ऐसी होती है नारी।
निर्मल, कोमल भोली-भाली ,
सबसे न्यारी से है नारी।
माता, पत्नी कभी सहेली।,
हर रूप निभाती है नारी।
कवि की कविता में कभी ,
चाँद सी बाला है नारी।
ख़ामोशी भी बातें करें,
मीठी एक जुबान है नारी।
प्यार की ईंट से जोड़ो तो ,
सुन्दर एक मकान है नारी।
संभाले कश्ती जीवन की ,
ऐसी एक पतवार है नारी।
सबला कहो, अबला नहीं,
माँ दुर्गा का अवतार है नारी।
विष पी के जो अमृत कर दे ,
ऐसा अनोखा धाम है नारी।
जग की मुश्किल राहों में ,
जीवन का आधार है नारी।
दिल पत्थर का जो चीर सके।
निर्मल गंगा की धार है नारी।
कभी गीता कभी कुरान बनी ,
समझो तो एक किताब है नारी।
छलके नैनों से नीर भले ,
पर होठों पे मुस्कान है नारी।
कसैटियों पे न तोलो इसको ,
स्नेहलता की छाँव है नारी।
------ऋतु अस्थाना
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