दूसरा भाग
आदित्य के ठुकरा देने पर सारा बहुत ही उदास रहने लगती है। उसके माता-पिता, जिहोने कभी उसे सही मार्गदर्शन नहीं दिया, आज समाज की दुहाई देते हैं।
वे रात-दिन उसे कोसते रहते हैं। आज जब बिनब्याही गर्भवती सारा को अपने माता पिता के प्यार, उनके सहारे की सबसे अधिक आवश्यकता थी , उस समय वे ये कहकर पल्ला झाड़ लेते है कि हमने तो इसकी इतनी अच्छी तरह से परवरिश की थी। पता नहीं क्या हो गया कि सारा ने इतना बड़ा और गलत कदम उठाया?
सारा की हर छोटी बड़ी आवश्यकता उन्होंने अपने पैसों से पूरी करी किन्तु उसे वे सही मायने में अच्छे संस्कार नहीं दे पाए। इसीलिए वो बहक जाती है।
सारा नित प्रतिदिन के अपनी माँ के तानो से तंग आ जाती है।
जैसे जैसे दिन बढ़ने लगते हैं उसकी तबियत ख़राब रहने लगती है। हारकर एक दिन वो पुनः आदित्य को ऑफिस से फ़ोन मिलाती है और उसे अपनाने के लिए विनती करती है।
आदित्य उसे फिर से दो टूक उत्तर दे देता है। सारा असहनीय पीड़ा से रो पड़ती है।
वो भागती हुई अपने केबिन से बाहर जाती है। रवि उसके मुख से निकले कुछ टूटे- फूटे शब्दों और उसके हाव-भाव से उसके दुःख का अनुमान लगाता है।
आदित्य उसे फिर से दो टूक उत्तर दे देता है। सारा असहनीय पीड़ा से रो पड़ती है।
वो भागती हुई अपने केबिन से बाहर जाती है। रवि उसके मुख से निकले कुछ टूटे- फूटे शब्दों और उसके हाव-भाव से उसके दुःख का अनुमान लगाता है।
रवि भी तेजी से उसके पीछे चला जाता है। सारा, नदी में कूदकर अपने प्राण देने का प्रयास करती है। रवि नदी में कूदकर उसे बचा लाता है। रवि के मन में सारा के प्रति जो चिंता थी वो कुछ और नहीं, उसका सारा के प्रति एक लगाव, एक स्नेह था।
रवि, सारा को पास के ही एक हस्पताल में भर्ती कर देता है। वो सारा एवं अपने माता पिता को सूचित कर देता है।
सारा के माता-पिता तुरंत वहां पहुँच जाते हैं। सारा की माँ का रो-रोकर बुरा हाल था।
सारा की माँ, " रवि तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद, तुमने हमारी इकलौती बेटी की जान बचा ली। हम जीवन भर तुम्हारा ये उपकार नहीं भूलेंगे। "
रवि , "अरे नहीं औंटीजी, ये तो मेरा फ़र्ज़ था। बस ये जल्दी से ठीक हो जाए और मुझे कुछ नहीं चाहिए। औंटीजी, इनसे मिलिए, ये मेरे माता-पिता हैं। "
वो सारा के माता-पिता को अपने माता-पिता से मिलवाता है। सभी एक दूसरे को नमस्कार करते है।
रवि अपने माता-पिता से सारा के बारे में बात किया करता था। इसलिए वे सारा और उसके हालात से अनभिज्ञ नहीं थे।
रवि की माँ स्वयं को रोक नहीं पातीं और कहती हैं, "बच्चो के साथ मित्रता का व्यवहार रखना चाहिये। यदि बच्चों को समय-समय पर सही मार्गदर्शन दिया जाए तो वे कभी ऐसी गलत राह नहीं पकड़ेंगे। "
सारा की माँ , " हमने तो अपनी बच्ची को बहुत प्यार दुलार दिया है। उसकी सभी इच्छाऐं, सभी आशाएं हमने पूरी करी। यदि ये कहती तो हम इसकी शादी भी उस लड़के से करा देते। हम तो बहुत ही खुले विचारों के लोग हैं। आज तक हमने उस पर कोई भी रोक टोक नहीं लगाई। उसकी ख़ुशी में ही हमारी ख़ुशी है, पैसों की हमें कोई कमी नहीं है। वो लड़का चाहे जितना भी मांग सकता है, बस हमारी बेटी को अपना ले। "
रवि के पिता, सारा की माँ के मुख के भावों को समझ जाते हैं। वे अपनी पत्नी को शांत रहने का संकेत देते हैं ।
तभी डॉक्टर आकर बताते है कि माँ और बच्चा दोनों खतरे से बाहर हैं। सारा के माता पिता और रवि की जान में जान आती है।
