Friday, 29 May 2015

नज़राना MNC का भाग २



दूसरा भाग 




आदित्य  के ठुकरा देने पर सारा बहुत ही उदास रहने लगती है। उसके माता-पिता, जिहोने कभी उसे सही मार्गदर्शन नहीं दिया, आज समाज की दुहाई देते हैं।

वे रात-दिन उसे कोसते रहते हैं। आज जब  बिनब्याही गर्भवती सारा को अपने माता पिता के प्यार,  उनके सहारे की सबसे अधिक आवश्यकता थी , उस समय वे ये कहकर पल्ला झाड़ लेते है  कि हमने तो इसकी इतनी अच्छी तरह से परवरिश की थी।  पता नहीं क्या हो गया कि सारा ने इतना बड़ा और गलत कदम उठाया?

सारा की हर छोटी बड़ी आवश्यकता उन्होंने अपने पैसों से पूरी करी किन्तु उसे वे सही मायने में अच्छे संस्कार नहीं दे पाए। इसीलिए वो बहक जाती है।

सारा नित प्रतिदिन के अपनी माँ के तानो से तंग आ जाती है।

जैसे जैसे दिन बढ़ने लगते हैं उसकी तबियत ख़राब रहने लगती है। हारकर एक दिन वो पुनः आदित्य को ऑफिस से फ़ोन मिलाती है और उसे अपनाने  के लिए विनती करती है।

आदित्य उसे फिर से दो टूक उत्तर दे देता है।  सारा असहनीय पीड़ा से रो पड़ती है।

वो भागती हुई अपने केबिन से बाहर जाती है। रवि उसके मुख से निकले कुछ  टूटे- फूटे शब्दों और  उसके हाव-भाव से उसके दुःख का अनुमान लगाता है।

रवि भी तेजी से उसके पीछे चला जाता है। सारा, नदी में कूदकर अपने प्राण देने का प्रयास करती है। रवि नदी में कूदकर उसे बचा लाता है। रवि के मन में सारा के प्रति जो चिंता थी वो कुछ और नहीं, उसका सारा के प्रति एक लगाव, एक स्नेह था। 

रवि, सारा को पास के ही एक हस्पताल में भर्ती कर देता है। वो सारा  एवं अपने माता पिता को सूचित कर देता है। 

सारा के माता-पिता तुरंत वहां पहुँच जाते हैं।  सारा की माँ का रो-रोकर बुरा हाल था।

सारा की माँ, " रवि तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद, तुमने हमारी इकलौती बेटी की जान बचा ली। हम जीवन भर तुम्हारा ये उपकार नहीं भूलेंगे। "

रवि , "अरे नहीं औंटीजी, ये तो मेरा फ़र्ज़ था। बस ये जल्दी से  ठीक हो जाए और मुझे कुछ नहीं चाहिए। औंटीजी, इनसे मिलिए, ये मेरे माता-पिता हैं।  "

वो सारा के माता-पिता को अपने माता-पिता से मिलवाता है। सभी एक दूसरे को नमस्कार करते है। 

रवि अपने माता-पिता से सारा के  बारे में  बात किया करता था।  इसलिए वे सारा और उसके हालात से अनभिज्ञ नहीं थे। 

रवि की माँ स्वयं को रोक नहीं पातीं और कहती हैं, "बच्चो के साथ मित्रता का व्यवहार रखना चाहिये। यदि बच्चों को समय-समय पर सही मार्गदर्शन दिया जाए तो वे कभी ऐसी गलत राह नहीं पकड़ेंगे। "


सारा की माँ , " हमने तो अपनी बच्ची  को बहुत प्यार दुलार दिया है। उसकी सभी इच्छाऐं, सभी आशाएं हमने पूरी करी।  यदि ये कहती तो हम इसकी शादी भी उस लड़के से करा देते। हम तो बहुत ही खुले विचारों के लोग हैं। आज तक हमने उस पर कोई भी रोक टोक  नहीं लगाई। उसकी ख़ुशी में ही हमारी ख़ुशी है, पैसों की हमें कोई कमी नहीं है। वो लड़का चाहे जितना भी मांग सकता है, बस हमारी बेटी को अपना ले। "

रवि के पिता, सारा की  माँ के मुख के भावों को समझ जाते हैं। वे अपनी पत्नी को शांत रहने का संकेत देते  हैं । 

