ आते ही उसे अपने सीने से लगा लेती हैं। आज वो अपनी वर्षों की भूल को सुधारना चाहती है।
सारा की माँ उससे कहती है ," तू बिलकुल चिंता मत कर मेर्री बच्ची।  हम तेरे साथ हैं। हमारे  प्यार और ईश्वर की कृपा से सब ठीक हो जाएगा।  आज से मै  तेरा पूरा ख्याल रखूंगी। "

सारा की आँखों में सुख के आंसू आ गए।  वो अपनी माँ से यूँ लिपट गई मानो एक छोटी बच्ची को कई वर्षों पश्चात अपनी बिछड़ी हुई माँ मिली हो।

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कुछ दीनों पश्चात, रवि, सारा की माँ को फ़ोन कर एक नर्सिंग  होम में बुलाता है।  सारा की माँ आश्चर्य में पङ  जाती हैं।  पर रवि अब उन्हें सच में बहुत ही अच्छा लड़का लगने लगा था अतः वो बिना नानुकुर के अपने पति के साथ वहां  चली जाती हैं।

रवि , सारा की माँ और पिता को एक लेडी डॉक्टर से मिलवाता है।

रवि डॉक्टर से कहता है ," डॉक्टर, ये एक लोग एक बहुत ही बड़े घनवान परिवार से हैं। और औंटीजी एक  जानी मानी समाज सेविका है। आप इन्हे मेरे माता पिता के बारे में सब कुछ बता दीजिये। मै चाहता हूँ कि मेरे सम्मानीय माता पिता के बारे में ये भी सब कुछ जान ले। "

लेडी डॉक्टर पहले तो हिचकिचाती हैं।  पर रवि की जिद के आगे उनकी एक नहीं चलती है। 

डकटर कहती हैं, " रवि की माँ एक बार अपनी शादी के बाद  "बेसहारा", अनाथालय गई थी। दोनों पति पत्नी सभी बच्चों को मिठाई बाँट कर लौट ही रहे थे कि तभी एक नन्हे से बच्चे ने उनका पल्ला पकड़ लिया। उस ममतामई नारी से उस मासूम के हाथों से अपना पल्ला छुड़ाया न जा सका और वो उसे घर ले आई। और उन्होंने उस बच्चे को विधिवत गोद ले लिया। गोदी में दो वर्ष के बालक को लेकर वे मेरे पास आए थे। मेरे लाख समझने पर भी उन्होंने अपना ऑपरेशन करा लिया जिससे कि वे इस बच्चे के साथ पूरा न्याय कर सकें। कहीं वे उसेअपनी संतान होने पर  भूल न जाएं।  और वो बच्चा आज एक सुदर्शन युवक में बदल चुका है, रवि।  हाँ जी, रवि ही वो लड़का है। "

सारा की माँ की आँखें फटी की फटी रह गईं। उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई इतना भी महान हो सकता है। उन्हें स्वयं पर ग्लानि हो रही थीं कि वो तो अपनी बेटी को ही अपना प्यार, दुलार और अच्छे संस्कार न दे पाई, और रवि के माता पिता ने एक अनाथ को अपना बनाकर उसे एक सुसंस्कृत इंसान बना दिया। 

डॉक्टर रवि से कहती है , " किन्तु रवि तुम्हे ये सब कैसे पता चला ?"
रवि अपनी भीगी आँखें पोछकर कहता है , "एक बार मैंने आपकी और माँ की बातें सुन ली थीं। पर मुझे तनिक भी दुःख नहीं है।  मुझे पूरा विश्वास है कि  मेरे  माता पिता, मेरे जन्मदाता से लाख गुना अच्छे हैं।  और मै इस जन्म में तो क्या अगले दस जन्मों में भी  उनका ऋण नहीं चुका  पाउँगा। "

सारा के  माता पिता  के मन में रवि के माता पिता के प्रति अपार सम्मान बढ़ जाता है।

सारा की माँ कहती हैं, " रवि हो सके तो मुझे क्षमा कर देना। तुम एक  महान माता पिता की संतान हो इसीलिए तुम्हारा व्यक्तित्व तुम्हारे सदगुणो से दमकता है। इसीलिए तुम सभी का भला चाहते हो। "

