Thursday, 24 September 2015



 समय  ने तो बस पहिया, उल्टा घुमाया है।





 मुस्कुराते हैं हम, तो  मुस्कुराता है वो,
 गीत सदा हमारे ही तो,  गुनगुनाता है वो।

न बेटे का, न बेटी का, दोष ये सारा हमारा है,
बेटी को झिड़क कर, हमने बेटे को ही पुकारा है।

जिसका जन्म लेना भी, किसी को रास न आता है ,
हल गलत के लिए जग, क्यों उसी पर ऊँगली उठाता है।

बहू को अपनी  कभी जब,  किसी ने बेटी न माना,
सताया हर तरह से और, दिया उसे  रोज़ ताना।

और मिला  जब अंत समय में ,  वृद्धाश्रम, तो रोते हैं ,
फिर बेटो को अभिशाप देते,और बहुओं को कोसते हैं।

ये नियम जिंदगी का सदा से चलता चला आया  है ,
 समय  ने तो बस पहिया जरा उल्टा घुमाया है।




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