कन्यारत्न
ये कहानी हरियाणा के एक गाँव मथाना की है। कौशल्या और उसके पति जगदीश ने बड़ी मुश्किलों से अपनी बेटी गहना की शादी निपटाई। बेटी सदा से उसके लिए बोझ थीं। अपनी बेटी से मजाल है जो उसने कभी प्यार जताया हो। उसने अपने पति को भी सख्त आदेश दिया था कि बेटी को लाड कर के बिगाड़ना नहीं है। बेटे को वो पौष्टिक खाना देती किन्तु बेटी को बड़ी ही मुश्किल से थोड़ा सा खाना देती थी। उसका मानना था कि बेटी को यदि जन्म के पहले ही मार दिया जाए तो उन्हें पालने, खिलाने-पिलाने और शादी ब्याह का सिरदर्द नहीं होता। जैसे तैसे उसने अपनी बेटी का कन्यादान किया और एक चैन की सांस ली क्योंकि अब उनका लाडला बेटा, राजेश ही उनके साथ रह गया था। कौशल्या को अपने पुत्र से बड़ी आशाऐं थीं।
कुछ समय पश्चात उसने अपने पुत्र का भी एक सुन्दर एवं सुशील कन्या, सरिता से धूमधाम से विवाह कर दिया, जो इतना दहेज़ लाई कि घर भर का मन उसने चुटकियों में जीत लिया। और तो और सरिता ने अपने सरल व्यवहार से उस घर में अपना एक स्थान बना लिया था। केवल पति ही नहीं, सास, ससुर भी उससे अति प्रसन्न थे। वो किसी को कोई शिकायत का मौका ही नहीं देती थी। साल कैसे बीत गया कुछ पता ही न चला।
अब कौशल्या से इन्तजार सहन नहीं हो रहा था। उसने अपने पोते का मुँह देखने की इच्छा सरिता को बताई। जब राजेश को इस बात का पता चला तो उसने भी अपनी माँ की बात का समर्थन किया। और कुछ ही समय में ईश्वर ने सरिता को नारी के सर्वोत्तम श्रृंगार से सुसज्जित किया यानि कि उसे माँ बनने का सौभाग्य प्रदान किया। एक-दो महीने तक सब ठीक था। सभी सरिता पर अपना स्नेह लुटा रहे थे।
किन्तु कुछ दिनों से सरिता को कौशल्या कुछ उदास सी लगी। उसके पूछने पर उसने कहा कि किसी प्रकार यदि पता चल जाए कि आने वाली संतान बेटा है या बेटी तो वो चिंतामुक्त हो जाएंगी। सरिता ने सोचा कि पहला पोता है इसलिए उन्हें जानने की जिज्ञासा होगी।
चौथे महीने में सरिता की जांच कराई गई जिसके अनुसार उसके गर्भ में एक कन्या का भ्रूण था। सरिता को इससे कुछ अंतर न पड़ा। आखिर माँ तो माँ ही होती है। किन्तु धीरे-धीरे कौशल्या, राजेश और उसके ससुर उसे गर्भपात के लिए विवश करने लगे।
सरिता बहुत गिड़गिड़ाई , किन्तु आज उन सबका प्यार कपूर की भांति उड़ चुका था।
और आखिरकार गर्भपात का दिन आ गया। सरिता विवश थी। उसके मायके वालों ने भी हाथ खींच लिया था।
क्या करे ? कहाँ जाए ? कैसे अपनी अजन्मी बेटी अपने कन्यारत्न को इन दानवों, इन हत्यारों से बचाए ? वो इसी उहापोह में थी कि उसे लगा कि यमराज का बुलावा आ गया है।
पर पता नहीं कैसे एक चमत्कार हो गया। डॉक्टर ने कहा कि वो, ये गर्भपात नहीं कर सकते क्योंकि इसमें बच्चा और माँ दोनों की जान को खतरा है।
और इस प्रकार सरिता की पुत्री रानी ने जन्म लिया।
कुछ दिन तक तो सब ठीक रहा पर सरिता को अपने पति और उसके माता पिता के इरादे ठीक नहीं लगे। वे बच्ची को किसी भी प्रकार से (चारपाई के पाए के नीचे दबाकर, दूध में डुबाकर, या जानवरों के आगे छोड़कर )मारना चाहते थे। सरिता रात दिन घर का काम भी निपटाती और अपनी रानी की निगरानी भी करती।
पर कहते हैं न कि
जाको राखे साइयाँ, मार सके ना कोई।
धीरे धीरे रानी साल भर की हो गई। सरिता एक बार फिर से गर्भवती हुई। पुनः वही सब दोहराया जाने लगा। तभी उसकी नन्द, गहना अपने मायके वापस आ गई। एक कुपोषण की शिकार औरत, गहना का हर बार गर्भपात हो जाता था। इसलिए उसके पति ने इलाज करने के बजाए उसे घर से ही निकाल दिया।
गहना,अपनी भाभी का सहारा बनने का प्रयास करने लगी। वो रानी को प्यार करती और उसे फलफूल खिलाती।
कुछ समय पश्चात सरिता एक बार फिर गर्भवती हुई। इस बार कौशल्या ने पहले से ही डॉक्टर से कह दिया था की यदि कन्या भ्रूण है तो उसे ख़त्म ही करना होगा चाहे बहू बचे या न बचे।
कुछ समय पश्चात सरिता एक बार फिर गर्भवती हुई। इस बार कौशल्या ने पहले से ही डॉक्टर से कह दिया था की यदि कन्या भ्रूण है तो उसे ख़त्म ही करना होगा चाहे बहू बचे या न बचे।
इस बार फिर से कन्या थी। सरिता का पति और सास-ससुर, रानी और गहना को घर में बंद कर सरिता को जबरदस्ती गर्भपात के लिए ले गए। सरिता अपने कन्यारत्न को खोकर बौखला सी गई। रानी और गहना उसका ध्यान रखती थी। ऐसा ही फिर और दो बार हुआ। सरिता तन-मन दोनों से टूट चुकी थी।
पाँचवी बार उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई। सब खुश थे। किन्तु सरिता नहीं। उसके घायल मन पर अब किसी तरह का मलहम असर नहीं करता था।
तभी गांव में एक अध्यापिका आई। उन्होंने जब गहना से सरिता का हाल सुना तो पूछा कि क्या सरिता पढ़ी लिखी है। रानी, सरिता को बहाने से अध्यापिका के पास ले गई। और उन्ही अध्यापिका ने सरिता के जीवन में उम्मीद की एक नई किरण जगाई।
सरिता, गहना, रानी और अपने पुत्र के साथ घर छोड़कर शहर आ गई। अध्यापिका की सहायता से उसे और गहना को किसी स्कूल में सफाई का काम मिल गया। उसने और गहना ने प्रण किया कि हम कन्या को खूब पढ़ाएंगे-लिखाएँगे , पोषक भोजन कराएंगे और उसे उसके जीवन के सारे अधिकार एवं सारे सुख देंगे।
पढ़-लिख कर आज वो कन्या एक होनहार डॉक्टर है।
"बेटियाँ घर की शान होती हैं।
ईश्वर का दिया एक वरदान होती हैं।
उनके आने से घर में सुकून और,
सब के होंठों पर मुस्कान होती है।
बोझ नही , ये बोझ नहीं
ये तो है अनमोल रतन।
ये तेरा मान बढ़ाएंगी ,
मत कर पापी तू गर्भपतन। "
-----समाप्त------
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