Wednesday, 15 April 2015

तेरे लिए


PhotoCredit:chasnz
From morguefile.com

एक बड़ी ही खूबसूरत सी लड़की अपने कमरे में अपने बेड पर अधलेटी सी  हाथ में एक नावेल लिए बड़े ही ध्यान से उसे पढ़ रही है। डायरी कुछ इस प्रकार से थी
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राजधानी ट्रेन से मैं दिल्ली से मुंबई जा रहा था। आजकल कोई किसी से ज्यादा बात तो करता नही, इसलिए अकेले सफर करना बड़ा ही बोरियत से भरा होता है। सामने वाली बर्थ  पर एक मुस्लिम फैमिली बैठी थी। मै ठहरा पक्का  ब्राह्मण। मैंने सोचा 'उफ़ ये क्या अब रात भर  इन मांसाहारियों के साथ रहना पड़ेगा। कहाँ फंस गया मैं? '
मै साइड की बर्थ पर बैठा था। मैंने अपनी एक नावेल निकाली और पढ़ने लगा। उस परिवार में माता पिता और उनकी एक लड़की थी। लड़की पूरी तरह से बुर्के में लिपटी थी।  मै बड़े ही आश्चर्य से उसे कनखियों से देखने लगा। कुछ सामान उठाते हुए उसके हाथों पर मेरी नजर ठहर गई।
अब मेरा मन उसे और देखने का करने लगा। जितना मै उसकी और देखता, मुझे लगता कि उसकी आँखे मुझे इस बात के लिए घूर रहीं हैं। लेकिन मै क्या करता। उसके हाथ सच में इतने खूबसूरत थे जितने कि आज तक मैंने नहीं देखे थे।
लड़की छेड़ने का मुझे कोई खास शौक नहीं था। पर ना जाने क्यों मै उसकी ओर खिंचा चला जा रहा था।
तभी उसके पिताजी जोर से बोले, " नीलोफर !! आज जा बच्ची खाना खा ले। "
मै मन ही मन खुश हुआ,' हूँ तो नीलोफर नाम है जनाब का। अरे ये क्या मै उर्दू कैसे बोलने लगा!'
खैर एक झलक न मिलनी थी तो न मिली, हम दोनों अपने-अपने स्टॉप यानि मुंबई सेंट्रल पर उत्तर गए।
मुझे लगा ये कहानी अब यहीं पर ख़त्म हो गई है। मन को समझाया कि ट्रेन के सफर में किसी  से मिलने भर से कुछ नहीं होता।
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रेखा जल्द से जल्द ये डायरी पूरी पढ़ लेना चाहती थी। पर माँ की आवाज से उसे उस डायरी को वहीँ पर छोड़ना पड़ा।
एक हिन्दू दंपत्ति श्रीमान और श्रीमती शर्मा जी, रेखा को नदी के किनारे से बचा कर लाए थे। किन्हीं कारणोवश रेखा अपनी याददाश्त खो चुकी थी।
श्रीमती शर्मा की अपनी कोई संतान न होने के कारण उन्होंने उसे, रेखा नाम दिया और अपनी बच्ची की तरह घर में रखा। रेख उन्हें ही अपना माता-पिता समझती थी।
रेखा की माँ ,"रेखा !! ओ रेखा !! नीचे आजा बच्ची और खाना खा ले। "
रेखा, "क्या माँ ! एक डायरी मिली है, इसमें किसी  की बड़ी ही अच्छी कहानी है, इसे अधूरी छोड़ने का बिलकुल मन नहीं कर रहा है।
माँ, "अच्छा किसकी कहानी है ?"