तभी डॉक्टर आकर बताते है कि माँ और बच्चा दोनों खतरे से बाहर हैं। सारा के माता पिता और रवि की जान में जान आती है।  


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एक शाम, रवि अपने घर में कुछ चिंतित सा बैठा होता है। उसके माता- पिता उसके मन का हाल बिना बताए ही समझ जाते हैं।

रवि की माँ कहती है, " रवि, सारा के विषय में सोच रहे हॉ? चिंता तो मुझे भी होती है किन्तु हम कर भी क्या सकते है।  ऐसे परिवारों को देखकर असीम दुःख होता है, जहाँ बड़ों की लापरवाही की सजा बच्चों को भुगतनी पड़ती है। लड़का हो या लड़की, माता पिता के सही मार्गदर्शन, उनके स्नेह और उनके आशीष की सभी को आवश्यकता होती है। 
यदि रूपए- पैसों से ही व्यक्तित्व निखारा जा सकता तो सभी पैसे वालो के बच्चे संस्कारी और प्रसन्न होते। धन, आवश्यकताओं की पूर्ति तो कर सकता है किन्तु व्यक्तित्व निर्माण में इसका अधिक योगदान नहीं है।
 सारा की माँ को हमने समझाने का प्रयास भी किया था किन्तु उनकी आँखों पर तो धन की पट्टी बंधी हुई थी। माँ की मानसिकता का पूरा प्रभाव बच्चे पर आता है।

 ये अधिकाँश लोगों की भूल है कि माँ की सोच और उसकी भावनाओं का प्रभाव बच्चे पर केवल  उन ९ महीनो में ही पड़ता है। बच्चा एक गीली मिटटी के समान होता है, माता पिता जैसा चाहेँ, उसे वैसा आकर देने में सक्षम हैं। पर अधिकतर लोग ये बात भूल जाते हैं और जीवन की दौड़-भाग में अपने बच्चों के साथ कीमती समय व्यतीत नहीं कर पाते। 
जब तक बच्चा उनके साथ समय नहीं बिताएगा, वो अपने मन की बात अपने बड़ों को नहीं बताएगा तो  वो अपने माता पिता से दूर होता जाएगा। "

तभी रवि के पिता मुस्कुराते हुए आते हैं। वे कहते हैं , " अच्छा जी, तो भई बच्चों को अच्छा  इंसान बनाने का समस्त श्रेय उसकी माँ को ही जाता है। पिता तो कुछ करते ही नहीं। "

रवि  की माँ  उनके हाथ से ऑफिस का बैग ले लेती है , वो जानती हैं  कि वो हंसी में ये सब कह रहे हैं। 
वो जल्दी से उनके लिए कुछ मीठा और पानी का गिलास ले कर आती हैं। 

पानी देते हुए, वो कहतीं  हैं, " नहीं, एक बच्चे के सही चरित्र निर्माण में उसके माता-पिता दोनों का ही समान योगदान होता है। आप का गंभीर बातों को भी सामान्य रूप से लेने से सदा ही समस्याएं समाप्त हो जाती हैं और वातावरण हल्का हो जाता है।"

रवि के पिता भी खिलखिलाकर हंस पड़ते हैं। 
घर का वातावरण बहुत हल्का हो जाता है। 

रवि भी मुस्कुरा देता है। उसे अपने माता-पिता की समझदारी पर गर्व होता है। 

वो मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देता है कि उसने उसे इतने अच्छे और समझदार माता पिता दिए है। 



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क्रमशः ....
to be continued ......





Saturday, 23 May 2015

नज़राना MNC का भाग १

पहला भाग 



The story is based on the modern mindset of teenagers.How can they save their values and culture if they don't know about it? Parents can enhance their child's personality by their own efforts. For this first of all parents need to work on their own personalities.Action speaks louder than sound.Children just imitate their parents.So be a role model for your child and see the magic.




