Tuesday, 21 April 2015

अटूट बंधन


विवाह : अटूट बंधन 

                प्रातःकाल का समय था। जहाँ सभी लोग दिन का प्रारंम्भ  एक नई स्फूर्ति, एक नई उमंग के साथ करते  हैं वहीँ सपना और सुहास अपने विवाह को समाप्त करने के लिए जज की प्रतीक्षा कर रहे  थे। आज उनके बीच तलाक के अंतिम निर्णय का दिन था। एक प्रेमी युगल आज के निर्णय के पश्चात सदा के लिए अलग हो जाएगा। विवाहित जीवन के ६ वर्ष पश्चात उन्होंने इस पवित्र बंधन को पूर्ण रूप से समाप्त करने का विचार किया।
             सपना और सुहास का प्रेम कोई नया नहीं था। दोनों कॉलेज के दिनों से ही लैला- मजनूँ  की भांति जाने जाते थे। सुहास, सपना को बहुत प्यार करता था। और सपना ने अपने रात-दिन ही नहीं अपना पूरा जीवन सुहास के नाम लिख दिया था।
            दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रथम वर्ष में ही दोनों की दोस्ती हुई और कब ये दोस्ती ने प्यार का रूप ले लिया उन्हें पता ही न चला।  सपना बडे ही सुन्दर व्यक्तित्व की स्वामिनी थी। श्वेत, धुली  चांदनी जैसा उसका रंग, तीखे नैन नक्श , छरहरा बदन और काले घुंघराले मेघ जैसे बाल। कॉलेज का हर लड़का उस पर लट्टू था।पर वो सुहास के प्रेम मे पागल थी। सुहास भी कम आकर्षक नहीं था। उसका व्यक्तित्व बड़ा ही लुभावना था।
           दोनों घंटों हाथों में हाथ डाले यहाँ वहां घूमते रहते थे। दींन दुनिया की उन्हें रंचमात्र  भी चिंता न थी। सपना के रूप से सुहास बहुत प्रभावित था। जब वो उसके साथ चलती थी तो उसका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता था। और सपना, सुहास की मीठी मीठी बातों से उसे और भी प्यार करने पर विवश हो जाती थी। उसे लगता था कि सुहास से अच्छा जीवनसाथी उसे मिल ही नहीं सकता।
         कॉलेज समाप्त कर सुहास अपने पिता का शोरूम सँभालने लगा। और दोनों परिवारों की सहमति से सपना और सुहास विवाह के अटूट बंधन में बंध  गए। विवाह के प्रारम्भ के दिन हंसी ठिठोली, प्यार-तकरार और मौज मस्ती में ही निकल गए। सपना स्वयं को बड़ा ही भाग्यशाली समझती थी। वो सुहास के लिए कुछ भी कर सकती थी। कुल मिलाकर सपना पूरी तरह से उसके रंग में रंग गई थी। सच मानिए तो प्यार का जादू कुछ ऐसा ही होता है। इसमें प्रेमी अपनी सुध-बुध खोकर केवल अपने साथी की प्रसन्नता, उसकी पसंद, नापसंद उसके सम्मान और उसकी भलाई की प्रति-पल कामना करता रहता है।
          सुहास के काम पर जाने के पश्चात घर के सभी काम समाप्त करने के बाद भी सपना का मन नहीं लगता था। अब सुहास का साथ पहले  की भांति नहीं रहा था। धीरे धीरे सुहास ने सपना से बातें करना कम कर दिया था।सपना ने सोचा कि मै भी कुछ काम कर लेती हूँ तो दिन भर सुहास की यादों में घुलना नहीं पड़ेगा  और मेरा मन भी बहल जाएगा।
          एक दिन रात  के खाने पर उसने सुहास से पूछा, "सुहास मै सोच रही हूँ कि कोई काम कर लूँ। पूरा दिन तुम्हारे बिना काटना बड़ा ही असहनीय सा लगता है। "
            सुहास बिना उसकी ओर देखे ही बोला, " क्यों? घर में मेरे माता-पिता नहीं हैं? उनका ध्यान कौन रखेगा? अब तुम्हे उनकी सेवा करनी चाहिए और तनिक अपने को परिपक्व बनाना चाहिए। हर काम का एक समय होता है। पर मुझे लगता है कि तुम ये सब दायित्वों से घबरा रही हो। तुम्हें संभवतः पता नहीँ है कि पुरुष विवाह क्यों करते हैं? अपना घर बसाने से अधिक वे अपने माता पिता का ऋण चुकाना चाहते हैं। किस्मतवाले होते हैं वे लोग जिन्हे समझदार पत्नी मिल जाती है। मै तुम्हारे रूप पर आसक्त होकर आज भी पछता रहा हूँ। अब तुम्हे थोड़ा बडों की तरह व्यवहार करना चाहिए। अब तुम कोई कॉलेज वाली लड़की नहीं रह गई हो। एक पत्नी और एक बहू  की तरह व्यवहार किया करो। "
         
