ऐ वक्त थम जा ज़रा ,
न फिसल यूँ रेत की तरह,
अभी अभी तो ज़िन्दगी से मुलाकात हुई है।
अभी खिली दिल की कली, कुछ देर महक लूँ ज़रा ,
अभी तो शबनमी ओस की बरसात हुई है।
ताउम्र गुज़ारी घड़ियाँ किसी के इंतज़ार में ,
खुद से तो खुद की अभी-अभी पहचान हुई है।
खुद पे हो जाऊँ फ़िदा कुछ देर ठहर जा ज़रा ,
अभी तो दिल के आईने से धूल कुछ साफ़ हुई है।
बेपनाह किया था प्यार उन से हमने ,
अभी तो अपनेआप से कुछ बात हुई है।
जोड़ने हैं टुकड़े वजूद के गर तू साथ दे ज़रा,
अभी तो दोस्ती की नई-नई शुरुआत हुई है।
ऐ काश! तुझसे ही होती मोहब्बत पहली नज़र में ,
मिट गए सारे गिले अब ख्वाहिशों की बरात हुई है।
अब न भटकेंगे राह थाम तू लेना ज़रा ,
अभी तो निकला है दिन गुज़र रात हुई है।
खिली है धूप कि अंधेरे छँट गए हैं सारे,
ज़र्रे-ज़र्रे पे ज़िन्दगी की हासिल करामात हुई है ।
हसरत भरी निगाहों को रौशन हो जाने दो ज़रा,
अभी-अभी तो नमी से आँखें आज़ाद हुई हैं।
------ऋतु अस्थाना
No comments:
Post a Comment