दिल्ली की एक बड़ी MNC  कंपनी में इंटरव्यू चल रहा है। बहुत सारे लोग इंटरव्यू देने आए हैं। उनमे से एक लड़केरवि और लड़की, सारा का चयन हो जाता है। 

रवि एक मध्यमवर्गीय परिवार से है। वो २४-२५ वर्ष का एक सीधा सादा और अत्यंत ही बुद्धिमान लड़का है। उसके पिता एक सरकारी कंपनी में साधारण सी नौकरी करते हैं। उसके माता पिता ने भले ही उसे महंगे उपहार ना दिए हों, बड़े बड़े होटलों में खाना ना खिलाया हो, बड़े स्कूल में ना पढ़ाया हो, पर उसे संस्कारों का वो खजाना दिया कि जिसने उसके संपूर्ण व्यक्तित्व को एक हीरे की तरह दमका दिया। सही कहा है कि जैसा  पेड़ होगा, फल भी वैसे ही होंगे। वो अपने माता-पिता को अत्यधिक प्यार और सम्मान देता है। कुल मिलाकर उन तीनो का बड़ा ही खुशहाल परिवार है। जिस प्रकार चंदन का पेड़ अपनी सुगंध छिपा नहीं सकता, उसी प्रकार रवि के मनमोहक  स्वभाव की सुगंध भी काफी दूर-दूर तक फैल जाती है। रवि के मुख पर सदा एक सौम्य मुस्कान रहती है । उससे मिलने वाला हर व्यक्ति उसके व्यवहार से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता।

वहीँ सारा एक धनी  परिवार से है।वो २३ -२४ वर्ष की एक अत्यंत ही सुन्दर लड़की है। लंबा पतला छरहरा बदन,  उजला रंग, तीखे नैन नक्श और काले घुंघराले बाल, कुल मिलाकर वो किसी फ़िल्मी नायिका से कदापि कम नहीं लगती है । उसके पिता का एक बड़ा व्यवसाय है। उनके पास दूसरे के लिए क्या अपने लिए भी समय नहीं रहता है। वो घर में कम अपने व्यवसाय के काम से बाहर अधिक रहते हैं। उसकी माँ अत्यंत ही मॉडर्न हैं।  उनका अधिकांश समय या तो किटी पार्टी, या किसी उद्घाटन या किसी NGO में भाषण में ही निकल जाता है। सारा की सभी  आवश्यकताएं  उन्होंने अपने पैसों से ही पूरी करी। सारा ना तो अपने माता-पिता का प्यार दुलार ही पा सकी और ना ही वो गुण  जिनके होने से एक मानव भी देवता की भांति जगमगा सकता है। वो गुण है आपसी प्रेम का, स्नेह का, करुणा का , दया का, सम्मान का और संबंधों का। पर सारा की किस्मत में ये सब सीखना और समझना नहीं था। उसे केवल और केवल पैसों की महत्ता की जानकारी है।


 रवि अपने काम में बड़ा होशियार है और सारा मोर्डेन सोच वाली एक फैशन परस्त लड़की है।


दोनों को एक ही प्रोजेक्ट पर काम करने का मौका मिलता है। उनका प्रोबेशन पीरियड ६ महीने का होता है। रवि के  एक  मध्यमवर्गीय परिवार का होने से सारा, रवि को कुछ ख़ास पसंद नहीं करती है।


MNC में दोनों के कुछ नए दोस्त बन जाते हैं। रवि की संस्कारों की जड़ें बड़ी ही मजबूत हैं इसलिए उसे कोई फर्क नहीं पड़ता किन्तु सारा कुछ बहक सी जाती है। सारा की एक नई  दोस्त बनती हैसाक्षी। साक्षी अकेले ही दिल्ली में रहती है उसके माता-पिता उ.प्र. में रहते हैं. वो भी खुद को मॉडर्न समझती है।

साक्षी की संगत में सारा ड्रिंक करने लगती है।
एक दिन रवि, सारा को प्रोबेशन पीरियड ख़त्म होने की याद दिलाता है। 

रवि , " सारा, केवल दो दिन ही बचे हैं।  अब तो असाइनमेंट पूरा कर लो। "
सारा टालते हुए, " हाँ, हाँ मुझे याद है। तुम अपने काम की चिंता करो मैं अपना सम्भाल लूंगी। अभी पूरे दो दिन बाकी हैं।  दो दिन में मेरा सारा काम ख़त्म हो जाएगा। "

रवि मायूस हो जाता है। न जाने क्यों उसे सारा की थोड़ी चिंता सी होने लगती है। यद्यपि सारा उससे कभी सीधे मुंह बात तक नहीं करती है । पर रवि उसकी बातों का बुरा नहीं मानता है। 


