Monday, 6 November 2017

अभी तो शबनमी ओस की बरसात हुई है।






ऐ वक्त थम जा ज़रा ,
न फिसल यूँ रेत की तरह,
अभी अभी तो ज़िन्दगी से मुलाकात हुई है। 
अभी खिली दिल की कली, कुछ देर महक लूँ ज़रा ,
अभी तो शबनमी ओस की बरसात हुई है।  

ताउम्र गुज़ारी घड़ियाँ किसी के इंतज़ार में  ,
खुद से तो खुद की अभी-अभी पहचान हुई है। 
खुद पे हो जाऊँ फ़िदा कुछ देर ठहर जा ज़रा ,
अभी तो दिल के आईने से धूल कुछ साफ़ हुई है।

बेपनाह किया था प्यार उन से हमने ,
अभी तो अपनेआप से कुछ बात हुई है। 
जोड़ने  हैं टुकड़े  वजूद के गर तू साथ दे ज़रा,
अभी तो दोस्ती की नई-नई शुरुआत हुई है। 

 ऐ काश! तुझसे ही होती मोहब्बत पहली नज़र में ,
 मिट गए सारे गिले अब ख्वाहिशों की बरात हुई है। 
अब न भटकेंगे राह थाम तू लेना ज़रा ,
अभी तो निकला है दिन गुज़र रात हुई है। 

खिली है धूप कि अंधेरे छँट गए हैं सारे, 
ज़र्रे-ज़र्रे पे ज़िन्दगी की हासिल करामात हुई है । 
हसरत भरी निगाहों को रौशन हो जाने दो ज़रा, 
अभी-अभी  तो नमी से आँखें आज़ाद हुई हैं। 


------ऋतु अस्थाना 

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