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मुम्बई का एक ऑडिटोरियम खचाखच भरा हुआ है। यहाँ आज
गाने की प्रतियोगिता होनी है। कुछ प्रतियोगियों के बाद कुणाल का नाम पुकारा जाता
है।
कुणाल एक २५ साल का नवयुवक है।
ऊँचा, लम्बा कद, गोरा रंग, घुंघराले बाल और बहुत ही मीठी सी आवाज।
वो गाना, गाना शुरू करता है। गाना बड़ा ही सुरीला है। लोग मंत्रमुग्ध
से कुणाल की मीठी आवाज में खो जाते हैं।
तभी जाने कैसे उसे अचानक खांसी
आ जाती है।उसका गाना अचानक से रुक जाता है। कुछ देर गिटार, हारमोनियम वाले सँभालते है पर कब तक ?
तभी एक प्यारी, सुरीली आवाज में एक लड़की, उस गाने को गाते हुए स्टेज पर आती है। फिर से लोग उस गाने
से आत्मविभोर हो जाते हैं।
कुणाल उसे देखकर चौक जाता है।
दोनों मिलकर गाना पूरा करते
हैं। हाल एक बार फिर से तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज जाता है।
लोग कुणाल से एक और गाने की
फरमाइश करते हैं।
पर कुणाल का ह्रदय उसे इस बात
की गवाही नहीं दे रहा था। वो जल्द से जल्द उस लड़की से बात करना चाहता था।
कुणाल स्टेज के पीछे उस लड़की
के साथ पहुँचता है और उससे पूछता है ,"तुम कहीं
करिश्मा तो नहीं ?"
लड़की सर झुका कर बोलती है ," हाँ कुणाल ! मै
करिश्मा ही हूँ। "
कुणाल आश्चर्य से," लेकिन तुम तो बनारस में थीं, यहाँ मुम्बई
में कैसे ?"
करिश्मा , "मै भी यहाँ गाना सीखने आई हूँ।"
कुणाल बोलता है, "लेकिन मेरा गाना
तुम्हे कैसे याद था ? और मै तुम्हारा धन्यवाद भी
देना चाहता हूँ कि तुमने समय पर आकर मेरा
गाना संभल लिया। "
करिश्मा मुस्कुराकर कहती है ," कोई बात नहीं कुणाल। अच्छा अब मै चलती हूँ। "
कुणाल उसका हाथ पकड़कर कहता है ,"माफ़ करना मैंने तुम्हारा हाथ पकड़ा पर पूरी बात जाने बिना मै
तुम्हे जाने नहीं दूंगा। तुम्हारी आँखों
की उदासी मुझसे कुछ कहना चाहती है। बताओ न करिश्मा ?
करिश्मा ,"अपने दिल से पूछो कुणाल, मुझसे नहीं। "
तभी कुणाल की माँ शालिनी आती
है , "करिश्मा ! करिश्मा ! ये तुम ही हो न ?तुम्हें अब तक ये गाना याद है ?"
करिश्मा ,"आंटी मुझे सब कुछ याद है पर कुणाल शायद सब भूल गया है।
अच्छा आंटी मै चलती हूँ। "
तभी करिश्मा की माँ मालिनी आती
है ,"शालिनी कैसे है तू?"
शालिनी और मालिनी बचपन की
सहेलियां हैं। दोनों सहेलियां गले मिलती हैं।
दोनों की आँखे छलक जाती हैं।
कुछ साल पहले वे दोनों बनारस
में रहा करती थी।
वे जब भी मिलती थीं तो कुणाल
और करिश्मा की शादी की बातें करती थीं।तब कुणाल सिर्फ ९ साल का और करिश्मा ८ साल
की थी।
धीरे-धीरे कुणाल और करिश्मा
अच्छे दोस्त बन गए। करिश्मा उसे अपने मोहब्बत समझने लगी। पर कुणाल को इसका एहसास नहीं हुआ।
कुछ सालों बाद कुणाल का परिवार
मुंबई शिफ्ट हो गया और कुणाल सब भूल गया।
करिश्मा तेजी से वहां से निकल
जाती है।
कुणाल भागकर उसे पकड़ लेता है
और उसकी आँखों में आँखें डालकर पूछता है ,"तो तुमने
बचपन की मोहब्बत को अपने दिल में छिपा कर रखा है ?"