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अगले दिन साक्षी, सारा को जबरदस्ती कॉफ़ी पिलाने ले जाती है। 
साक्षी पूछती है, " सारा तेरा कोई बॉय फ्रेंड नहीं है ?"
सारा के मना करने पर वो उसका मजाक उड़ाती है। 
साक्षी कहती है, "आजकल तो ये बिलकुल कॉमन है। तू कौन से ज़माने में जी रही है? जीवन का भरपूर मजा न लिया तो क्या किया। चल कोई नहीं, अब मै तुझे जिंदगी के सही मायने समझा दूंगी। "
सारा मुस्कुरा कर रह जाती है। 


शाम को साक्षी, सारा को एक जन्मदिन की पार्टी के बहाने एक पब में ले जाती है। 

सारा थोड़ी आनाकानी करती है पर साक्षी की जिद के आगे उसकी एक भी नहीं चलती है। 
पब के अंदर सभी अपने में मग्न थे।  कोई पी रहा था, कोई गपशप कर रहा था तो कोई शराब पी कर नाच रहा था। 
सारा किसी तरह वहां से निकलने की कोशिश करती है तभी एक लडके से टकरा जाती है। 
लड़का बहुत ही मनमोहक था।वो उसे अपलक  निहारती ही रह जाती है। 


साक्षी, सारा को बुलाती है, "सारा,  इनसे मिलो। ये है आदित्य, आदित्य चोपड़ा। ये बड़े ही अच्छे इंसान हैं। अब तुम इनसे बातें करो, मैं अभी आती हूँ। "



सारा, आदित्य के व्यक्तित्व से बड़ी ही प्रभावित थी। आदित्य सच में किसी राजकुमार से कम नहीं था। सारा को उसकी बाते बहुत ही अच्छी लगती हैं। 

आदित्य कहता है, " सारा तुम इतनी सुन्दर और स्मार्ट हो, यहाँ क्या कर रही हो ?"
सारा शर्मा जाती है। 
आदित्य उसे ड्रिंक देता है। सारा पर तो जैसे आदित्य का जादू चढ़ गया था। वो उसे मना नहीं कर पाती है। बातों बातों में सारा थोड़ा ज्यादा पी लेती है।  
साक्षी हँसते हुए कहती है, " अरे सारा क्या हुआ? अंगूर की बेटी चढ़ गई क्या? चल मैं तुझे आज अपने घर ही ले जाती हूँ। और फिर आंटी से बता देतीं हूँ कि तू मेरे साथ है नहीं तो वो चिंता करेंगी। "
आदित्य की सहायता से साक्षी, सारा को अपने घर ले जाती है। 

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अगले दिन रवि को सारा कुछ बदली सी लगती है। उसकी आँखे अंगारों के सामान लाल होती हैं। रवि जानता है कि सारा को उसका ज्यादा हस्तक्षेप पसंद नहीं है । रवि के मन में सारा को लेकर चिंता और भी बढ़ जाती है। पर वो चुपचाप अपना काम करता रहा। क्योंकि दोनों का केबिन एक ही है  तो उसे साफ़ दिख रहा था कि सारा की हालत ठीक नहीं है।
रवि उसके पास जाकर पूछता है, "सारा, क्या हुआ? तुम्हारी तबियत तो ठीक है ?"
सारा , रवि  को पिछड़ा हुआ  और गरीब समझती है । 

सारा रूखेपन से जवाब देती है, " मै ठीक हूँ , रवि और मुझे तुम्हारी सहायता नहीं चाहिए। "

तभी ऑफिस का लड़का आकर बताता है कि बॉस को कल अमेरिका जाना है इसलिए उन्होंने सारा और रवि को अपना-अपना  असाइनमेंट लेकर बुलाया है। 
रवि का काम पूरा है पर सारा के पॉव तले से जमीन ही निकल जाती है। रवि को उससे सहानुभूति होती है पर वो कुछ नहीं कहता है। 
रवि का काम देखकर बॉस उससे बहुत ही प्रभावित हो जाते हैं। और सारा का अधूरा काम देखकर उसे रवि के नीचे काम करने का आदेश देते हैं। 
सारा इसे अपना अपमान समझती है। पर बॉस का आदेश वो टाल भी नहीं सकती। 
सारा मन ही मन बड़बड़ाती है, 'हुंह, मै इसे रिपोर्ट करुँगी? इसकी न तो शक्ल है और न अक्ल। पता नहीं मैं इसके साथ कैसे और दिन काम कर पाऊँगी ?'
रवि में कोई भी बदलाव नहीं आता है। वो बहुत ही सीधा और सौम्य लड़का है। 