रवि कहता है, " जिस दिन आप ने मेरे माता पिता लो मध्यमवर्गीय कहकर अपमानित किया था उसी दिन से मैंने ठान लिया था कि आपकी आँखों पर बँधी धन और अभिमान की ये पट्टी तो मै खोलकर ही रहूँगा। आप पैसों का लालच देकर मुझे खरीद नहीं सकतीं। मेरे माता पिता मेरे लिए भगवान सामान हैं। और मै उनका अपमान किसी भी हालत में सहन नहीं कर सकता हूँ। "

कहकर रवि तेजी से वहां से निकल जाता है।

सारा की माँ को अपने किए पर बहुत पछतावा होता है।

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क्रमशः .........

to be continued  .........


Wednesday, 3 June 2015

हर सांस में इक आस सी जगाती है ज़िदगी ,




हर सांस में इक आस सी जगाती है ज़िदगी 


हर सांस में इक आस सी जगाती है ज़िदगी ,

अंधेरों में किरण बन कर मुस्काती है ज़िन्दगी।

कि  बांटो प्यार और खुशियां मनाओ ,

किसी के अश्क पोंछो और हंसाओं।

किसी के वास्ते गर मिटना पड़े तो ,

ये वादा इश्क का दिल से निभाओ।

इसी रफ़्तार से बढ़ते रहे गर ,

अंदाज़ पे तेरे फिर गुनगुनाती है ज़िन्दगी।

Tuesday, 2 June 2015

नज़राना MNC का भाग ३






तीसरा भाग 




रवि की माँ उसके मन की बात बिना कुछ कहे ही समझ जाती हैं। पर वो उस पर किसी भी तरह का कोई दबाव नहीं डालना चाहती हैं। उन्हें अपने बेटे पर पूरा विश्वास होता है।

एक दिन रवि अपने माता पिता साथ सारा के घर जाता है। वे सब सारा के लिए चिंतित होते हैं।

सारा की माँ, रवि से अत्यधिक प्रभावित होती है। उनके मन में विचार आता है कि यदि रवि सारा को अपना ले   तो फिर समाज में उनकी बदनामी होने से बच जाएगी। वे रवि को अकेले में बुलाती हैं। 

रवि पूछता है, " जी कहिये आंटीजी बताइये , कुछ काम था मुझसे ?"

सारा की माँ कहती हैं, " बेटा, कहते अच्छा तो नहीं लगता पर क्या करें कोई और रास्ता भी नहीं है। "

रवि कहता है," अरे आंटीजी आप बेझिझक हो कर कह सकती है। बताइये। "

सारा की माँ मगरमच्छी आंसू पोंछते हुए कहती हैं, " मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हे सारा पसंद है।  इसीलिए तुम सदा उसके लिए चिंतित रहते हो। "

रवि शरमाते हुए कहता है, " हाँ, आंटीजी, मुझे भी कुछ ऐसा ही लगता है।  पर सारा मुझे पसंद नहीं करती। मेरा मध्यमवर्गीय परिवार से होना ही उसे पसंद नहीं तो मै  क्या पसंद आऊंगा। मुझे अपने लगाव का भान तब हुआ जब मैंने उसे गलत राह पर बढ़ते देखा। मैंने उसे समझाने का बहुत प्रयास भी किया किन्तु संभवतः ये दुर्घटना उसकी किस्मत में थी। "

रवि की आँखों में असीम दुःख के बादल घिर आए। 

सारा की माँ की अनुभवी आँखे रवि की बातो की सच्चाई समझ गई। 

वो कहती है, " बेटा, वो बेवकूफ लड़की है जिसे हीरे और पत्थर में फर्क करना नहीं आया। मध्यमवर्गीय परिवार के हो तो क्या हुआ ? मेहनत से तो कोई भी गरीब से अमीर बन सकता है। तुम बिलकुल चिंता मत करो मै सारा के पिता के काम में तुम्हे अच्छे पद पर काम दिला दूंगी। और शादी के बाद तुम दोनों हमारे साथ ही रह सकते हो। तब तो उसे कोई परेशानी नहीं होगी ?"