करिश्मा शरमाकर ,"नहीं कुणाल ऐसा नहीं है। तुम पर कोई जबरदस्ती नहीं है।
"
कुणाल ,"अच्छा तो अब तुम मुझे पसंद नहीं करतीं। ठीक है फिर मै कोई
दूसरी। "
करिश्मा जोर-जोर से रोने लगती
है।
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"करिश्मा!!! ओ करिश्मा !!! जल्दी उठो, आज कुणाल की शादी
में जाना है ना। चलो जल्दी करो " करिश्मा की माँ उसे हिलाते हुए बोलीं।
हड़बड़ाकर उठ गई करिश्मा ,"क्या ?????? कुणाल कहाँ है माँ ?तो मै क्या ? ओह मेरा सुन्दर सपना टूट
गया? अनजाने ही उसकी आँखों से आंसूं छलक
पड़ते हैं। दिल धड़कने लगता है। "
मालिनी घबरा कर , "कौन सा सपना मेरी राजकुमारी? अच्छा कहीं
तू कुणाल के साथ तेरी शादी वाली बात तो नहीं कर रही ?"
करिश्मा, "नहीं माँ, ऐसा कुछ नहीं है। मै ठीक
हूँ।आप चलो मै तैयार होकर आती हूँ। "
बाथरूम में जाकर फूटफूट कर रोती
है करिश्मा। किसको बताए अपना दर्द ? ये बचपन की मोहब्बत आखिर
उसे ही क्यों हुई ? क्यों नहीं उसे भी इस प्यार का एहसास हुआ, आखिर क्यों नहीं?"
और कुछ देर बाद अपने दिल पर
पत्थर रख करिश्मा अपनी बचपन की मोहब्बत की शादी में जाने के लिए तैयार हो जाती है।
फेरों के समय अचानक शोर मच
जाता है कि एक लड़की बेहोश हो गई है। करिश्मा, कुणाल की शादी के समय ही जहर खा लेती है।
शालिनी रोते हुए उससे माफ़ी मांगती है।
शालिनी ,"करिश्मा हम दोनों सहेलियों ने तुम दोनों की शादी की बात
बचपन में कई बार करी थी। पर तुमने तो इसे दिल से ही लगा लिया।"
मालिनी रोते हुए कहती है ,"मैंने इससे कई बार पूछा पर इसने हमेशा टाल दिया। शायद ये चाहती थी कि कुणाल को भी एहसास
हो तभी ये कुछ कहेगी। अगर ऐसी बात थी तो तुमने
मुझे पहले कभी बताया क्यों नहीं मेरी बच्ची। एक बार तो मुझे बता देतीं। "
कुणाल को कुछ भी समझ में नहीं
आ रहा था। वो मन ही मन सोच रहा था , 'क्या बचपन की मोहब्बत इतनी सच्ची होती है ? क्या कोई किसी से इतना निस्वार्थ प्रेम भी कर सकता है। मुझे
क्यों नहीं ये एहसास हुआ ? आखिर क्यों
करिश्मा को इतना दुःख, इतनी वेदना
झेलनी पड़ी। ? काश मै भी उसके प्रेम का उत्तर
प्रेम से दे पाता । काश। "
करिश्मा एक बार कुणाल को देखना
चाहती थी।
कुणाल उसे पुकारता है ,"करिश्मा ये क्या किया तुमने ?"
कुणाल जल्दी से उसका सर अपने
गोद में रख लेता है।
करिश्मा अपनी आखिरी साँसों के
साथ कहती है ,"कुणाल! इस बार ना सही अगले
जन्म में तुम मेरे ही होना। वादा करो कुणाल, अगली बार मुझे यूँ ना बिसराओगे। मै तुम्हारे बिना जी कर
करती भी क्या कुणाल। मेरी बचपन की मोहब्बत हमेशा अमर रहेगी। कुणाल तुम खुश रहना।
अपना नया जीवन शुरू करना कुणाल। मुझे भूल …… कुन …… आल। हो सके तो ,मुझे माफ़ … कर देना कु
........"
करिश्मा हाथ जोड़कर अपनी माँ से
माफ़ी मांगती है। अपनी आँखों में वो अपने बचपन की मोहब्बत को समेटे सदा के लिए विदा
हो जाती है।
उसका दर्द से भरा दिल तड़प -तड़प
कर अब भी यही पुकार रहा था।
काश एक बार तो कुणाल से अपने
मन की बात कह पाती, क़ाश एक बार
तो उसके गले लगा कर रो पाती, काश ये मेरा
सपना टूटा न होता तो मै कुछ देर और उसके साथ होती, काश वो भी मुझे अपनी बचपन की मोहब्बत समझता, काश कभी किसी से
उसकी मोहब्बत न छिनती, काश वो मेरी
धड़कनो को महसूस कर सकता, काश इश्वर ने ये जीवन कुणाल के नाम करने का एक मौका दिया
होता, काश ये दिल उसके नाम ही से
धड़कता न होता, काश ये शर्म और रस्मों रिवाजों
का फासला न होता, तो बचपन की मोहब्बत
आज सफल हो जाती।
आज एक बार फिर प्रेम दीवानी
मीरा अपने कान्हा, अपने कुणाल की
बाहों में सदा के लिए सो जाती है।
-----The End-----
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