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सारा और आदित्य अब अक्सर मिलने लगते हैं।  उनकी दोस्ती  धीरे -धीरे प्यार में बदल जाती है।दोनों साथ में घूमने लगते हैं। 
रवि को भी उनके प्रेम का पता चल जाता है। उसे एक टीस सी महसूस होती है पर वो स्वयं को समझाता है कि वो सारा के लायक नहीं है।  फिर भी अपने दिल से वो उसके प्रति स्नेह की भावना को ख़त्म नहीं कर पाता है। उसे कहीं से पता चलता है कि आदित्य अत्याधुनिक लड़का है। और वो सारा के प्रति गंभीर नहीं है.

 एक दिन रवि उसे समझाता है , " सारा, वैसे मुझे कोई अधिकार तो नहीं है कि मै तुम्हारी व्यक्तिगत जिंदगी में दखल दूँ पर मेरा दिल नहीं मान रहा है। मैं किसी भी प्रकार से तुम्हारा अहित होते नहीं देख सकता हूँ।देखो, आदित्य एक भला इंसान नहीं है। इसलिए तुम उससे जरा दूर रहा करो। वो किसी भी प्रकार से विश्वसनीय नहीं है। "
 पर सारा को रवि पुराने विचारों वाला  लगता है। वो रवि को घूरती है।

सारा ," तुम्हे मेरी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।  मै कोई दूध पीती बच्ची नहीं हूँ। माना  कि तुम्हे MNC में नौकरी मिल गई है पर इसका ये मतलब नहीं है कि तुम खुले विचारों वाले आधुनिक लड़के बन गए हो।  तुम्हारी पिछड़ी मध्यमवर्गीय मानसिकता कभी नहीं बदल सकती है। इसलिए तुम अपने काम से काम रखो।  मेरे मामले में पड़ने की तुम्हे कोई जरुरत नहीं है, समझे? "

रवि को उसकी बातों से बहुत दुःख होता है।  वो चुपचाप वहां से निकल जाता है। 

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एक दिन सारा और आदित्य दिल्ली के एक  पार्क, लोदी गार्डन में मिलते हैं। सारा ने काले रंग की ड्रेस पहने है। वो अत्यंत ही आकर्षक लगती है । आदित्य अपने को रोक न सका और उसने उसे गले लगा  लेता है।

आदित्य उसका हाथ सहलाते हुए कहता है, " सारा क्या तुम सच में मुझसे प्यार करती हो ?"
सारा शर्म से मुस्कुराकर कहती है," क्यों आदित्य, क्या तुम्हे मुझ पर विश्वास नहीं है? कहो तो घर वालों से अपनी शादी की बात करते हैं। "

आदित्य घबराकर कहता है ," शादी? सारा, कम से कम तुमसे मुझे ये उम्मीद  नहीं थी। "

सारा आश्चर्य से पूछती है ," क्यों? मैंने क्या गलत कहा ? प्रेम की अंतिम मंजिल शादी ही तो है जिसमे दो प्रेमी जीवन भर के लिए एक हो जाते हैं। "

आदित्य उसे समझाता है, " ये सब पुराने ज़माने की बाते हैं। इस मोर्डर्न युग में हम शादी के बिना भी साथ रह सकते हैं। तुम्हे नहीं पता? मुझे तो लगा था कि तुम एक मोर्डर्न, खुले विचारों वाली लड़की हो। "

सारा को अपनी नासमझी पर गुस्सा आता है। वो कहती है," नहीं ये बात नहीं है पर हमारे देश में इस तरह के संबंधों को स्वीकारा नहीं जाता है। और फिर जब हम एक दूसरे के बिना जी नहीं सकते ओ शादी करने में क्या परेशानी है ?"

आदित्य उसे प्यार से समझाता है, " देखो शादी अपने साथ बहुत सारी जिम्मेदारियां भी लाती है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि जब तक हम थोड़ा और समझदार न हो जाए तब तक बिना शादी के यानि कि लिव इन रिलेशनशिप में रहे। इसमें किसी पर भी ज्यादा जिम्मेदारी नहीं पड़ेगी। और फिर एक दो साल में हम शादी कर लेंगे। मै तुम्हारे बिना अब एक दिन भी जीना नहीं चाहता हूँ। तुम सोच लो। अपने घरवालों को किसी तरह से मनाना पड़ेगा। "