रवि ये सब सुनकर सकते में आ गया। 

वो हड़बड़ा कर बोलता है," क्या ? आप मेरी और सारा की शादी की बात कर रही है ? मै आपको बता चुका हूँ कि वो मुझे तनिक भी पसंद नहीं करती है। और यदि कर भी ले तो बिना मेरे माता पिता की मर्जी के मै कुछ नहीं कर सकता। "

रवि को समझते हुए सारा की माँ कहती है ," देखो तुम्हे,हमारे पास जीवन के हर सुख मिलेंगे। एक गरीब माँ बाप अपने बेटे को दे भी क्या सकते है ?"

रवि अपने क्रोध पर जैसे तैसे नियंत्रण रखे हुए था। बड़ों का अपमान करना उसे नहीं आता पर वो अपने माता पिता का अपमान भी  नहीं सहन कर सकता था। 

रवि कहता है , " मेरे माता पिता मेरे लिए भगवान समान हैं। यदि मुझे नमक रोटी खा कर भी उनके साथ रहना पड़े तो भी मैं उफ़ तक न करूँगा। भले ही उन्होंने मुझे कीमती कपडे, महंगे खिलौने न दिलाए हो पर प्यार का वो बहुमुल्य खजाना दिया है जिसका ऋण मैं दस जन्मों तक भी नहीं चुका सकता हूँ। इसलिए कृपा कर मेरे माता पिता को कुछ न कहे मैं सहन नहीं कर  सकता हूँ। "

अगले दिन रवि सारा की माँ को एक अनाथालय ,"बेसहारा" में बुलाता है। वो  मन ही मन सारा की माँ को सबक सिखाने  का प्रण करता है। 

अगले दिन सारा की माँ उचित समय पर "बेसहारा" अनाथालय पहुँचती हैं। चूँकि वो वहां पर दान का काम करती हैं इसलिए उनका वहां पर भव्य स्वागत होता है। वो रवि को दिखाती हैं कि देखो मेरे पैसों की शक्ति। रूपए पैसों की ताकत का अंदाजा लगाकर शायद रवि, सारा से शादी के लिए हाँ कर दे। उनका मुखमंडल घमंड से भरा हुआ था। 

किसी अनाथ के लिए दया भाव है इस नाते वो वो यहाँ दान करने नहीं आती हैं बल्कि समाज में उनके दानी होने का, पैसे वाले होने का डंका बजाने के लिए आती हैं। 

रवि मन ही मन मुस्कुराता है। वो कतार में बैठे बच्चों के साथ ही बैठ जाता है। सारा की माँ सूट बूट में उसे जमीन पर बैठा देखकर दंग रह जाती हैं। 

उनसे रहा नहीं जाता और पूछती हैं, " रवि , अरे यहाँ नीचे क्यों बैठ गए ? ऊपर बैठो। क्या भूख लगी है?"

रवि कहता है, " हाँ,हाँ आंटीजी, बड़ी जोर से भूख लगी है। जल्दी से परोस दीजिये। क्यों बच्चों ? जल्दी खाना चाहिए , है ना ?"

सारे बच्चे जोर से हामी भरते हैं।  पूरा हाल बच्चों की  खिलखिलाहट से गूंज जाता है। 

सारा की माँ हकलाते हुए , " क्या???  मै?? ? मै खाना परोसूंगी? ये क्या कह रहे  हो रवि ?"

रवि अपनी चाल चल चुका था। उसे पता था कि इस समय वो उसकी किसी बात को मना नहीं करेंगी। वो चुपचाप अपनी रहस्य्मय मुस्कान के साथ बैठा उनके खाना परोसने की प्रतीक्षा करता रहा। 


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क्रमशः......
to be continued.......








Monday, 1 June 2015

कि आज जिंदगी से मुझे प्यार हो गया।





कि आज जिंदगी से मुझे प्यार हो गया।
सजाया खुशियों से सनम जब तूने ये दामन,
लगा है महकने तभी से मेरे दिल का ये गुलशन।
बिछ गई मै जमीं सी और तू आसमान हो गया  ,
कि आज मुझे  जिंदगी से  प्यार हो गया।