समय ने तो बस पहिया, उल्टा घुमाया है।
मुस्कुराते हैं हम, तो मुस्कुराता है वो,
गीत सदा हमारे ही तो, गुनगुनाता है वो।
न बेटे का, न बेटी का, दोष ये सारा हमारा है,
बेटी को झिड़क कर, हमने बेटे को ही पुकारा है।
जिसका जन्म लेना भी, किसी को रास न आता है ,
हल गलत के लिए जग, क्यों उसी पर ऊँगली उठाता है।
बहू को अपनी कभी जब, किसी ने बेटी न माना,
सताया हर तरह से और, दिया उसे रोज़ ताना।
और मिला जब अंत समय में , वृद्धाश्रम, तो रोते हैं ,
फिर बेटो को अभिशाप देते,और बहुओं को कोसते हैं।
ये नियम जिंदगी का सदा से चलता चला आया है ,
समय ने तो बस पहिया जरा उल्टा घुमाया है।
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