मुट्ठी में आसमान
पहला दिन
आज फिर इंटरव्यू में वो फेल हो गई। न जाने क्यों हर बार वो आई ए एस का लिखित exam पास कर लेती थी पर इंटरव्यू में पास नहीं हो पाती थी । शायद उसके अंदर कहीं एक घबराहट सी थी कि वो इतनी बड़ी जिम्मेदारी संभाल भी पाएगी या नहीं। हर बार उसे घर वालों के उलाहने सुनने पड़ते थे । उसकी नौकरी को लेकर घरवालों ने बड़े ही सपने संजो रखे थे। पता नहीं वो उनके सपने पूरे भी कर पाएगी या नहीं, उसे यही डर खाए जा रहा था। शायद यही एक कारण था उसके इंटरव्यू में फेल होने का। जो भी हो उसे ये सोचना था कि घर वालों को आज क्या जवाब देगी। जब से उसके पड़ोस की लीला मौसी की लड़की आई एस बनी है तभी से उसके घर वाले भी हाथ-धो कर उसके आईएएस बनने के सपने देखने लगे थे। उन्हें लीला मौसी से किसी भी मामले में पीछे जो नहीं रहना था।
ख्यालों में खोई सोनी शुक्ला, कानपुर की गलियों में खो गई। तभी जोर से किसी ने हॉर्न बजाया पर जब फिर भी वो सचेत नहीं हुई तो एक लड़की ने गाड़ी से उतरकर उसे झकझोरा।
लड़की --क्या बात है भई ? तुम्हें गाड़ी का हॉर्न सुनाई नहीं देता ? बच ही गई , कसम से। अभी एक्सीडेंट हो जाता तो कहती कि सारी गलती गाड़ी वाले की है। चलो हटो , किनारे हटो भई।
सोनी(हड़बड़ाते हुए) ---ओह, आई एम सॉरी।
सोनी ने जैसे ही अपना चेहरा उठाया, वो लड़की ख़ुशी से चीख पड़ी।
शालू --अरे सोनी? ये तू है? अरे ,क्या हाल बना रखा है ? क्या कर रही है आजकल ?
सोनी और शालू बचपन की सहेलियाँ थीं। शालू के पिता के ट्रांसफर होने के कारण वे लोग पिछले दो तीन साल से कानपुर से चले गए थे।
शालू ---चल, चल , पास के रेस्टोरेंट में बैठते हैं फिर बातें करेंगे। चल ना।
सोनी ---पर, घर पर सब wait कर रहे होंगे।
शालू ---अरे, तो एक फोन कर दे मोबाइल से।
सोनी(उदास होकर) ---नहीं है , मोबाइल नहीं है मेरे पास।
शालू ---क्या?? क्या बात कर रही है तू ? कौन से जमाने में जी रही है यार? आजकल तो जरा जरा से बच्चे तक मोबाइल फोन रखते हैं। चल छोड़, जाने दे । और बता।
इतनी देर में वे दोनों कानपुर, गुमटी के तिवारी रेस्टोरेंट में पहुँच चुके थे।
सोनी --तू बता शालू , तू क्या कर रही है आजकल ?
शालू ---देख सोनी, पढ़ने लिखने में तो मैं ज्यादा तेज थी नहीं तो मैंने अपनी हॉबी को ही अपना प्रोफेशन बनाया है।
सोनी --हॉबी को प्रोफेशन? मतलब ?
शालू --मतलब , तुझे याद है कि मैं शॉकिया तौर पर कभी-कभी तेरे कुर्ते भी सिल दिया करती थी।
सोनी ---ही ही , अच्छा, तो तू टेलर बन गई।
शालू ---देख, काम कोई भी बड़ा छोटा नहीं होता, बस काम अपनी पसंद का होना चाहिए। मैं तो कुछ समझ ही नहीं पा रही थी कि मैं क्या कर पाऊँगी जिंदगी में।
सोनी ---अच्छा ? तो फिर किसने तुझे राह दिखाई ?
शालू ----किसने राह दिखाई ? रही ना तू भी बच्ची की बच्ची।
सोनी ---मतलब ?
शालू ---मतलब ये कि जब तुझे भूख लगती है तो खाना कौन खाता है ?
सोनी --मैं
शालू --तुझे चोट लगती है तो दर्द किसे होता है ?
सोनी ---obviously मुझे यार, और किसे दर्द होगा, जब चोट मुझे लगी है ।
शालू ---बस तुझे यही बता रही हूँ कि तुझे क्या पसंद है , या जिंदगी में तू क्या करना चाहती है इसका फैसला भी तुझे ही करना होगा।
सोनी ---मुझे करना होगा? पर घरवाले तो बड़े होते हैं, हमसे ज्यादा समझदार होते हैं, वो तो सही ही बताएंगे न। चल मेरी छोड़, तू अपनी बता, तूने अपना क्या फैसला किया ?