रेखा, "माँ पड़ोस में एक नए मकान मालिक आए है। पता नहीं उन्हें कैसे पता चल गया कि मुझे कहानी पढ़ने का बड़ा ही शौक है, तो उन्होंने कुछ पुरानी किताबें और ये डायरी मुझे दे दी। "
माँ, "ठीक है।  खाना खा ले फिर पढ़ ले। "
जल्दी-जल्दी रेखा खाना खाती है और फुर्ती से अपने कमरे में चली जाती। डायरी में आगे क्या होगा, ये जानने के लिए वो बड़ी बेचैन रहती है।
एक तो डायरी पर टाइटल लिखा था, "तेरे लिए, यानि कि जरूर कोई प्रेम कहानी होगी। फिर से वो डायरी  निकालती है और पढ़ने लग जाती है।
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वो ६ दिसंबर १९९२ की बात है। पूरे देश में गहमागहमी थी। सभी डर रहे थे कि क्या होगा, कहीं हिन्दू - मुस्लिम दंगे न शुरू हो जाएं। मुझे भी माँ ने सख्त हिदायत दी थी कि मुंबई का काम ख़त्म कर जल्दी से वापस दिल्ली आ जाना। मैंने भी सोचा कि बार-बार मुंबई कहाँ आना होता है, एक-आध
दिन रुक कर ही जाता हूँ।
७ दिसंबर को वी टी  मार्किट में अपना काम ख़त्म कर मैं वापस अपने होटल जा रहा था। तभी एक उन्मादित भीड़, जो कि मरने-मारने पर उतारू थी, से बचता हुआ मैं न जाने कैसे भिन्डी बाजार पहुँच गया। डर के मारे मेरी हालत ख़राब थी। मुझे लग रहा था कि अगर कहीं कोई मुस्लिम टोली आ गई तो मरा मै तो। 
एक बड़ी सी टोली आई ,"जय श्री राम !,जय श्री राम ! के नारों के साथ "मैंने सोचा कि चलो बच गए ये तो अपने ही है। पर जिस तरह से उन्होंने पूछा तो मुझे वो हिन्दू नहीं केवल हैवान लगे।
एक आदमी,"क्या नाम है तेरा ?"
मै  बोला, "मै केशव। "
दूसरा आदमी बोला, "छोड़ इसको, ये हिन्दू है। आगे चल आज तो मुसलमानों की खैर नहीं। "
और मुझसे बोला कि क्यों भटक रहा है इधर-उधर, जान प्यारी नहीं है क्या ?
और वो टोली जय श्री राम का नारा लगाते हुए चली गई।
मै, फिर सोचने लगा कि एक बार उसे देख लेता तो दिल को सुकून आ जाता पर हाय री  किस्मत। दिल भी आया तो एक मुस्लिम लड़की पर, और जिसका चेहरा भी अभी तक देखा नहीं है।
एक बार नीलोफर को देखने की चाह  लिए इधर-उधर  घूमने लगा। भिन्डी बाजार जाने की ही तो बात कर रहे थे वे लोग।
अरे ये क्या ? ये तो फिर एक टोली आ रही है। पता नहीं ये हिन्दू हैं या मुस्लिम ? क्यों एक मनुष्य, दूसरे के खून का प्यासा है? हे प्रभु रक्षा करना। मै मन ही मन ये दोहराने लगा।
मै फिर से छिपने के लिए और अंदर की गली में चला गया। घबराहट के कारण मै पसीने से लथपथ हो रहा था। टोली का शोर धीरे-धीरे पास आने लगा।
मै अपनी आँखे बंद कर अपने ईष्ट को याद करने लगा, तभी किसी हाथ ने मुझे तेजी से घर के भीतर खींच लिया और एक टोपी लगा दी। वो बोली, "नाम पूछे तो सलीम बता देना। "
इतने डर में भी मैंने उससे मज़ाक में कहा, "अच्छा अनारकली !!! "
वो भी हंसने लगी। हँसते हुए उसने अपना  हाथ मुंह पर रखा ।  मै चौंक पड़ा ,"तुम!! तुम तो वही हो ना ?"
हँसते हुए वो बोली ,"हाँ मै वही हूँ। "
मै बोला,"नीलोफर ! यही नाम हैं तुम्हारा ?"
