Wednesday, 15 April 2015

Yes! I’m in Love

Fake love… “Yes! I’m in love” – despite of such beautiful words the effects of love on internet could be catastrophic.Read Hindi story,
Hindi Story – Yes! I’m in love
Photo credit: kamuelaboy from morguefile.com

आज का सूर्य कुछ अधिक ही प्रकाशमान था। ये सुबह कामना के लिए इतनी प्रसन्नता भरी थी कि उसके पाँव ही धरती पर नहीं पड़ रहे थे। आज उसके जीवन का  लछ्य पूरा हो गया था। कामना की आज  एक मनोहिकित्सक के पद पे एक बड़े अस्पताल में नियुक्ति थी। उसने अपनी मनपसंद हल्के  पीले रंग की साड़ी निकालीढीला सा जूड़ा बाँधा और अस्पताल के लिए निकल गई।
ये शहर उसके लिए नया नहीं था। यहीं उसका बचपन बीता था। पुरानी स्मृतियों को ध्यान करते ही उसके मुख पर एक मोहक मुस्कान छा गई।
डॉ कामनाअपना केबिन देखकर उसके हर्ष का पारावार ही न रहा। कामना और सुपर्णा  की १० तक की पढाई इसी शहर में हुई थी। उसका और उसकी सखी सुपर्णा का ये ही स्वप्न था कि दोनों एक मनोचकित्सक बनेंगीं। तन के घाव तो भर जाते हैं पर मन के घाव भरना दुष्कर हे अतः वे ये ही मार्ग अपनाकर मनोरोगियों को ठीक करेंगी।
अभी कामना अपने केबिन में प्रवेश करने ही वाली थी कि कोई स्त्री उससे टकराती हुई निकल गई। और वो यही दोहरा रही थी , “Yes, I’m in love, Yes I’m in love.” हतप्रभ सी कामना बड़ी देर तक उसे जाते देखती रही।
तभी एक नर्स ने आकर उसका ध्यान भंग किया बोली, “डॉ साहिब आइयेआइयेआप बैठिये.. अरे ये तो पागल है। 
कामना ने तनिक सख्ती से कहा, “नहीं,नहीं ,  पागल नहींमनोरोगी है। 
किन्तु कामना का अंतर्मन तीव्रता से कांप रहा था। वही कदकाठीवही रंग रूप वही मीठी सी ह्रदय को छूने वाली बोली । कहीं ये सुपर्णा ….… नहीं नहींये कैसे हो सकता है ……
कामना ने अपने सारे विपरीत विचारों का अंत करा और सोचा कि ,’ इसी शहर में मेरी सखी है. संभवतः इसीलिए मुझे वही हर स्थान पर दिख रही है। कामना मन ही मन विचार कर रही थी कि अवश्य ही किसी ने उसका हृदय दुखाया होगा तभी तो….
जैसे तैसे दिन व्यतीत कर कामना सायं को सीधे सुपर्णा के घर पहुंची। उसेउससे मिलने की तीव्र इच्छा थी। पर ये क्या। । उसके घर पर तो ताला लगा हुआ था।
कामना का ह्रदय किसी अनहोनी की आशंका से तीव्रता से धडक रहा था।
तभी उसे सुपर्णा की पड़ोसन दिखाई पड़ी। उसने उनसे विनती की कि यदि उन्हें कुछ पता हो तो कृपा कर उसे बता दे।
जब पड़ोसन को कामना ने अपना परिचय दिया तो वो बोलीं, ” देखिये कमनाजी बड़ा ही बुरा हुआ सुपर्णा के साथ। 
कामना बहुत ही घबरा गई ,” क क्या हुआ। … मेरी सखी के साथ वो वो ठीक तो है ना ?”
पड़ोसनकामना को अपने घर के भीतर ले गई और बताने लगी, “आग लगे इस नई तकनीकनए मोबाइल आदि को। ये लोगों का जीवन पल में उजाड़ सकती है। 