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एक शाम, रवि अपने घर में कुछ चिंतित सा बैठा होता है। उसके माता- पिता उसके मन का हाल बिना बताए ही समझ जाते हैं।
रवि की माँ कहती है, " रवि, सारा के विषय में सोच रहे हॉ? चिंता तो मुझे भी होती है किन्तु हम कर भी क्या सकते है। ऐसे परिवारों को देखकर असीम दुःख होता है, जहाँ बड़ों की लापरवाही की सजा बच्चों को भुगतनी पड़ती है। लड़का हो या लड़की, माता पिता के सही मार्गदर्शन, उनके स्नेह और उनके आशीष की सभी को आवश्यकता होती है।
यदि रूपए- पैसों से ही व्यक्तित्व निखारा जा सकता तो सभी पैसे वालो के बच्चे संस्कारी और प्रसन्न होते। धन, आवश्यकताओं की पूर्ति तो कर सकता है किन्तु व्यक्तित्व निर्माण में इसका अधिक योगदान नहीं है।
सारा की माँ को हमने समझाने का प्रयास भी किया था किन्तु उनकी आँखों पर तो धन की पट्टी बंधी हुई थी। माँ की मानसिकता का पूरा प्रभाव बच्चे पर आता है।
ये अधिकाँश लोगों की भूल है कि माँ की सोच और उसकी भावनाओं का प्रभाव बच्चे पर केवल उन ९ महीनो में ही पड़ता है। बच्चा एक गीली मिटटी के समान होता है, माता पिता जैसा चाहेँ, उसे वैसा आकर देने में सक्षम हैं। पर अधिकतर लोग ये बात भूल जाते हैं और जीवन की दौड़-भाग में अपने बच्चों के साथ कीमती समय व्यतीत नहीं कर पाते।
जब तक बच्चा उनके साथ समय नहीं बिताएगा, वो अपने मन की बात अपने बड़ों को नहीं बताएगा तो वो अपने माता पिता से दूर होता जाएगा। "
तभी रवि के पिता मुस्कुराते हुए आते हैं। वे कहते हैं , " अच्छा जी, तो भई बच्चों को अच्छा इंसान बनाने का समस्त श्रेय उसकी माँ को ही जाता है। पिता तो कुछ करते ही नहीं। "
रवि की माँ उनके हाथ से ऑफिस का बैग ले लेती है , वो जानती हैं कि वो हंसी में ये सब कह रहे हैं।
वो जल्दी से उनके लिए कुछ मीठा और पानी का गिलास ले कर आती हैं।
पानी देते हुए, वो कहतीं हैं, " नहीं, एक बच्चे के सही चरित्र निर्माण में उसके माता-पिता दोनों का ही समान योगदान होता है। आप का गंभीर बातों को भी सामान्य रूप से लेने से सदा ही समस्याएं समाप्त हो जाती हैं और वातावरण हल्का हो जाता है।"
रवि के पिता भी खिलखिलाकर हंस पड़ते हैं।
घर का वातावरण बहुत हल्का हो जाता है।
रवि भी मुस्कुरा देता है। उसे अपने माता-पिता की समझदारी पर गर्व होता है।
वो मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देता है कि उसने उसे इतने अच्छे और समझदार माता पिता दिए है।
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रवि, सारा को पास के ही एक हस्पताल में भर्ती कर देता है। वो सारा एवं अपने माता पिता को सूचित कर देता है।
सारा के माता-पिता तुरंत वहां पहुँच जाते हैं। सारा की माँ का रो-रोकर बुरा हाल था।
सारा की माँ, " रवि तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद, तुमने हमारी इकलौती बेटी की जान बचा ली। हम जीवन भर तुम्हारा ये उपकार नहीं भूलेंगे। "
रवि , "अरे नहीं औंटीजी, ये तो मेरा फ़र्ज़ था। बस ये जल्दी से ठीक हो जाए और मुझे कुछ नहीं चाहिए। औंटीजी, इनसे मिलिए, ये मेरे माता-पिता हैं। "
वो सारा के माता-पिता को अपने माता-पिता से मिलवाता है। सभी एक दूसरे को नमस्कार करते है।
रवि अपने माता-पिता से सारा के बारे में बात किया करता था। इसलिए वे सारा और उसके हालात से अनभिज्ञ नहीं थे।
रवि की माँ स्वयं को रोक नहीं पातीं और कहती हैं, "बच्चो के साथ मित्रता का व्यवहार रखना चाहिये। यदि बच्चों को समय-समय पर सही मार्गदर्शन दिया जाए तो वे कभी ऐसी गलत राह नहीं पकड़ेंगे। "