               सपना, सुहास के इतने हृदय को तोड़ने वाले शब्द सुनकर सकते में आ गई। सपना ने सुहास का आज ये नया रूप देखा था। उसकी आँखों से गंगा -यमुना बह चली।
           उसने रोते हुए सुहास से पूछा, " तो क्या तुमने  मुझे कभी प्रेम नहीं किया? मै तो रात-दिन तुमसे ही प्यार करती रही।  कभी अपने बारे में सोचा तक नहीं। और तुम कह रहे हो कि तुम्ने  विवाह अपने माता पिता का ऋण उतारने के लिए किया है। मैंने कब उन्हें पराया समझा? परया तो तुमने मुझे कर दिया ये सब कह कर। माना  कि मुझे अधिक काम काज नहीं आता पर मै सब सीख तो रही हूँ। फिर भी सहयोग करने के विपरीत तुम  ऐसी बातें कर रहे हो ?"
 उस इन के बाद से दोनों के बीच बातचीत लगभग शून्य के बराबर हो गई। बात होती भी तो आरोपों और प्रत्यारोपों के सिवा कुछ भी नहीं।
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                   एक वर्ष उपरान्त वो एक प्यारे से शिशु की माँ बन गई। सुहास और सास-ससुर सभी प्रसन्न थे। सपना को भी जीने का एक सहारा मिल गया। अब उसका सारा समय अपने नवजात शिशु की देखभाल में ही निकल जाता था।
              सुहास को  सपना में  अब और भी कमियां दिखने लगीं  थीं। उसे सपना के हाथ का खाना पसंद नहीं था।
            एक दिन सपना ने बड़े प्यार से उसके लिए खीर बनाई। खीर खाते ही उसने थू-थू कर उसे थूक दिया। सपना जितना भी प्रयास करती उसे प्रसन्न रखने का उतना ही वो उससे दूर होता जा रहा था। सुहास अब बिलकुल बदल चुका था।
           सुहास अब उसके पास केवल अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए ही आता था। सपना कैसी  है या उसे कोई कष्ट तो नहीं है ये जानने का उसने कभी भी प्रयास नहीं किया था।
         धीरे-धीरे सपना ने इसे ही अपनी नियति मानकर स्वीकार कर लिया था। सास-ससुर और उसका नवजात  शिशु उसके जीवन का अभिन्न अंग बन गए थे। जब नन्हा सा बालक अपने कोमल हाथों से सपना का मस्तक सहलाता था तो उसके सारे कष्ट समाप्त हो जाते थे। वो ईश्वर का धन्यवाद करती थी कि चाहे पति प्रेंम न मिला हो पर ये सुख भी किसी स्वार्गिक सुख से कदापि कम नहीं था। इस बच्चे के प्यार में ही मै अपना जीवन बिता लूँगी। पर समय के साथ साथ बच्चा बड़ा हो गया और स्कूल जाने लगा।  सपना फिर से अकेली हो गई।  ऐसा नहीं है की सारी स्त्रियां बाहर काम कर के ही सुख पाती हैं। यहाँ बात है उसके स्वाभिमान की, उसके आत्मसम्मान की। जिसे सुहास ने बुरी तरह से रौंद  डाला था।
               यूँ तो उसे खाने पीने, ओढ़ने-पहनने की कोई कमी नहीं थी। पर क्या जीवन की सार्थकता, संबधों का निबाह इस पर ही टिका है? नहीं, सही मायने में तो पति-पत्नी में यदि परस्पर प्यार, विश्वास और एक दूजे के लिए सम्मान की भावना हो तो ये सम्बन्ध जीवन भर निभाए जा सकते है। सच कहा है कि सम्बन्ध बनाना बड़ा ही आसान है किन्तु उसे निभाना बड़ा मुश्किल। संबंधों के पवित्र वृक्ष को प्रेम और स्नेह रूपी जल, समझदारी जैसी धूप और विशवास जैसी खाद की आवश्यकता होती है। कौन यहाँ पर सर्वगुण संपन्न है?                          हम अपने प्रेमी को उसकी कमियों के साथ ही स्वीकार करें तो संबंधों में दरार संभवतः नहीं पड़ेगी।
सपना अब उदास रहने लगी थी। अब उसने अपना ध्यान रखना, बनना संवरना सब छोड़ दिया था।