सारा भी किसी भी हाल में आदित्य को खोना नहीं चाहती थी। उसने कहा कि वो एक दो दिनों में बताएगी।

सारा को रात भर नींद नहीं आती है।  जब साक्षी ने उसे समझाया कि अब इंडिया में भी ये सब कॉमन हो गया है। तब सारा ने आदित्य के साथ रहने का निर्णय कर लिया।
सारा अपने माता पिता से उनकी व्यस्तता का और अपने अकेलेपन का  बहाना करती है और साक्षी के साथ रहने की सहमति ले लेती है।
और वो और आदित्य, लिव  इन रिलेशनशिप में साथ साथ एक फ्लैट में रहने लगते हैं।

एक दिन सारा की तबियत ऑफिस में काफी बिगड़ जाती है। उसे उल्टियाँ होने लगती हैं। रवि अब तक सारा और आदित्य के साथ रहने का पता चल जाता है। आदित्य, सारा की माँ को फ़ोन कर बुला लेता है।
सारा की माँ उसे लेकर अस्पताल जाती है। डॉक्टर सारा के गर्भवती होने की पुष्टि करता है। सारा की माँ उनसे निवेदन करती है की किसी भी तरह उसका एबॉर्शन कर दे। डॉक्टर एबॉर्शन के लिए मना  कर देते हैं।
सारा के माता पिता उसे बहुत कोसते है। वे कहते हैं कि उसने उन्हें  समाज में किसी को मुंह दिखने लायक नहीं छोड़ा।
सारा अपनी अंधी आधुनिकता के घिनौने रूप को देखकर बहुत ही दुखी होती है। उसे विश्वास था कि आदित्य उसे अवश्य ही अपना लेगा , क्योंकि वो उससे अत्यंत प्रेम करता है। अगले दिन ही वो आदित्य के पास जाती है।

सारा रोते हुए ," आदित्य चलो हम शादी कर लेते है। अब तो हमारे प्रेम की निशानी भी अपने पास है। शादी कर के हम अपना सुखी संसार बसाते है।

आदित्य हँसते हुए कहता है , "शादी? मैंने तो ऐसा कभी नहीं कहा था। मै  तो शादी के पक्ष में ही नहीं हूँ। तुम एक काम करो, अबॉर्शन  करा लो। तब तो कोई परेशानी नहीं है?"
सारा बताती है कि डॉक्टर ने अबॉर्शन के लिए मना कर दिया है।

 आदित्य कहता है ,"मै अभी शादी नहीं कर सकता। और आगे का भी ठिकाना नहीं है। तुम कोई सीधे सादे लड़के को पकड़ कर शादी कर लो। इसके लिए तो तुम्हारा रवि भी ठीक रहेगा। "
ये सुनकर सारा सन्न रह जाती है। तो ये है आदित्य का प्यार, उसका जीवन भर साथ निभाने का वचन ?
सारा का मन ये सोच सोच कर घबराने लगता है।

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क्रमशः ....
to be continued ......





Wednesday, 20 May 2015

ज़िन्दगी काश मेरा यूँ , इम्तिहान न लेती।





ज़िन्दगी काश मेरा यूँ ,
 इम्तिहान न लेती। 




ज़िन्दगी काश मेरा यूँ ,
           इम्तिहान न लेती। 
प्यार में मर मिटे हैं हम,
           हमारी जान न लेती। 

इक दीदार को तरसे हैं नज़रें ,
    तेरे ही प्यार को तड़पें हैं सच में।
कि  सांस ये  चल रही  है पर,
     हाय ये क्या हुआ है। 
नींद अब किसी करवट ,
     बिलकुल न आती। 

ज़िन्दगी काश मेरा यूँ ,
    इम्तिहान न लेती।

Tuesday, 19 May 2015

प्यार में हार कर भी जीत होती है।



 प्यार में हार कर भी जीत होती  है।   

    

  तेरी दुनिया में ऐ मालिक ,
                                          यही दरखास्त होती है। 
       जो  किस्मत में  नहीं होते ,
                                                          उन्ही की फ़रियाद होती है। 
     कि  उम्र काटे नहीं  कटती,
                                                     यूँ ही तमाम होती है। 
        हारकर  दिल अब ये समझे  ,
                                                                  प्यार में हार कर भी जीत होती  है। 
                  एक रोज तो होगा उनको  यकीन ,
                                                                 कि दिल को दिल से राह होती है।