कामना अति आश्चर्य से ” मोबाइल…? मै कुछ समझी नहीं। आप कृपा कर मुझे सब कुछ और विस्तारपूर्वक बताइये। मै १० वी तक तो उसके साथ ही पढ़ी हूँ। वो बिलकुल स्वस्थ थी। और चाची जी। . वो कहाँ हैं?”
पड़ोसन गहरी सांस लेते हुए बोली, “उसकी माँ को तो उसका दुःख खा गया। 
कामना ,”दुःख कैसा दुःखक्या हुआ था ऐसा जो ये सब …”
पड़ोसन बोली, ” सुपर्णा को मै बचपन से जानती हूँ। बड़ी ही प्यारी बच्ची थी। १२ वी के बाद ही उसका डॉक्टरी में चयन हो गया था। बड़ी ही खुश थी वे दोनोंमाँ,बेटी। पर होनी को कौन टाल सकता है?
डॉक्टरी के चौथे साल तक सब कुछ ठीक ही चल रहा था।  बल्कि मेरे बच्चे उसे चिढ़ाते भी थे कि क्या आप पागलो का इलाज करोगी तब वो हंसकर कहती थी कि पागल नहींमनोरोगी। जिनका मानसिक संतुलन कोई ठेस लगने से बिगड़ जाता है। अचानक उसमे परिवर्तन आने लगा। वो चुप चुप रहने लगी। वो सदा अपने मोबाइल पर ही कुछ करती रहती थी। मोबाइल जैसे उसका सर्वप्रिय साथी बन गया था।
एक दिन आखिर उसकी माँ को उसके मोबाइल वाले प्रेम का पता चल ही गया। उसकी माँ ने जांच की तब पता चला कि फेसबुक पर उसका कोई बड़ा ही घनिष्ट मित्र है। माँ ने सोचा कि चलो नया युग हैआजकल तो ये आम बात है। माँ ने चालाकी से उस लड़के से उसका पता पूछा। उसने पता तो नहीं बताया किन्तु फ़ोन नंबर बता दिया। उस नंबर की सहायता से मेरे साथ जाकर सुपर्णा की माँ ने लड़के के घर का पता लगाया।
हम दोनों एक दिन उस लड़के के घर सुपर्णा के विवाह की बात चलाने  गए। उस घर में एक लगभग ७०-७५ का एक वृद्व व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ रहता था। सुपर्णा की माँ ने सोचा कि हमसे अवश्य ही पता लिखने में कोई गलती हो गई है।
तभी उनका कोई पडोसी उनसे मिलने आ गया और वृद्व व्यक्ति अपना मोबाइल टेबल पर ही भूल गया।
ट्रिन -ट्रिन ” फ़ोन थोड़ी देर के लिए चमका और सुपर्णा की मुस्कुराती फोटो उसकी माँ को दिख गई। सुपर्णा की माँ सकते में आ गई।
पड़ोसन उन्हें धीरे से घर ले आई बोली अपनी बेटी को समझाओ। ऐसे धोखेबाजों से बचकर रहे।
अगले दिन ही सुपर्णा की माँ बोली,”सुपर्णा! मै तेरा विवाह करना चाहती हूँ अतः यदि तुझे कोई पसंद हो तो बता दे। 
सुपर्णा हर्ष से बोली, “मेरी प्यारी माँ! Yes! I’m in love. तुम कैसे जान गई माँ? ”
लाख प्रयत्न करने पर भी जब सुपर्णा उसे घर न बुला सकी तो उसने अपनी माँ से कहा, “माँसंभवतः:वो आपसे मिलने में शर्मा रहे हैं। पता नहीं क्यों आने को तैयार नहीं हैं। 
सुपर्णा की माँ उसे लेकर उसी पते पर पहुँची और उसेउस लड़के यानि वृद्व  से मिलवाया। सुपर्णा की कुछ समझ में नहीं आ रहा था। उसका अटूट प्रेम और अगाध  विश्वास सब एक ही झटके में बिखर गया।
किन्तु तब भी उसने अपनी माँ से कहा कि अवश्य ही उन्हें कुछ धोखा हुआ है। ऐसा कैसे हो सकता है मैंने उसकी फोटो देखी है। वो तो एक नवयुवक है।