उसकी सुन्दर आँखों को काली स्याही ने घेर लिया था। शरीर का रंग चिंता के कारण फीका पड़ गया था। रेशमी बाल अब रूखी-सूखी घास फूस से अधिक कुछ भी नहीं थे। वो किसी कोने में दुबककर बैठ जाना चाहती थी।
उसके जीवन से मानो किसी ने सुख का रस पूरी तरह से निचोड़ लिया हो।
ऐसे ही कई वर्ष बीत गए। सपना का पुत्र अब तक पांच वर्ष का हो चुका था।
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          उस दिन सुबह से सपना को अपना सिर भारी सा लग रहा था। उसे हल्का सा बुखार था। सारा शरीर दर्द से कांप रहा था।
सुहास ने नाश्ता(सुबह का जलपान )करते हुए एक निर्णय सुनाया , "सपना आज रात को मैंने अपने कुछ दोस्तों को आमंत्रित किया है। तुम अच्छा सा खाना पका लेना और जरा अपना हुलिया भी ठीक कर लेना। मेरी नाक नहीं कटनी चाहिए।  समझीं ?"
          सपना ने दबे स्वर में कहा ," पर सुहास आज मेरी तबियत कुछ ढीली है। तुम एक आध दिन बाद उन्हें बुला लेते। "
        सुहास चिढ़ते हुए बोला , " तुम औरतों का ये रोज का रोना है। कभी सिरदर्द, कभी बुखार, तो कभी ये तो कभी वो। मै कुछ नहीं जानता, मै उन्हें  आमंत्रित कर चुका हूँ। "
तभी सपना की सास ने आकर उसे चुप रहने का संकेत दिया।
रात के खाने की तैयारी दोनों ने मिलकर करी। सपना अपनी दवाई खाकर यंत्रवत  काम करती रही। अतिथियों के आने के पहले वो हाथ- मुंह धोकर तैयार हो गई। सुहास के पसंद की साड़ी पहनी। मन का दुःख किसी भी बाह्य श्रृंगार से छिपाना असंभव है।
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              सभी लोगों के आने से सुहास बड़ा ही प्रसन्न था। सपना को भी थोड़ा परिवर्तन अच्छा लगा। उनमे से एक उनके कॉलेज का साथी भी था, रवि । रवि, सपना को ऐसे हाल में देखकर दंग  ही रह गया। उसने मौका देखकर उससे पूछा , " सपना क्या बहुत बीमार रहीं इधर?"
          सपना अपने मुख पर कृत्रिम मुस्कान लाते हुए बोली , " नहीं रवि, मै ठीक हूँ और सुहास के साथ प्रसन्न भी। "
रवि हँसते हुए बोला, " तुमने बड़े समय से स्वयं को आइने में देखा नहीं, ऐसा लगता है। तुम्हारी आँखों के चारों ओर पड़े काले घेरे सारी  अनकही कहानी सुना रहे है। "
रवि और सपना ने एक ही स्कूल से १२वी  पास की थी। पर कॉलेज में जैसे ही उसे सुहास दिखा उसने रवि से बातचीत लगभग समाप्त कर दी थी। उसे लगता था कि इतनी सुन्दर लड़की के साथ तो एक आकर्षक लड़के को ही चलना चाहिए।
रवि की स्नेह भरी बातें सुनकर सपना की आँखें छलक आइं।
फिर भी अपने आंसुओं को छिपाते  हुए वो बोली ," किस वस्तु की कमी है मुझे ? एक अच्छे पद पर कार्यरत पति, माता-पिता समान सास ससुर और एक प्यारा सा बेटा। किसी भी स्त्री को जीवन में और क्या चाहिए होता है? "
तभी सुहास के आने से दोनों चुप हो गए।
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अचानक आधी रात में सपना की आँख खुली। वो पानी लेने रसोई की ओर गई तभी उसे किसी की फुसफुसाने की आवाज सुनाई दी। एक स्त्री, उसकी सास, की आवाज थी और दूसरी सुहास की।
सास,  "सुहास बेटा जैसा बताया है, यदि तुम वैसा ही करते रहे तो सदैव वो तुमसे दबी रहेगी अन्यथा प्रेम विवाह में तो औरतें पति को अपनी उँगलियों पर नचाती हैं। और हाँ , नौकरी कभी मत करने देना और सदा उसे झिड़कते रहना। तभी तुम एक सफल पति बन पाओगे। "
सुहास धीमे स्वर में, " पर माँ मै उसे प्यार करता हूँ , उसे दुःख देता हूँ तो स्वयं भी कम दुखी नहीं होता हूँ। पर आपकी बात भी मुझे सही लगती है कि यदि उसे छूट  दी तो संभवतः वो आप लोगों से अलग रहने को कहे और मुझे अपनी बातों में फंसा सकती है। इसलिए मै वही करूँगा जी आप कहती हैं। अच्छा जाता हूँ माँ।  शुभ रात्रि !"