वो बोली, " हाँ, लेकिन तुम इस इलाके में कैसे, ये तो मुस्लिम इलाका है, और तुम्हे पता नहीं है कि देश में क्या हो रहा है ? ये टोली निकल जाए तो सीधे अपने घर चले जाना। "
मै बोला, "जो आज्ञा अनारकली जी। "
तभी अंदर से किसी की आवाज़ आई और वो भाग गई।
मै फिर से सड़क पर आ गया। मेरी टोपी देखकर मुसलमानो की टोली ने मुझे छोड़ दिया। उनमे से एक बड़ा ही खतरनाक था। वो बोला, "क्या नाम है तेरा? कहाँ  रहता है ?"
मै थोड़ा घबराया, "मै सलीम हूँ। दिल्ली में चांदनी चौक में रहता हूँ। "
फिर वे चले गए।
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रेखा की आँखों के आगे सारा दृश्य ऐसे घूम रहा था मानो वो कोई फिल्म देख रही हो।
९ दिसंबर १९९२ को मैंने अपना बोरिया बिस्तर बाँधा और वापसी की ट्रेन पकड़ने चल पड़ा। पर अंदर से एक आवाज आ रही थी। ऐसा लग रहा था कि कोई बड़ा करीबी यहीं छूट गया है।
इसे अपना सौभाग्य कहूँ या नीलोफर का दुर्भाग्य, वे लोग भी उसी ट्रेन से मुंबई से दिल्ली वापिस जा रहे थे।
 इतना शोर-शराबा था कि  पता ही नहीं चला कि हिन्दुओं का एक झुण्ड कहाँ से मार -काट मचाता हुआ वहां आ पहुंचा। मै  ट्रेन के दरवाजे पर ही खड़ा था। कुछ ही देर में वहां पर लाशों का ढेर लग गया।
ट्रेन हलके से आगे बढ़ी तो मै भी अपनी सीट पर जाने लगा तभी एक खुशबु से भरा हवा का झोंका आया और मै पलट गया।मैंने देखा लहूलुहान, नीलोफर के पिता अपने दोनों हाथ जोड़कर मुझसे दया की भीख मांग रहे हैं, "मेरी बच्ची को बचा लो बाबू, मेरी नीलू को बचा लो। "
उनका सर खून से लथपथ था, मानो किसी ने उनके सर पर ही वार किया था। मेरा मन भीषण दुःख और क्षोभ से भर आया। मै आत्मग्लानि से भर गया क्योंकि मै भी एक हिन्दू जो था।  मैंने सहमति में अपना सर हिलाया।
नीलू, मेरी ओर हाथ बढ़ा रही थी। मैंने सोचा कि इसे बचाना ही चाहिए। मैंने अपना हाथ बढ़ा दिया। हाथ पकड़कर वो ऊपर आ गई। तब तक ट्रेन ने गति पकड़ ली थी। अपने पिता को यूँ बेहाल देखकर नीलोफर फूटफूटकर रोने लगी। नीलोफर,"मेरे अब्बू !!!!मेरी अम्मी, मुझे भी उनके पास जाना है।  मै नहीं जी सकती उनके बगैर। " 
वो तड़प -तड़प कर रोने लगी। मै उसे ढाढ़स बंधाने का भरसक प्रयास करने लगा। अब मेरी जिम्मेदारी और बढ़ गई थी। मेरी नीलू, मुझे इसे बचाना ही होगा हर हाल में। तभी किसी लड़के ने आगाह किया हिन्दुओं की टोली ट्रेन में चढ़ गई है।
मैंने फटाफट नीलू से उसका बुरका उतरवा कर फेंका। जिस चेहरे को देखने की बड़ी ही तड़प थी उसे उस समय मै नहीं देख रहा था। दिमाग  बस यही सोच रहा था  कि क्या करूंगा यदि वे सब यहाँ आ गए।