शालू ---मेरे घर वाले चाहते थे कि मैं बी एड कर के कोई टीचर की जॉब कर लूँ फिर वे मेरी शादी करा दें बस उनका काम ख़त्म। पर मैंने तो कह दिया कि मैं फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करुँगी और फैशन डिज़ाइनर ही बनूँगी। और फिर , मैंने वही किया। अब, मेरी हॉबी ही मेरा प्रोफेशन है जिसे आज मैं अपने पूरे मन से करती हूँ और खुश भी रहती हूँ।
सोनी --पर, मैंने तो वही किया जो मेरे घरवालों में कहा, कभी अपनी ख़ुशी, अपनी इच्छा तो सोची ही नहीं।
शालू ---कोई बात नहीं। जब जागो तभी सवेरा है। तब नहीं सोची तो अब सोच ले।
सोनी ---नहीं यार , मेरा कुछ नहीं हो सकता। मुझमे तो कोई टैलेंट है ही नहीं।
शालू ---अच्छा, पर मुझे तो ऐसा नहीं लगता। खैर ,ऐसा कर, कल मिलते हैं आज घर जाकर तू इस बारे में जरा सोचना। ठीक है ?
सोनी ---हम्म ठीक है।
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दूसरा दिन
दूसरे दिन जब सोनी, शालू से मिली तो उसकी आँखें सूजी हुईं थीं। ऐसा लगता था मानो वो पिछली रात को वो बहुत रोई हो। शालू ने जैसे ही उसके कंधे पर हाथ रखा सोनी फफक-फफक कर रोने लगी। जब वो थोड़ा ठीक हुई तो शालू उसे मोती झील के पार्क में ले गई। जहाँ उसने सोनी का हाथ कस कर पकड़ रखा था।
सोनी --शालू , तुझे पता है कल घर पर क्या हुआ ?
शालू --हाँ सोनी, ये तो तेरी आँखों से ही पता चल गया था। कभी कभी हमारे अपने ही हमारी खुशियों के बारे में क्यों नहीं सोचते? हमेँ मजबूरी में उनके खिलाफ जाना पड़ता है।
सोनी --अब तो मै आई ए एस बन ही नहीं सकती। जिंदगी बर्बाद हो गई मेरी।
शालू --हट पागल, इस बात से जिंदगी ख़त्म नहीं हो जाती बल्कि ये सोच कि उपरवाले ने तुझे ये दूसरा मौका दिया है कि तू अपनी पसंद का काम चुने। और अपनी जिंदगी को ख़ुशी से जिए। समझीं?
सोनी --पर मैं करूंगी क्या ? पापा कह रहे थे कि जब इसे कुछ करना ही नहीं है तो इसकी शादी करा देते हैं।
शालू ---सोनी, भगवान पर विश्वास रख कोई न कोई रास्ता निकल ही आएगा।
तभी उनको कोई जोरदार आवाज सुनाई पड़ी। वहाँ कोई announcement हो रहा था कि जो लोग गाने के कम्पटीशन में भाग लेना चाहते हैं , अपना नाम लिखा सकते है। कम्पटीशन आज, पार्क के सामने ही होना था।
सोनी --ये क्या कह रहे हैं ?
शालू --लगता है, कोई गाने का कम्पटीशन है। आजकल वैसे हर चीज का बड़ा ही स्कोप है। है न ?
सोनी ---हम्म
शालू ---हम्म क्या ? चल अपना भी नाम लिखाते हैं। तू भी तो गाती थी स्कूल time में। और चाहे कुछ न भी मिले कोशिश करने में क्या जाता है। क्या पता हम टीवी पर आ जाएँ।
सोनी ---हाँ, गाना मुझे बचपन से ही बहुत पसंद है। बल्कि music ही ऐसी चीज है जिससे मैं अपनी सारी परेशानियों को भूल जाती हूँ। पर बिना घर में पूछे ? कैसे ?
शालू --shut up यार , अरे कौन सा किसी का खून करने जा रहे हैं। cool यार।
और शालू ने दोनों का नाम लिखवा दिया। अब सोनी को ये चिंता थी कि शाम तक बाहर कैसे रुके। खैर शालू ने उसके घर फोन करके उसकी ये चिंता भी खत्म कर दी।
शालू --सोनी, चल मेरा घर पास में है, वहीँ से खा-पी कर और तैयार होकर शाम को आएँगे। और तू बिलकुल चिंता मत कर रात को मैं तुझे घर भी छोड़ दूँगी।
सोनी --thank you Shalu पर डर लग रहा है।
शालू ---चल चल , ज्यादा अंग्रेज बनने की जरूरत नहीं है , और डरने की तो बिलकुल भी नहीं , समझीं?