सपना को सारी  बातें समझ आ गईं।  ये  कोई और नहीं उसकी सास ही थी जो सुहास के मन में विष घोल रहीं थीं।
अगले दिन ही सपना कोई बहाना बनाकर अपने मायके चली गई और सुहास को कोर्ट का नोटिस भेज दिया।
तब से लेकर अब तक सपना ने सुहास से एक बार भी बात करने का प्रयास नहीं किया। उसे गहरा आश्चर्य था कि सुहास ने अपनी माँ के कहने पर अपने प्यार  तक को भुला दिया और उसके साथ इतना दुर्व्यवहार किया।
                    और आज अंतिम निर्णय का अवसर था। कहीं एक छोटी सी आशा की किरण सपना के मन में थी कि यदि उसका प्यार सच्चा है तो सुहास उसे सम्मान से उसके घर में उसका स्थान दिलाएगा। पर समय तीव्रता से बीता जा रहा था। सुहास अभी तक कोर्ट में नहीं पहुंचा था। किसी अंजानी आशंका से सपना का मन कांप रहा था कि तभी रवि का फ़ोन आया कि सुहास ने आत्महत्या का प्रयास किया है, तो वकील से  निवेदन कर निर्णय की घडी थोड़ी आगे बढ़वा  दो।
              सपना की  सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गई। किसी तरह वकील को सारी  बात बता कर वो बाहर की  ओर भागी। बाहर रवि गाड़ी लेकर खड़ा था।  सपना ने विस्मय से  देखा और जल्दी से सुहास से मिलने चल दी।
सपना कांपते हुए बोली, " रवि तुम तो कह रहे थे कि तलाक वाली योजना काम कर जाएगी? ये देखो क्या हो गया? सुहास कैसा है? उसने आत्महत्या का प्रयास क्यों किया? सब मेरी गलती है? मेरे सुहास को कुछ हो गया तो मै क्या करुँगी रवि? मै भी मर जाउंगी? उसके बिना तो मै इस जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती। हे प्रभु ये सब क्या हो गया ?"
रवि बिना किसी उत्तर के सारी बातें चुपचाप सुनता रहा।
रवि ने गाड़ी अपने घर के सामने लगा ली और सपना को उतरने को कहा। 
           सपना गहन आश्चर्य से गाड़ी से उतरी। रवि उसे अंदर ले गया जहाँ पर सुहास आँख बंद कर लेटा  हुआ था।
सपना चीखते हुए उसकी ओर भागी ," सुहास ये तुमने क्या किया? मैंने तो तलाक  का नोटिस केवल तुम्हे सबक सीखाने के लिए भेजा था। "
        सुहास उठकर बैठ गया ," मुझे क्षमा कर दो सपना। मैंने तुम्हारा बड़ा अपमान किया तुम्हे विवाह के पश्चात प्यार और स्नेह देने के विपरीत केवल कटक्षों और तानों में ही बात की। मै माँ की बातों में बहक गया था। वो तो भला हो रवि का जिसने मुझे समय रहते सब समझाया कि पत्नी को प्यार देना ही केवल  पति का दायित्व नहीं अपितु उसके मान-सम्मान और उसकी इच्छाओं का ध्यान रखना भी पति का कर्तव्य है। तुमसे और मुन्ने से बिछड़कर जीने की तो मै सोच भी नहीं सकता। मैंने तुम्हारा प्यार वापस पाने के लिए ये नाटक किया था ।  पर वो है इस नाटक का सूत्रधार जिसने  समय रहते मुझे मेरे कर्तव्यों का बोध कराया और हमारे जीवन में एक बार फिर से प्यार के फूल खिला दिए। "
सपना को आश्चर्य में पड़ा देखकर सुहास ने उसे विस्तार से बताया।