माँ ने कहा,” हाथ कंगन को आरसी क्या ? ”
तत्काल माँ ने सुपर्णा के मोबाइल से एक मैसेज उसी लड़के को भेजा। वृद्ध  का मोबाइल घनघनाया और उस पर सुपर्णा का मुस्कुराता मुख प्रतिबिंबित हुआ। सुपर्णा को अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ। उसने पुनः एक मैसेज कियातब कहीं जाकर उसको विश्वास हुआ। सुपर्णा की सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गई।
इतना बड़ा धोखावो भी एक पढ़ी लिखी लड़की के साथ आज उसे अपनी समझअपनी पढाई और अपने अस्तित्व तक से घृणा हो गई। इतना बड़ा आघात सुपर्णा सह नहीं सकी और अपना मानसिक संतुलन खो बैठी।
बहुत दवा कराई उसकी माँ ने किन्तु ……
पिछले साल जब उसकी माँ की मृत्यु हुई तो उसके सम्बन्धियों ने उसे पागलखाने में डाल दिया। ” पड़ोसन की आँखे भर आई,सब सुनाते -सुनाते।
और कामना …… उसे बिच्छू के काटने से भी भयानक दर्द का आभास हुआ। अपनी प्रिय सखी का दर्द उसके ह्रदय को दहला गया।
 “हाय !! ये क्या हो गया इतनी निष्ठुरताइतना अन्याय एक मासूम के साथक्या बिगाड़ा था उसने किसी काक्यों खेला किस्मत ने उसके साथ ऐसा दर्दनाक खेल क्यों ?????? आखिर क्यों???? ” कामना दर्द से चीख पड़ी।
बोझिल मन से कामना अपने घर की और बढ़ी। सुपर्णा की चिंता उसे खाए जा रही थी। मन ही मन वो इस नई तकनीक नए साधनो और ऐसे अपराधियों को कोस रही थी जो मासूमों को उम्र भर का दर्द दे करतड़पने के लिए छोड़ देते हैं। इसके चलते न जाने कितनो का ह्रदय टूटाकितनों ने अपनी जान गंवाई और कितने मानसिक रोगियों की भांति जीवन जीने पर विवश हो गए हैं। आखिर लोग क्यों नहीं समझते कि ये एक मृग मरीचिका है। ये सच्चा प्रेम नहीं उसका प्रतिबिम्ब मात्र है।
कामना आज स्वयं से यही प्रश्न कर रही थी कि,  क्या वो अपनी प्यारी सखी का दुःखउसकी वेदना दूर कर पाएगी ?”पूरी रात्रि कामना चिंतामग्न ही रही। रात्रि की कालिमा के साथ -साथ उसके मन का चिंताओं का अन्धकार भी शनैः शनैः दूर होने लगा।
आशावादी कामना ने इतनी सहजता से हार मानना नहीं सीखा था। मन ही मन कामना विचार कर रही थी कि आज यदि सुपर्णा ठीक होती तो संभवतः दोनों सहेलियाँ साथ में काम कर रही होतींलोगों के मन के घावों को अपने प्रेम एवं स्नेह से भर रही होतीं।
पर हाय रीकिस्मत आज एक मनोचित्सक की सखी एक मनोरोगी बन चुकी थी। अस्पताल पहुँचते-पहुँचतेडॉ कामना ने स्वयं से ये प्रतिज्ञा की कि, ” सुपर्णामुझे पूरा विश्वास है कि मै तुझे उस मायाजाल से निकाल कर असली एवं सुन्दर संसार में वापस ले आउंगी। मै प्रण करती हूँ किएक दिन तू अवश्य अपना खोया हुआ आत्मविश्वास वापस पाएगी और अपने जीवन से ये प्रसन्नता से पुनः कहेगी , ” Yes! I’m in love. “
डॉ कामना तेजी से अपने केबिन की और बढ़ गई।
__END__





No comments:

Post a Comment