और फिर शाम को दोनों सहेलियाँ तैयार हो कर , कम्पटीशन में पहुंचीं।
शालू ने अपना गाना गाकर ख़त्म किया। और तब आया सोनी का नंबर। सोनी को समझ ही नहीं आ रहा था कि कौन सा गाना गाए। अपने गानों की लिस्ट में से उसने अपना एक favorite गाना चुना और एक बार उसकी practice की जिससे कि वो स्टेज पर कहीं भूल न जाए।
और उसकी मीठी आवाज़ ने सभी को मन्त्रमुग्ध कर दिया।
" ऊंचे-नीचे रास्ते और मंजिल तेरी दूर ,
राह में राही रुक न जाना होकर के मजबूर।
ऊंचे नीचे रास्ते और मंजिल तेरी दूर। "
सोनी को पता ही नहीं था कि उसका गला कितना सुरीला है। कभी घर में किसी ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया।
कभी उसने स्वयं भी महसूस नहीं किया कि संगीत में तो उसके प्राण बसते हैं।
पूरा हॉल तालियों की गडगडाहट से गूँज उठा।
सोनी स्टेज से आकर शालू से लिपट गई। शालू ने उसके आँसू पोंछे और उसे सामने लगी भगवान की फोटो दिखाई।
तभी judges ने रिजल्ट announce किया जिसमे सोनी का नाम भी था। अब सोनी को गाने के लिए मुंबई जाना था। आज, अपनी सफलता पर सोनी की आँखों में ख़ुशी के आँसू थे। उसका मन बार-बार अपनी बचपन की सहेली को धन्यवाद करने का हो रहा था।
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एक हफ्ते बाद
सोनी की ट्रेन चलने वाली थी। उसे मुंबई, अपने पहले गाने की recording के लिए जाना था। सभी घर वाले उसकी सफलता और ख़ुशी पर खुश थे कि चलो आई ए एस न बन सकी तो क्या हुआ, singer भी तो बडा नाम और पैसा कमाते है। सोनी बार बार अपनी घडी देख रही थी।
सोनी --अफ़्फ़ो, ये शालू कहाँ रह गई ? ट्रेन चलने वाली है। पता नहीं फिर कब मुलाकात हो। अजीब है ये लड़की भी न , कसम से।
शालू दौड़ती हुई सोनी की ओर आई और सोनी ट्रेन से उतरकर शालू से जोर से लिपट गई।
सोनी --शालू , तू मेरे लिए एक फ़रिश्ते की तरह आई है। सच में आज मैं बहुत खुश हूँ। भगवान हर लड़की को तेरे जैसी सहेली जरूर दे।
शालू --ही ही ही, very funny, क्या कोई सत्य नारायण की कथा चल रही है कि जैसे मेरे दिन बहुरें, वैसे ही आप सब के भी बहुरें।
सोनी --- चल हट , पागल।
शालू ---सोनी सच में आज मैं बहुत खुश हूँ। तेरी सफलता और तेरी ख़ुशी पर मेरी तरफ से ये एक छोटा सा gift है।
सोनी --अरे इसकी क्या जरुरत थी? अरे कहीं मेरी ट्रेन न छूट जाए। वैसे ,क्या है ये ?
शालू --हाँ हाँ , कर ले formality . ये तेरे लिए नहीं , मेरे लिए है। ये एक mobile phone और इसमें मेरा नंबर भी है। जिससे कि कहीं मेरी प्यारी सहेली फिर से मुझसे न बिछड़ जाए। Got it ?
सोनी --ओह,मेरी प्यारी सहेली। सच्ची में शालू, तूने जो रास्ता दिखाया है , अब देखना मैं बहुत मेहनत करूंगी और बंद कर लूंगी अपनी मुट्ठी में आसमान।
शालू --ये हुई न बात। जा सोनी जा, जी ले अपनी जिंदगी।
और दोनों सहेलियाँ दिल खोलकर हंसने लगीं और तभी ट्रेन की आखिरी सीटी बजी और सोनी निकल पड़ी अपनी मंजिल और अपने सपने की ओर।
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Epilogue ; ये सच है कि सच्ची दोस्ती हमें सही मार्गदर्शन देती है। पर ऐसा नहीं है कि माता-पिता, दादा-दादी या नाना-नानी अपने बच्चों के दोस्त नहीं बन सकते। आवश्यकता है तो बस अपने बच्चों से दोस्ती करने की उन पर अपनी इच्छाए थोपने की नहीं।