मैंने जल्दी से नीलोफर का हाथ पकड़ा और दूसरे डिब्बे में चला गया। नीलोफर का डर के मारे बुरा हाल था।
मैंने पूछा नीलोफर तुम्हारी जान बचाने का अब एक ही रास्ता है। नीलोफर आश्चर्य से मेरी ओर देखने लगी।
मैंने आव देखा ना ताव उसके बालों से क्लिप निकाली ओर अपने हाथ पर मार लिया। खून की धार निकल पड़ी। मैंने उसकी मांग अपने खून से भर दी और अपनी  आँखों से उसे मैंने, अपनी वफ़ा का आश्वासन दिया। उसका दुपट्टा लेकर मैंने उसका घूंघट बना दिया। और मै उसके पास शान्ति से बैठ गया।
जय श्री राम का नारा लगाती हुई टोली बुर्के वाली को ढूढ़ते हुए चली गई। और हम दोनों एक पवित्र रिश्ते में बध गए।
उसके माता पिता तो बेचारे दंगों में ही मारे गए। पर मेरे माता पिता ने इस रिश्ते को कभी ना स्वीकारने की कसम खाई।
मेरी नीलोफर अक्सर ये पूछती थी कि इतना बड़ा निर्णय तुमने क्यों लिया, तो मै उससे यही कहता हूँ ,"तेरे लिए, बस तेरे लिए। "
रेखा को अब उनकी पूरी कहानी जानने की इच्छा होती है । इस प्रेम  कहानी को पूरा करने के लिए रेखा बड़ी ही परेशान होती है । इसी चिंता में वो एक दिन दिल्ली  स्टेशन पहुँच जाती है।
रेखा की एक फ्रेंड उसे वहां मिलती है।
नेहा , "अरे रेखा तू यहाँ ? स्टेशन पर ? कहीं जा रही है ?"
रेखा, "मै उसी नीलोफर की प्रेम कहानी को पूरा करने के लिए इधर- उधर भटक रही हूँ। "
नेहा, "तू कहीं पागल तो नहीं है ? अपनी प्रेम कहानी बनाने के बजाए तुझे दूसरों की प्रेम कहानी की चिंता है। तू भी बस। "
रेखा, "जब तक मै पूरी कहानी जान ना लूँ, पता नहीं क्यों मुझे चैन नहीं आएगा। मैंने सोचा कि शायद यहाँ उस कहानी की कोई जानकारी मिल जाए तो मै उसे पूरा कर दूँ।
दूसरे दिन नेहा अपने पापा से मिलने सिटी हॉस्पिटल जाती है।
नेहा  को पता चलता है कि कोई मरीज आया है जो कि नीलोफर, नीलोफर का नाम पुकार रहा है। और नेहा, रेखा को फोन लगा देती है। 
नेहा, " रेखा, जल्दी से सिटी हॉस्पिटल आजा। कुछ सवाल मत कर,  कुछ है तेरे लिए। "
रेखा जल्दी से सिटी हॉस्पिटल पहुँचती है," हाँ नेहा, बोल क्या है मेरे लिए ?"
नेहा,  रेखा को एक रूम में ले जाती है जहाँ कोई लड़का लेटा  हुआ है।
रेखा को देखते ही वो लड़का चौंक कर उठ जाता है।
लड़का, " तुम!! नीलू!!!, मेरी नीलोफर !!!! कहाँ चली गई थी तुम ?कितना तड़पा, कितना रोया मै तेरे लिए नीलू सिर्फ तेरे लिए। "
रेखा बोलती है, "लेकिन मै तो रेखा हूँ। नीलोफर नहीं। "
जोर-जोर से हँसने  लगा केशव। फिर रोने लगा बिलख -बिलख कर।
केशव, "नीलू, तुझे मै सिर्फ तेरी आहट तक से पहचान सकता हूँ, समझीं। "
नेहा, "अच्छा आपके पास नीलोफर की कोई फोटो है क्या ?"