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 उधर कोर्ट में जब सभी सुहास की प्रतीक्षा कर रहे थे तो सुहास ने स्वयं को कमरे में बंद कर लिया था। रवि उसकी मनोदशा से अनभिज्ञ नहीं था इसलिए वो उसे कोर्ट के लिए लिवाने के लिए आ गया। जब उसे पता चला तो उसने सुहास का प्यार से दरवाजा खुलवाया। स्वयं भीतर आकर उसने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया।
रवि ने सुहास से उसके विवाह की फोटो मंगवाईं। सुहास, फोटो देखकर फूट-फूटकर रोने लगा।
रवि ने उसे रोने दिया जिससे कि उसका मन तनिक हल्का हो जाए।
              कुछ देर बाद रवि ने पूछा ," तुम विवाह के बाद यकायक इतने बदल कैसे गए? विश्वास नहीं होता कि जो लड़का सपना पर जान छिड़कता था वो आज उसे खून के आंसू रुला रहा है। आखिर तुम्हे ऐसा किया ही क्यों ?"
             सुहास बोला, " विवाह के प्रारम्भ में सब कुछ ठीक था। हम सब प्रसन्न थे। किन्तु धीरे-धीरे माँ ने उसकी कमियां गिनानी प्रारम्भ कर दीं। उन्हें हमारा प्रेम विवाह संभवतः पसंद नहीं था।  वो रात दिन मेरे कान उसकी बुराइयों से भरतीं  रहतीं थीं।  मै तंग आ चुका था। मुझे लगा कि माँ के प्रति मेरा प्रथम कर्तव्य है इसलिए सदा सपना को झिड़कता रहा। पर आज जब मै उसका दर्द समझ पा रहा हूँ तो वो मुझसे दूर जाना चाहती है। रवि, मै, सपना और मुन्ने की बिना इस जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता। उनसे दूर रहने से अच्छा है कि  मै ये संसार ही त्याग दूँ। "
       रवि ने उसके कन्धे  पर हाथ रखा और कहा , " सुहास, अभी भी अधिक देर नहीं हुई है। तुम कहो तो सपना को मै सदा के लिए तुमसे मिलवा सकता हूँ। पर उसके पहले तुम्हे मुझे आश्वासन देना होगा कि आगे से ऐसा कभी नहीं होगा। भारत का कौन सा ऐसा घर है जहाँ सास अपनी बहू  से प्रसन्न रहती है? संभवतः एक भी नहीं।  उसका कारङ  है कि यहाँ माएँ अपने बेटों को अपनी जान से भी अधिक प्यार करती हैं और वो अपने बेटे को खोना नहीं चाहतीं। तुम्हें उन्हें ये विश्वास दिलाना होगा कि माँ पहले तो मै अकेला था आपकी सेवा के लिए पर अब तो मेरी अर्धांगिनी भी मेरे साथ है।  हम सदा आपका ध्यान रखेंगे। इससे उन्हें, तुम्हे खोने का डर समाप्त हो जाएगा और वो तुम्हें और सपना  को अलग करने का प्रयास नहीं करेंगी। क्या कहते हो ? कर पाओगे ये सब ? यदि फिर से सपना की आँखों में  आंसूं आए तो ठीक नहीं होगा स्मरण रहे। "
और दोनों  दोस्त खिलखिलाकर हंस पड़े।
सुहास का पक्का वचन पाकर रवि ने सपना को फ़ोन किया जिसे सुनते ही वो भागी चली आई।
आज वर्षों पश्चात सपना को उसका सुहास और सुहास को अपनी सपना वापस मिल गए थे। दोनों की आँखों में हर्ष के आंसूं थे और सुहास ने सपना के हाथ को ऐसे कस कर थाम रखा था जैसे जीवन भर साथ निभाने का वचन वो पुनः उसे दे रहा हो।
रवि ने धीरे से अपनी आँखें पोंछी और कमरे से बाहर निकल गया।
सच है प्यार केवल पाने का ही नाम नहीं बल्कि देने का नाम है।


-------The Beginning-------








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