सारा की माँ , " हमने तो अपनी बच्ची को बहुत प्यार दुलार दिया है। उसकी सभी इच्छाऐं, सभी आशाएं हमने पूरी करी। यदि ये कहती तो हम इसकी शादी भी उस लड़के से करा देते। हम तो बहुत ही खुले विचारों के लोग हैं। आज तक हमने उस पर कोई भी रोक टोक नहीं लगाई। उसकी ख़ुशी में ही हमारी ख़ुशी है, पैसों की हमें कोई कमी नहीं है। वो लड़का चाहे जितना भी मांग सकता है, बस हमारी बेटी को अपना ले। "
रवि के पिता, सारा की माँ के मुख के भावों को समझ जाते हैं। वे अपनी पत्नी को शांत रहने का संकेत देते हैं ।
तभी डॉक्टर आकर बताते है कि माँ और बच्चा दोनों खतरे से बाहर हैं। सारा के माता पिता और रवि की जान में जान आती है।
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एक शाम, रवि अपने घर में कुछ चिंतित सा बैठा होता है। उसके माता- पिता उसके मन का हाल बिना बताए ही समझ जाते हैं।
रवि की माँ कहती है, " रवि, सारा के विषय में सोच रहे हॉ? चिंता तो मुझे भी होती है किन्तु हम कर भी क्या सकते है। ऐसे परिवारों को देखकर असीम दुःख होता है, जहाँ बड़ों की लापरवाही की सजा बच्चों को भुगतनी पड़ती है। लड़का हो या लड़की, माता पिता के सही मार्गदर्शन, उनके स्नेह और उनके आशीष की सभी को आवश्यकता होती है।
यदि रूपए- पैसों से ही व्यक्तित्व निखारा जा सकता तो सभी पैसे वालो के बच्चे संस्कारी और प्रसन्न होते। धन, आवश्यकताओं की पूर्ति तो कर सकता है किन्तु व्यक्तित्व निर्माण में इसका अधिक योगदान नहीं है।
सारा की माँ को हमने समझाने का प्रयास भी किया था किन्तु उनकी आँखों पर तो धन की पट्टी बंधी हुई थी। माँ की मानसिकता का पूरा प्रभाव बच्चे पर आता है।
ये अधिकाँश लोगों की भूल है कि माँ की सोच और उसकी भावनाओं का प्रभाव बच्चे पर केवल उन ९ महीनो में ही पड़ता है। बच्चा एक गीली मिटटी के समान होता है, माता पिता जैसा चाहेँ, उसे वैसा आकर देने में सक्षम हैं। पर अधिकतर लोग ये बात भूल जाते हैं और जीवन की दौड़-भाग में अपने बच्चों के साथ कीमती समय व्यतीत नहीं कर पाते।
जब तक बच्चा उनके साथ समय नहीं बिताएगा, वो अपने मन की बात अपने बड़ों को नहीं बताएगा तो वो अपने माता पिता से दूर होता जाएगा। "
तभी रवि के पिता मुस्कुराते हुए आते हैं। वे कहते हैं , " अच्छा जी, तो भई बच्चों को अच्छा इंसान बनाने का समस्त श्रेय उसकी माँ को ही जाता है। पिता तो कुछ करते ही नहीं। "
रवि की माँ उनके हाथ से ऑफिस का बैग ले लेती है , वो जानती हैं कि वो हंसी में ये सब कह रहे हैं।
वो जल्दी से उनके लिए कुछ मीठा और पानी का गिलास ले कर आती हैं।
पानी देते हुए, वो कहतीं हैं, " नहीं, एक बच्चे के सही चरित्र निर्माण में उसके माता-पिता दोनों का ही समान योगदान होता है। आप का गंभीर बातों को भी सामान्य रूप से लेने से सदा ही समस्याएं समाप्त हो जाती हैं और वातावरण हल्का हो जाता है।"
रवि के पिता भी खिलखिलाकर हंस पड़ते हैं।
घर का वातावरण बहुत हल्का हो जाता है।
रवि भी मुस्कुरा देता है। उसे अपने माता-पिता की समझदारी पर गर्व होता है।
वो मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देता है कि उसने उसे इतने अच्छे और समझदार माता पिता दिए है।
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क्रमशः ....
to be continued ......
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