केशव अपना सर खुजाते हुए बोलता है, "फोटो मेरी डायरी में थी। लेकिन मेरी डायरी कहीं खो गई है। "
रेखा के हाथ से डायरी छूट जाती है और उसकी फोटो नीचे गिर जाती है। 
रेखा बुरी तरह डर जाती है। लेकिन फिर भी वो केशव को उसकी डायरी दे देती है और उसके आगे लिखने को कहती है। केशव कहता है आगे की बात मै बताता हूँ।
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केशव बताना शुरू करता है।
हम लोग शादी के बाद आराम से रह रहे थे। मेरे माता-पिता भी हमें क्षमा कर चुके थे। पता नहीं कैसे कुछ मुस्लिम लोगों को हमारे बारे में पता चल गया।
मै शाम को घर की ओर जा रहा थे तभी कुछ मुस्लिम लड़कों ने मुझे चारों ओर से घेर लिया। मै कुछ कहता इसके पहले ही उन्होंने मेरे ऊपर मिटटी का तेल डाल दिया। माचिस जलाने की ही देर थी, कि न जाने कहाँ से नीलोफर भागती हुई आई और मुझसे लिपट गई। उन सबसे हाथ जोड़कर कहने लगी कि मुझे छोड़ दें और उसे मार दें। उसने पास में रखा तेल अपने ऊपर  डाल लिया। कुछ ने कहा छोड़ देते हैं, तो कुछ ने कहा कि दोनों को मार दो ,यही इनकी सजा है। किसी ने धीरे से माचिस जलाकर मेरी नीलू पर फेंक दी। आग मुझ तक पहुँचती इसके पहले ही नीलू मुझे धक्का देकर नदी में कूद गई। बहुत ढूढ़ा उसे। बहुत तकलीफ झेली उसने मेरे लिए। केशव बहुत ही दुखी था। वो रोते-रोते बेहोश हो गया। डॉक्टर उसे देखने आ गए।    
रेखा की आँखों से आंसू बहने लगते हैं। पर उसे अभी भी कुछ याद नहीं आता है।
रेखा अपने माता-पिता से पता करती है तो उसे पता चलता है कि वे उसे नदी से बचाकर लाए हैं। रेखा की माँ रोते  हुए उसे गले लगा लेती हैं।
रेखा की माँ उसे बताती हैं, " तुम्हारे गले में जो लॉकेट पड़ा है उससे केवल ये पता चला कि तुम एक हिन्दू लड़की हो क्योंकि उसमें श्री राम का फोटो है।
रेखा अपना सर पकड़कर बैठ जाती है। वो अपनी माँ से कहती है, "माँ !!! तुम्हीं मेरी माँ हो, मै दोबारा अपनी माँ को नहीं खो सकती माँ। "
रेखा को धीरे -धीरे अपनी पिछली जिंदगी याद आने लगती है। वो अम्मी का दुलार करना और अब्बू का कन्धों पर घुमाना। वो बुरका पहनने के लिए उसका नानुकुर करना। स्टेशन पर लहूलुहान अम्मी का आँखों के सामने मरना और अपने हाथों से रेत  की तरह अब्बू का हाथ हमेशा के लिए छूट जाना।वो अब्बू का, केशव से  जोड़कर अपने बच्ची की रक्षा का वचन लेना और केशव का उसका जीवन बचाना। यादों की परतें धीरे-धीरे एक-एक कर खुलने लगती हैं और रेखा को सब कुछ याद आ जाता है।  
अचानक से रेखा चिल्लाने लगती है ,"केशव !!! केशव !!!!! कहाँ हो तुम।  तुम तो कहते थे सदा रहूंगा तेरे लिए। आ जाओ अपनी नीलू के पास, आ जाओ केशव। नहीं जी पाऊँगी तेरे बिन,  केशव।  "
रेखा की माँ  कहती है, " न रो मेरी बच्ची, न रो, बहुत कष्ट देखे तूने, अब खुशियों के दिन आ गए हैं। तेरा केशव आ गया है। जा बच्ची, जा  पूरी कर ले अपनी अधूरी प्रेम कहानी। "
और वो केशव से मिलने को भागती है और उधर केशव अपनी नीलू से मिलने के लिए भागता हुआ आता है। केशव और नीलोफर एक दूसरे  को ऐसे गले लगाते है जैसे
वे दो शरीर और एक आत्मा हों।  
दूर कहीं ये गाना बज रहा था
"तेरे लिए हम  हैं जिए हर आंसूं पिए, दिल में मगर जलते रहे चाहत के दिए, तेरे लिए, तेरे लिए "
प्रेम का ना तो कोई ओर  है और ना कोई छोर। प्रेम न ऊँच-नीच की दीवार से रुका है और ना ही किसी धर्म या जाति के बंधन से।

------The End-----





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